रविवार, 18 नवंबर 2018

ईश्वर की उपासना

संसार के आकर्षण इतने अधिक हैं कि उस ईश्वर की उपासना करने में मन रमता ही नहीं है। प्रायः सभी लोगों की यही समस्या है। इन्सान केवल ऐशो-आराम में मस्त रहना चाहता है। उसका ध्यान मालिक की ओर जाता ही नहीं जिसने इस संसार में उसे भेजा है।
        ईश्वर की उपासना करना सबसे कठिन कार्य है। यह मैंने इसलिए कहा कि उसकी भक्ति का प्रदर्शन अधिक होता है जिसका कोई लाभ मनुष्य को नहीं होता। जो लोग सच्चे मन से उसकी उपासना करना चाहते हैं जब उनका मन उस समय दुनिया के कारोबार में भटकने लगता है तो वे परेशान रहते हैं।
          ईश्वर का यदि सच्चे मन से भजन किया जाए तो उसका फल अवश्य मिलता है यानि मनुष्य ईश्वर के करीब हो जाता है। उसका प्रिय बन जाता है। ये मात्र अड़चनें है इन्सान को डिगाने के लिए। वह प्रभु भी परीक्षा लेता रहता है कि मनुष्य की लगन कितनी सच्ची है, उसमें कितनी ईमानदारी है। निश्चित समय पर और मन से सोचा गया जप अवश्य करते रहना चाहिए।
         कहते हैं जब राम कथा के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का मन साधुओं के उपदेश के कारण बदल गया तो वे साधना में लीन हो गए। तपस्या करते हुए उनके ऊपर बाम्बी बन गई थी, इसलिए उन्हें वाल्मीकि कहते हैं।। वे राम नाम के स्थान पर मरा शब्द का जप करते हुए तर गए। उन्हें तब भी इसका फल मिला और वे विश्व विख्यात रामकथा लिखकर इस संसार में अमर हो गए।
           एक बार तुलसीदास से किसी ने पूछा- कभी-कभी भक्ति करने में मन नहीं लगता, फिर भी जप करने बैठ जाते हैं, क्या उसका फल मिलता है। तुलसीदास ने उसे मुस्कुराते हुए कहा-
तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज।
भौम पड़ा जा में सभी, उल्टा सीधा बीज।।
अर्थात जब भूमि में बीज बोए जाते हैं तो यह नहीं पता चलता कि वे उल्टे पड़े हैं या सीधे पर फिर भी कालान्तर में फसल  बन जाती है, उसी प्रकार प्रभु के नाम का सुमिरन कैसे भी किया जाए उसके सुमिरन का फल अवश्य मिलता है।
        यहाँ यह महत्वपूर्ण नहीं कि जप कैसे किया बल्कि इसकी उपयोगिता है कि जप करने का जो नियम बनाया था उसे भार तो नहीं समझ रहे। कहीं मन में यही विचार हावी हो रहा हो कि बेकार ही मुसीबत मोल ले ली। यदि ऐसी भवना मन में कभी आ जाए तो अपने ऊपर किए गए उस प्रभु के उपकारों का स्मरण कर लीजिए। फिर मन स्वयं ही उसकी आराधना करने के लिए नतमस्तक हो जाएगा।
        वाट्सअप पर किसी ने भेजा था कि ईश्वर को स्मरण करने के लिए उसे एस. एम.एस. करो। ईश्वर को एस.एम.एस. करने के विषय में लिखे गए ये विचार बहुत ही सुन्दर लगे, उन्हें आपके साथ साझा करना चाहती हूँ।
        एक बार भक्त ने किसी सन्त से पूछा - मुझे आज तक भगवान नहीं मिले, कैसे मिलेंगे बताइए? सन्त बोले - भगवन तो हर जगह हैं, कण-कण में वास करते हैं। इसीलिए उन्हें सर्वव्यापी कहते हैं। तुमने एस.एम. एस. नहीं किया होगा। एक बार एस.एम. एस. करना शुरू कर दो फिर वे स्वयं मिल जाएँगे।
        भक्त ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हुए फिर उनसे पूछा- मैं एस.एम.एस. कहाँ पर करूँ? भगवन का नम्बर तो मेरे पास नहीं है।
         सन्त ने कहा - अच्छा एक बार इसका अर्थ समझ लो। इसके हर शब्द का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं- एस- सच्चे,  एम- मन से,  एस - स्मरण।
अर्थात सच्चे मन से उसका स्मरण कर तो वह तुरन्त मिल जाता है।
         ईश्वर मनुष्य के भाव को परखता है। उसकी उपासना करने के लिए कटिबद्ध रहिए, मन चाहे लगे या न लगे अपने नियम का पालन सच्चे मन से करने का ईमानदार प्रयास करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail.com
Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें