शनिवार, 10 नवंबर 2018

मनीषी का निर्णय

बुद्धिमान मनीषी वही व्यक्ति होता है जिसका विवेकपूर्ण निर्णय सदा देश, धर्म, परिवार और समाज के लिए हितकर होता है। उसके सुझाए हुए मार्ग पर चलकर किसी का भी अनिष्ट नहीं होता। उनसे सबकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। इसीलिए उसके निर्णय सर्वमान्य होते हैं और मार्गदर्शक होते हैं। उन पर कोई भी व्यक्ति आँख मूँदकर विश्वास करके अपना हित साध सकता है। परन्तु उन फैसलों पर अँगुली नहीं उठा सकता।
          यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति किसी के प्रभाव में आकर अथवा किसी भयवश गलत निर्णय देता है तो वह विनाश का कारण बन जाता है। उसके एक गलत फैसले से होने वाली क्षतिपूर्ति करना बहुत ही कठिन हो जाता है। हानि तो होती ही है उसका दुष्परिणाम भी भयावह होता है। ऐसे लोग देश, धर्म और समाज की दृष्टि में गद्दार की श्रेणी में आते हैं। वे सबकी नजरों से गिर जाते हैं। यह स्थिति उसके लिए बहुत ही कष्टदायक होती है।
          इसी विषय पर किसी कवि ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं जो आधुनिक परवेश में भी समीचीन हैं-
             एकं हन्यान्न वा हन्यादिषुर्मुक्तो धनुष्मता।     
            बुद्धिर्बुद्धिमतोत्सृष्टा हन्याद् राष्ट्रं सराजकम्।।
अर्थात जब कोई धनुर्धर बाण छोड़ता है तो हो सकता है कि वह बाण किसी को मार दे अथवा चूक हो जाए तो किसी को न भी मारे। परन्तु जब एक बुद्धिमान कोई गलत निर्णय लेता है तो उससे राजा सहित सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश हो सकता है।
          इस श्लोक के माध्यम से कवि यही कहना चाहता है कि बुद्धिमानों के सिर पर सही निर्णय लेने का दायित्व है। उसके एक गलत निर्णय का अनुसरण करके राजा यानी शासक नष्ट हो सकता है। उसके साथ ही राष्ट्र विनाश के कगार पर जा सकता है। कवि ने धनुर्धर का उदाहरण दिया है। उसके बाण से हो सकता है कि किसी की मृत्यु हो जाए। यह भी हो सकता है कि उसका निशाना चूक जाए। परन्तु बुद्धिमान को दुबारा अवसर नहीं मिल सकता। उसका गलत चला तीर तबाही मचाकर ही रहता है।
           यहाँ राष्ट्र की बात की गई है। यदि हम घर, कार्यालय, व्यापारिक संस्थान आदि की ओर देखें तो कह सकते हैं कि किया एक गलत निर्णय सब कुछ नष्ट कर देता है। घर-परिवार बिखर जाता है। कार्यालयों में उठा-पटक होने लगती है। व्यापारिक संस्थान बन्द होने की कगार पर आ जाते हैं।
         हम पुरातन इतिहास पर नजर डालें तो कई ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे। भगवती सीता को अपहरण करने के रावण के एक फैसले ने युद्ध करवाकर उसके वंश का नाश करवा दिया। भाई विभीषण भगवान राम का साथी बनकर रावण के वध का कारण बन गया। जिसके लिए आज भी यह कथन प्रसिद्ध है-
             घर का भेदी लंका ढाए।
इसी प्रकार धृतराष्ट्र के पुत्रमोह के कारण गलत फैसला लिया गया कि राज्य दुर्योधन को दिया जाएगा, राज्य के वास्तविक अधिकारी पांडवों को नहीं। अन्ततः यह निर्णय महाभारत के युद्ध के रूप में परिवर्तित हुआ। इस युद्ध में अनेक विद्वान और महारथियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। इसी काल मे भीष्म पितामह का निर्णय कि वे सिंहासन की रक्षा करेंगे, राजा चाहे कोई भी हो। इस तरह अन्याय की आँख मूँदकर सहमति देने के कारण अन्तकाल में शर शैय्या पर कष्ट सहना पड़ा।
        इसी प्रकार के उदाहरणों से इतिहास भर पड़ा है। अनेक गलत निर्णयों के कारण इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ गई जिसका भुगतान कई आने वाली पीढ़ियों को करना पड़ा। इसलिए विद्वानों से यही अपेक्षा की जाती है कि वे अपने दायित्व का निर्वहण बिना किसी स्वार्थ अथवा दबाव से करें। अपने नाम को बट्टा न लगाएँ।
चन्द्र प्रभा सूद
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