सोमवार, 12 नवंबर 2018

माँ का स्पर्श

माँ के हाथ का स्पर्श बच्चे के लिए रामबाण दवा होता है। बच्चा जब कहीं गिर जाता है या उसे चोट लग जाती है तो माँ उसे सहला देती है तो वह अपनी चोट के दर्द को भूल जाता है। घर में जब अपने से किसी बड़े से डाँट पड़ जाती है तो बच्चा रोते हुए आकर अपनी माँ से शिकायत करता है और तब माँ सब पर गुस्सा करने का उसे आश्वासन देकर बहला देती है।
        उसका किसी दोस्त से यदि झगड़ा होता है और वह दुखी होकर घर आता है तब माँ उन दोनों में प्यार से सुलह करवा देती है। स्कूल में टीचर से फटकार लगती है तो बच्चा घर आकर अपनी माँ की गोद में दुबक जाता है। उसे लगता है कि माँ उसे बचा लेगी। माँ उसके सिर पर जब अपना ममता भरा हाथ फेरती है और प्यार करती है तो बच्चा कक्षा में हुए अपने तथाकथित अपमान को भूल जाता है।
         अपनी माँ पर हर बच्चा आँख मूँदकर विश्वास कता है और सोचता है कि उसकी माँ उसे हर कष्ट से छुटकारा दिला देगी। इसी सोच से वह प्रसन्न हो जाता है। अपने सारे दुख-दर्द अपनी माँ के साथ साझा करके सब कष्टों अथवा परेशानियों को भूल जाता है और नवीन उत्साह से मस्त होकर नाचने लगता है।
         इसे हम 'टच थेरेपी' भी कह सकते हैं।  बच्चे को कैसा भी कष्ट हो माँ के स्पर्श मात्र से ही वह सब भूल जाता है। माँ का प्यार से सिर पर हाथ फेरना अथवा गोद में लेकर सहला देना ही उसकी हर मर्ज की दवा बन जाता है।
        ईश्वर की कुदरत है कि माँ के साथ उसका सम्बन्ध सबसे अधिक होता है। वह नौ मास तक माता के गर्भ में रहता है और उसी से ही पुष्ट होता है। यह सुरक्षाकवच जन्म के पहले ही माता द्वारा उसे मिलता है। यही कारण है कि वह अपने हर कार्य के लिए अपनी माँ पर ही निर्भर रहता है। अपनी हर छोटी-बड़ी जिद उसी के माध्यम से पूरी करने का यत्न करता है।
ऐसा नहीं है कि घर के अन्य सदस्य उसे प्यार नहीं करते अथवा उसे आश्वस्त नहीं करते। वे उसकी सारी आवश्यकताओं का ध्यान भी रखते हैं। उसके मन को बहलाने के लिए वे माँ की तरह लोरी भी सुनाते हैं और कहानी भी। उसे घुमाते-फिराते भी हैं और उसकी जिद को पूरा करते हैं। इतना सब होने के बाद भी उसे माँ की गोद ही चाहिए होती है।
          इसका कारण स्पष्ट है कि माँ का स्पर्श ही उसका सबसे बड़ा सहारा होता है। बच्चे को घर के अन्य सदस्य यदि न दिखें तो वह उनके बारे में पूछताछ करता है उन्हें ढूँढने का प्रयास करता है। परन्तु यदि वह कहीं से खेलकर लौटा है अथवा स्कूल से अपने घर वापिस आया है तो अपनी माँ को सामने न पाकर रोने लगता है। घर में चाहे सभी सदस्य विद्यमान हों पर वह यह कदापि सहन नहीं कर सकता कि उसकी अपनी माँ उसकी आँखों से पलभर के लिए भी ओझल हो जाए।
          विद्वानों का मानना है कि बच्चे की कोई गलत आदत छुड़ानी हो या उसे अच्छे संस्कार देने हों तो उसके सो जाने पर यदि माता उसके सिर पर हाथ फेरते हुए गलत आदत छोड़ने या अच्छे संस्कार अपनाने के लिए प्रेरित करे तो बच्चे पर उस क्रिया का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
           माँ बच्चे का यह सम्बन्ध बहुत ही भावनात्मक होता है। बच्चा काला-गोरा, दुबला-मोटा अथवा अपाहिज कैसा भी हो वह अपनी माँ के कलेजे का टुकड़ा होता है जिसे वह अपने सीने से लगाकर रखती है। दुनिया भर की मुसीबतें वह अकेले भी सह लेती है पर बच्चे को गर्म हवा तक नहीं लगने देती । बच्चा भी यह जानता-समझता है कि दुनिया में कोई भी उस पर हस ले या उसका मजाक उड़ा ले पर माँ कभी उसका उपहास नहीं करेगी। इसीलिए माँ तो माँ होती है। उसके नेह और छत्रछाया में बच्चे को हर पल आत्मविश्वास मिलता है जिसके सहारे वह कुछ भी कर गुजरता है।

चन्द्र प्रभा सूद
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