गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

सागर की तरह गम्भीर

मनुष्य को सागर की भाँति गम्भीर होना चाहिए। सागर की गम्भीरता की थाह हम मनुष्य नहीं पा सकते। अपने गर्भ में न जाने कितने अनमोल रत्न छिपाए हुए है जिनके बारे में हमें जानकारी तक नहीं है। जितना ही गहरे हम सागर में पैठते जाते हैं उतना ही इसकी विशालता का ज्ञान होता है। उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने अन्तस में रखे सभी रहस्यों को गुप्त रखना चाहिए, उन्हें आत्मसात करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में दूसरों के समक्ष उनको उद्घाटित नहीं करना चाहिए। इसी से ही उसकी गम्भीरता एवं महानता का ज्ञान होता है।
         सागर की सबसे बड़ी महानता यह है कि इसने हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का मार्ग दिया है। मनुष्यों और सामान से लदे इतने भारी-भरकम समुद्री जहाजों को यह आवागमन से कभी नहीं रोकता। इसकी महानता के कारण हम अनेकानेक वस्तुओं का सुविधापूर्वक आयात-निर्यात करके उनका उपभोग कर पाते हैं।
          अनेक नदियों को अपने अंतस में समाकर सागर उन्हें एकाकार कर लेता है। इसका जल विभिन्न आकार-प्रकार के अनेक इतने खूबसूरत जलचरों की आश्रय स्थली है जिनके विषय में हमें जानते तक नहीं है। उनकी खोज करने के लिए बारबार वैज्ञानिक आकर इसका सीना चीरते रहते हैं। अनेक खजानों को समेटने वाला यह सदा ही सबके लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसकी लहरों का उतार-चढ़ाव किसी चमत्कार से कम नहीं है।
           महापुरुषों की यही पहचान है कि वे अपने अंतस में न जाने किन-किन दीन-दुखियों की गाथाओं को रहस्य बनाकर अपने मन के किसी कोने में छिपा देते हैं। सम्पर्क में आने वाले लोगों की अच्छाइयों और बुराइयों को केवल अपने तक सीमित रखते हैं। सागर की तरह हर प्रकार के उतार-चढ़ावों को झेल लेते हैं पर उसकी आँच किसी पर नहीं आने देते।
          अपने साथ अन्याय करने वालों को भी सागर की तरह क्षमा कर देते हैं। किसी से बदला लेने के बारे में ये महापुरुष विचार तक नहीं करते हैं।
        पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया था। मंथन से मिलने वाले रत्नों का बटवारा तो हो गया परन्तु हलाहल विष को बाँटने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तब भगवान शंकर ने उस विष का पान सृष्टि की भलाई के लिए किया। यही कार्य सज्जन जन भी करते हैं। दूसरों को सद् गुणों व खुशियाँ लुटाने वाले वे, समाज के व्यंग्य बाणों को हंसते हुए सहते हैं।
         रामायण में प्रसंग आता है कि जब भगवान राम को रावण से युद्ध करने के लिए लंका पर चढ़ाई करनी थी तो उन्होंने सागर से मार्ग देने की प्रार्थना की थी। हम लोगों की तरह अनावश्यक अधिकार जमाने का प्रयास नहीं किया था। यह उनकी सज्जनता थी, महानता थी।
         भगवान भोलेनाथ के विषय में प्रचलित है कि वे इतने भोले हैं जो हर भक्त की सच्चे मन से की साधना से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान देते हैं। परन्तु यदि वे किसी कारण से कुपित हो जाएँ तो फिर उनके ताण्डव से सृष्टि में कोई भी नहीं बच सकता।
       सागर हमें सब सुख देता है परन्तु फिर भी हम मनुष्य उसे दूषित करने से बाज नहीं आते। उसका परिणाम उसका उफान यानि ज्वार भाटा होता है जो किसी भी समय भयंकर विनाश कर सकता है। ऐसी चेतावनी वैज्ञानिक समय-समय पर देते रहते हैं।
          सागर की तरह घोर गम्भीर सज्जन हमारे जीवन के मार्गदर्शक व प्रेरक होते हैं। अत: उनका सम्मान करने की आदत हम सबको होनी चाहिए। ऐसे महापुरुष बहुत विरले होते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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