शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

स्वार्थ पूर्ति

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अपने तुच्छ भौतिक स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए मनुष्य गधे को भी बाप बनाने से बाज नहीं आता। उसे जब लगता है कि उसका स्वार्थ किसी व्यक्ति विशेष के माध्यम से पूर्ण हो सकता है, तब वह उसके इर्द-गिर्द इस प्रकार घूमने लगता है जैसे गुड़ के चारों ओर मक्खियाँ भिनभिनाने लगती हैं। अपना काम निकल जाने के बाद वह उस व्यक्ति को पहचानने से उसी प्रकार इन्कार कर देता है जैसे गुड़ समाप्त हो जाने पर मक्खियाँ। उस समय वे उस स्थान से ऐसे उड़कर चली जाती हैं मानो वहाँ कुछ था ही नहीं।
         इसके विपरीत आचरण करने वालों को आज की भाषा में मूर्ख कहा जाता है। यानी जो किसी दूसरे को सीढ़ी बनाकर इस्तेमाल नहीं करना जानता वह उन तथाकथित स्वार्थी लोगों की श्रेणी में पिछड़ा हुआ कहलाता है। भर्तृहरि जी ने अपने ग्रन्थ 'नीतिशतकम्' में ऐसे स्वार्थी लोगों की तुलना उन कुत्तों से की है जो सुख-सुविधाओं से मिले भोजन को छोड़कर गली-सड़ी हड्डियों को चबाने का मोह नहीं त्याग पाते-
         कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगन्धि जुगुप्सितं
         निरुपमरसप्रीत्या खादन्नरास्थि निरामिषम् ।        
         सुरपतिमपि श्वा पार्श्वस्थं विलोक्य न विशङ्कते
         न हि गणयति क्षुद्रो जन्तुः परिग्रहफल्गुताम् ॥
जिस प्रकार एक कुत्ता स्वर्ग के राजा इंद्र की उपस्थिति में भी उन्हें अनदेखा करते हुए मनुष्य की हड्डियों को जो बेस्वाद, कीड़ों मकोड़ों से भरी, दुर्गन्ध युक्त और लार में सनी होती हैं, बड़े चाव से चबाता रहता है। उसी प्रकार लोभी व्यक्ति भी दूसरों से तुच्छ लाभ पाने से बिल्कुल भी नहीं कतराता है। 
          यह श्लोक समझा रहा है कि स्वार्थ पूर्ण करने वाला लोभी व्यक्ति अपने स्तर से इतना नीचे गिर सकता है कि वह देवताओं के राजा के समान सभी प्रकार के ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाले अपने मालिक को अनदेखा करके दुर्गन्ध युक्त हड्डियों को अधिक स्वाद से चबाता है। उसके लिए अपनी स्वार्थपूर्ति अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। सुविधा से मिले पौष्टिक भोजन को वह लात मार देता है। इस तरह की हरकत करके वह कुत्ता अपने मालिक की नजर से सदा के लिए गिर जाता है। तब उसका मालिक भी उसके प्रति उदासीन हो जाता है।
          इसी प्रकार का स्वार्थी मनुष्य भी अपने सहयोगियों की नजर से गिर जाता हैं जो जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़ता है उसे धक्का मारकर गिरा देता है। मनीषी कहते हैं-
     ' मिट्टी की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।'
यह सर्वथा सत्य है। ऐसा स्वार्थी या लोभी व्यक्ति कब तक दूसरों को मूर्ख बनाने में सफल हो सकता है? कभी-न-कभी तो उसकी कलाई खुल ही जाती है। उस समय उसकी स्थिति धोबी के कुत्ते की तरह हो जाती है जो न घर का रहता है और न घाट का।
         हर तरफ उसकी थू-थू होने लगती है। वह सबकी घृणा का पात्र बनता है। लोग ऐसे स्वार्थी व्यक्ति से किनारा करने लगते हैं। वह समाज से काटकर अकेला हो जाता है। समाज उन्हीं सदा उसी व्यक्ति को चाहता है जो निःस्वार्थभाव से कार्य करे। इसलिए जहाँ तक हो सके अपने तुच्छ भौतिक इच्छाओं को पूर्ण करने के पीछे भागना छोड़ देना चाहिए। सभी कार्य अपने समय से पूर्ण हो जाते हैं। अतः उनके लिए दुखी या परेशान नहीं होना चाहिए और न ही उसके लिए छल-प्रपञ्च करने चाहिए। यह सत्य है कि किसी अन्य को धोखा देकर अथवा अनदेखा करके मनुष्य स्वयं अपने से ही नजरें नहीं मिला सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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