रविवार, 11 नवंबर 2018

बच्चा बूढ़ा एकसमान

समय बीतते एक आयु के पश्चात मनुष्य बच्चे के समान हो जाता है। तब उसकी देखभाल बच्चे के समान ही करनी पड़ती है। वह भी बारबार बच्चों की तरह रूठने-मानने लगता है। अधिक बोलने लगता है। यदि किसी कारण से उसकी बात को अनसुना कर दिया जाए तो वह बौखला जाता है कभी-कभी अनाप-शनाप भी बोलने लगता है।
         इसका कारण है कि सारी आयु वह संघर्ष करता रहता है। उसे अपना व अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए दिन-रात एक करना पड़ता है। स्वयं के विषय में सोचने के लिए ऐसी परिस्थितियों में उसके पास समय ही नहीं होता। जीवन की आपाधापी में अथवा भागदौड़ में उसे पता ही नहीं चलता कि वह कब युवा से वृद्ध हो गया। उसका रिटायरमेंट का समय आ गया।
           रिटायरमेंट यानि साठ साल की आयु के बाद उसके जीवन में एक खालीपन सा आने लगता है। सवेरे से रात तक की उसकी व्यस्तता अब नहीं रहती। उसे समय व्यतीत करना भारी पड़ने लगता है। ऐसे समय में कुछ लोग पुनः नौकरी का प्रयास करते हैं और कुछ लोग अपना मन बहलाने के लिए दोस्तों का आसरा ढूँढते हैं, ताश खेलते हैं, सवेरे सैर करने जाते हैं, ग्रुप बनाकर कभी-कभार घूमने चले जाते हैं।
         व्यापारियों की रिटायरमेंट थोड़ी देर से होती है जब तक वे स्वस्थ हैं काम करते रहते हैं। क्लब जाते हैं, पार्टियाँ देते रहते हैं और अपनी मीटिंगस में व्यस्त रहते हैं। पर एक समय के पश्चात उनके सामने भी वही समय बीताने की समस्या आती है।
          जो लोग ऐसे समय में जो लोग हाबी अपना लेते हैं वे इस समस्या से निजात पा लेते हैं। कुछ समय पूजा-पाठ में बिताने से मन को शांति मिलती है। कोई सामाजिक कार्य करके समय का सदुपयोग किया जा सकता है। इससे मनुष्य व्यस्त रहता है और उसका खालीपन भी उसे कचोटता नहीं है और समाज का भी भला होता है।
        कुछ और आयु बीतने पर मनुष्य की शक्ति कमतर होने लगती है। फिर वह अशक्त होने लगता है। बीमारियाँ उसे घेरने लगती हैं। उसे स्वस्थ होने में समय अधिक लगता है। डाक्टरों व अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए हिम्मत जवाब देने लगती हैं उस समय उसे सहारे की आवश्यकता होती है। अपनों के प्यार व दुलार की जरूरत होती है।
        ऐसे समय में जब उसकी बातों को बच्चे अनसुना करते हैं तो वह यह सहन नहीं कर पाता। उसे लगता है कि आयुभर जो अनुभव उसने कमाया है बच्चे उसका लाभ नहीं उठा रहे। वे उसे मूर्ख और स्वयं को अधिक समझदार मान रहे हैं। इसे वह अपना अपमान समझता है।
         शरीरिक शक्ति क्षीण होने से वह स्वयं अपने कार्यों को पहले की तरह चुस्ती से नहीं कर पाता। इसलिए चिड़चिड़ा हो जाता है। इसी कारण वह अधिक बोलने लगता है।
       आज बच्चे अपने दायित्वों को निभाने में दिन-रात एक कर रहे हैं। परन्तु उस वृद्ध को लगता है कि वे उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहे बोझ समझ रहे हैं। अत: वह खफा रहने लगता है, शिकायतें करता है।
         आयु का यह दौर सबके लिए बहुत ही कष्टकारी होता है। सेवा करने वाले भी परेशान हो जाते हैं और सेवा करवाने वाले भी। नकारेपन के अहसास के कारण सेवा करवाना बहुत मुश्किल होता है।
         इन आयुप्राप्त लोगों को बस अपनों के प्यार-दुलार, सहारे और विश्वास की ही आवश्यकता होती है। यथासंभव थोड़ा-सा समय निकाल कर उनकी बात सुनें और उन्हें मात्र इतना भर अहसास दिला दें कि वे उन पर बोझ नहीं हैं। वे उनके अपने हैं और उन्हें बहुत प्यार करते हैं। बच्चों को उनके पास बैठने के लिए प्रेरित करें ताकि उन बजुर्गों का अंतिम दौर शांति व प्रसन्नता से व्यतीत हो।
        उनकी नागवार बातों को अनदेखा व अनसुना करके बच्चों के समान उनका ख्याल रखें। इसीलिए कहते हैं-
                 'बच्चा बूढ़ा एक समान।'
चन्द्र प्रभा सूद
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