शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

डॉक्टरों की योग्यता

कुछ दिन पूर्व वाट्सअप पर डॉक्टरों के एक ग्रुप का वार्तालाप पढ़ा जो सैर करने के उपरान्त चाय पी रहे थे। सामने से लंगड़ाकर आ रहे व्यक्ति को क्या बीमारी हो सकती है, इस विषय में वे सब अपने-अपने ज्ञान के अनुसार टिप्पणी करने लगे। उस व्यक्ति के समीप आने पर, उसकी स्थिति को देखकर 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' वाली उक्ति को सार्थक होता हुआ कह सकते हैं। डॉक्टर लोग पढ़े-लिखे होते हैं, अपने विषय के ज्ञाता होते हैं। इसलिए उनके विषय में यह नहीं कह सकते कि अल्प ज्ञान के कारण व्यक्ति समाज में मूर्ख कहलाता है।
          मॉर्निंग वॉक के बाद डॉक्टरों का एक ग्रूप दुकान पर बैठकर चाय पी रहा था। उन्होंने देखा कि दूर से एक आदमी लंगडाता हुआ आ रहा था। उनमें से एक डॉक्टर ने पूछा- "क्या हुआ होगा उसे?"
पहला बोला - "Left knee arthritis."
दूसरा बोला - "न न, मेरे हिसाब से Plantar Facitis."
तीसरा बोला - "कुछ भी क्या? Ankle sprain लग रहा है।"
चौथा बोला - "जरा ठीक से देखो, वह आदमी एक पैर ठीक से उठा नहीं पा रहा। Foot drop जैसा है। उसके Lower motor neurons की लग गयी है।"
पाँचवाँ बोला - "मुझे तो यह Hemiplegia का scissors gate लग रहा है।"
छटा जब तक कुछ बोलता तब तक वह आदमी पास पहुँच चुका था। उसने सबसे बडी विनम्रता से पूछा - "यहाँ आसपास कोई मोची की दुकान है क्या? मेरी चप्पल का अँगूठा टूट गया है। मुझे चलने में दिक्कत हो रही है।"
           इस वार्तालाप के उपरान्त शायद वे लोग झेंप गए होंगे। उन सबका ज्ञान धरा-का-धरा रह गया। एक व्यक्ति को चलते देखकर उसकी बीमारी पर चर्चा करने वाले, अपने मरीजों का इलाज क्या करते होंगे? इसकी कल्पना की जा सकती है। उस व्यक्ति को कोई बीमारी नहीं थी बस उसकी चप्पल टूट गई थी। उसकी इतनी छोटी-सी समस्या को वे एक्सपर्ट नहीं समझ सके।
           आजकल डॉक्टरी पेशे में यही हो रहा है। अपने आप को स्पेशलिस्ट कहने वाले भी बीमारी को नहीं पकड़ पाते। बीमारी छोटी हो या बड़ी, हर बीमारी के लिए ढेरों टेस्ट करवाते हैं। फिर भी बहुत बार मरीज का गलत इलाज कर दिया जाता है। उसका हर्जाना मरीज को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। पैसे, धन और समय की बर्बादी होती है सो अलग। इस विषय में समय-समय पर समाचार पत्रों, टी वी और सोशल मीडिया पर दिखाया जाता रहता है।
            कभी-कभार मरीज के घर वालों के सब्र का बाँध टूट जाता है और वे मारपीट करने लगते हैं। डॉक्टर के क्लीनिक या अस्पताल में तोड़फोड़ कर बैठते हैं। ऐसी घटनाओं को रोका जाना चाहिए। मैं इस सब का समर्थन नहीं करती।
           बिना योग्यता के अथवा बिना किसी डिग्री के जो लोगों का उपचार करते हैं, उन्हें झोलाछाप डॉक्टर कहा जाता है। उन्हें ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। इन तथाकथित डॉक्टरों से गलती हो जाए तो बात समझ में आती है। परन्तु जो पढ़-लिखकर विषय में विशेष योग्यता या एक्सपर्टीज प्राप्त करते हैं, उनसे ऐसी गलती की अपेक्षा नहीं की जाती। लोग उनके पास बड़ी आशा लेकर, उनकी मनचाही मोटी फीस चुकाकर जाते हैं। वे सोचते हैं कि योग्य डॉक्टर की देखरेख में वे शीघ्र ही भले-चंगे होकर अपना कार्य करने लगेंगे। जब किसी मनुष्य की आस टूटती है अथवा बिखरती है तो बहुत कष्ट होता है।
            डॉक्टर को भगवान इसीलिए कहा जाता है कि वह जीवन देता है। वह रक्षक कहलाता है। पर जब यही रक्षक भक्षक बन जाएगा तो इन्सान किस पर विश्वास करेगा? मानवता पर से उसका भरोसा ही उठ जाएगा। डॉक्टर का पेशा बहुत ही पवित्र या नोबल होता है। इसे व्यवसाय या लूट की फैक्ट्री नहीं बनाना चाहिए, जैसे आजकल हो रहा है। लूट-खसोट करना डॉक्टरी पेशे का अपमान करना होता है।
          एक डॉक्टर को बहुत ही संवेदनशील होना चाहिए। उसे दूसरों को कष्ट में देखकर द्रवित होना चाहिए, न कि मरीज को मुर्गा समझकर हलाल करने की प्रवृत्ति रखनी चाहिए। उसे यह भी विचार करना चाहिए कि जो व्यवहार वह अपने मरीजों के साथ कर रहा है, कल उसके साथ भी हो सकता है। कारण, कभी तो उसे भी अपना या अपने परिजनों के इलाज की आवश्यकता पड़ेगी। उस समय उसके सारे आदर्श याद आ जाएँगे। अपने लिए वे आदर्श धरे-के-धरे नहीं रह जाएँगे।
            डॉक्टर और रोगी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जीवनभर में कभी-न-कभी हर मनुष्य को किसी डॉक्टर की आवश्यकता पड़ती ही है। डॉक्टर को भी सहृदयतापूर्वक अपने पास आए हुए रोगी का उपचार करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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