शनिवार, 1 दिसंबर 2018

माँ की शीतल छाया

माँ के विषय में गाई गई गीत की एक पंक्ति स्मरण हो रही है-
   माँवाँ ठण्डियाँ छावाँ कि छावाँ कौन करे?
अर्थात माँ शीतल छाया देती है। उसके समान और कोई भी ऐसी शीतलता वाली छाया नहीं दे सकता।
       माँ की गोद है ही ऐसी कि सारी आयु मनुष्य के ताप हरती रहती है। वहाँ आकर मनुष्य को वास्तविक शान्ति मिलती है। माँ के हाथ का स्पर्श मनुष्य को उसकी हर आयु में सम्बल प्रदान करता है।
         माँ उसे गर्म हवा का एक झौंका भी नहीं लगने देना चाहती। वह चाहती है कि उसकी सन्तान के सारे कष्ट उसके हिस्से में आ जाएँ और उसके बच्चे हँसते-मुस्कुराते रहें। उन्हें कष्टों और परेशानियों से बचाने के लिए सदैव उपाय करती रहती है। उसे सबकी नजरों से बचाने का प्रयास करती रहती है।
         उसकी हार्दिक कामना होती है कि उसके बच्चे फले-फूलें। योग्य बनकर बच्चे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते रहें। उन्हें कभी असफलता का मुँह न देखना पड़े।
        सन्तान को सुई चुभने जैसा कष्ट भी हो जाए तो उसका सारा सुख-चैन स्वाहा हो जाता है। उसकी नीन्द उड़न छू हो जाती है। वह अपना खाना-पीना सब छोड़कर अपने बच्चों की तिमारदारी में जुट जाती है। जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाता, तब तक वह बस एक पैर पर ही खड़े रहकर दिन-रात की परवाह किए बिना उसकी देखभाल करती रहती है।
         ऐसी होती है माँ की ममता जो बिना किसी प्रतिकार की कामना किए अपनी सन्तान का हित साधती है। सदा उसके शुभ की कामना करती है। बच्चे चाहे उसकी उपेक्षा भी करें, फिर भी वह उनके विरोध में किसी की कोई बात नहीं सुन सकती। वह स्वयं भी उनके लिए अपशब्द नहीं कहती।
          बच्चे का जब जन्म होता है तो उसका चेहरा देखते ही वह अपने सारे कष्टों और परेशानियों को भूल जाती है। बस उसकी तिमारदारी में जुट जाती है। उसे पल-पल बढ़ता देखकर खुशी से फूली नहीं समाती। उसकी बाल सुलभ चेष्टाओं पर बलिहारी जाती है। उसमें अपने बचपन को देखती है। उसके भावी जीवन के लिए सदा ही सपने बुनती रहती है। सच्चे मन से उसके दुख में दुखी होती है और उसके सुख में सुखी होती है।
         बच्चे के जन्म से लेकर अपनी मृत्यु तक के सारे जीवन में माँ अपने आँचल की छाया में उन्हें उसी प्रकार रखती है, जिस प्रकार एक मादा पक्षी पंख फैलाकर अपने नन्हें बच्चों को सुरक्षा देती है। बच्चा अपने जीवन में कुमार्ग पर न जाने पाए, इसके लिए भरसक प्रयत्न करती है।
          घर-परिवार के सदस्य यदि कभी उसे डाँट दें या उसका तिरस्कृत कर देते हैं तो उनके और बच्चे के बीच ढाल बनकर माँ खड़ी हो जाती है। वह हर स्थिति में उसका सुरक्षा कवच होती है। कैसी भी कठिन परिस्थिति हो उससे उसे धैर्यपूर्वक बाहर निकालकर ले आती है।
           जीवन में सदा शीतलता देने वाली जन्मदात्री माता के प्रति मनुष्य के भी कुछ कर्त्तव्य हैं जब वह युवा होकर अपने पैरों पर खड़ा होता है। उसका भी अपना एक परिवार होता है। उस समय उसकी माता की आयु भी बढ़ रही होती है।
          वृद्धावस्था की ओर कदम बढ़ाती हुई, उसकी अशक्त होती हुई माता को अपने बच्चों के मजबूत कन्धों के सहारे की ही आवश्यकता होती है। उस समय अपनी ऐसी माता का ध्यान उसे उसी तरह रखना चाहिए जिस प्रकार वह उसके बाल्यकाल से युवा होने तक रखती रही है।
         माता को समुचित मान-सम्मान देने वाले बच्चे समाज में सदा ही सम्मानित किए जाते हैं। ऐसे बच्चों पर घर-परिवार और समाज को सदा गर्व होता है। उनकी सर्वत्र सराहना होती है। यही वे बच्चे हैं जो उदाहरण बनते हैं और युगों-युगों तक स्मरण किए जाते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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