गुरुवार, 22 नवंबर 2018

सबका सहयोग अपेक्षित

मनुष्य को अपना जीवन बाधारहित चलाने के लिए उसे सबका सहयोग अपेक्षित होता है। घर-परिवार में शांति बनी रहनी चाहिए यह आवश्यक है। छोटे-बड़े सभी कार्यों को करने के लिए उसे बहुत से दूसरे लोगों की आवश्यकता होती है।
          प्राय: घर में काम करने वालों में आया और कामवाली बाई की प्रत्यक्ष रूप से भूमिका होती है। घर की सफाई, बर्तनों की धुलाई, कपड़ों की धुलाई, घर की झाड़-पौंछ आदि कार्य यदि घर में एक दिन भी न हों तो बस तूफान आ जाता है। ऐसा लगता है कि सब अस्त-व्यस्त हो गया है। घर में हर ओर गंदगी का साम्राज्य दिखाई देता है। फिर न खाने का मजा, न बैठने में चैन।
        ऐसे समय में बच्चों की मौज हो जाती है क्योंकि प्रायः बाजार से खाना मंगवा कर खा लिया जाता है। जब सारे कार्य स्वयं करने पड़ते हैं तो बुखार चढ़ने लगता है। सारा समय चिड़चिड़ाहट का माहौल बन जाता है घर का सुख चैन मानो छिन जाता है। कहीं जाना हो तो सब कैंसिल।
         घर से यदि सफाई कर्मचारी चार दिन तक कचरा लेने न आए तो घर में बदबू आने लगती है और यदि किसी लोकेलिटी से कचरा न उठे तो वातावरण में दुर्गन्ध फैल जाती है। इसी तरह यदि घर का सीवर बंद हो जाए तो सफाई कर्मचारी की सहायता के बिना वह कदापि खुल नहीं सकता। ऐसा ही हाल दफ्तर आदि का भी हाल होता है।
        जो लोग अपने ड्राइवर पर निर्भर रहते हैं  उसके छुट्टी माँगने पर भड़क जाते हैं। ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि उसका भी घर-परिवार है और उसको भी तो किसी समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है।
         धोबी यदि कुछ दिन कपड़ों को प्रेस न करे तो घर में बिना प्रेस के कपड़ों का बहुत बड़ा ढेर लग जाता है। घर से बाहर जाते समय पहनने के लिए कपड़े नहीं मिलते तो कपड़े स्वयं प्रेस करने पड़ जाते हैं।
समय के अभाव में एक झंझट और बढ़ जाता है।
          इसी प्रकार इलेक्ट्रिशियन, पलंबर,
कारपेंटर, केबल वाला, माली, नाई आदि के न मिल पाने की स्थिति में भी मनुष्य को अनावश्यक रूप से परेशानी होती है।
         वैसे जब तक सब ठीक-ठाक चलता रहता है तो बढ़िया अन्यथा हम स्वयं को दुनिया का सबसे दुखी इंसान समझने लगते हैं। जरा-सी भी परेशानी आने पर हम ईश्वर को दोष देने लगते हैं और उसे कोसते रहते हैं।
        अपने गिरेबान में यदि झांककर देखें तो हमें स्वयं पर ग्लानि होने लगेगी। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने पास काम करने वाले नौकर, माली, ड्राइवर आदि को नाम से पुकारने में भी अपनी हेठी समझते हैं। उनके बिना एक कदम भी नहीं चल सकते पर पैसे का ऐसा नशा है जो उन सबको एक इंसान मानने से भी इन्कार करते हैं जैसे उनका कोई वजूद ही नहीं है।
           सभी कार्य करने वालों को उनका मानदेय (हक का पैसा) ऐसे देते है जैसे उन पर उपकार कर रहे हों।
         कभी उन सबको उनके नाम से पुकार कर देखिए, उनकी दुख-परेशानियों में उनसे सहानुभूति जताइए, उनके कंधे पर हाथ रखकर यह दिखाइए कि वे भी आप ही की तरह इंसान हैं, वे सब आपके मुरीद हो जाएँगे। आपके कष्ट के समय एक ही इशारे पर भागे चले आएँगे।
       किसी भी व्यक्ति को उसके व्यवसाय को आधार मानकर उससे घृणा करना छोड़ दीजिए। ईश्वर की बनाई सृष्टि के जीवों से जो व्यक्ति भेदभाव करता है या नफरत करता है उससे वह बहुत नाराज होता है। जब वह सबको समान दृष्टि से देखता है तो किसी को हक नहीं देता कि वह अन्य जीवों से अन्याय करे।
चन्द्र प्रभा सूद
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