गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

अमीर और गरीब की खाई

अमीर और गरीब की खाई को पाटना शायद उतना ही कठिन है, जितना धरती और आकाश का मिलना। दोनों ही एक धुरी पर निश्चत दूरी बनाकर रहते हैं।
        धरती और आकाश के विषय में कहा जाता है कि एक स्थान पर ये मिल जाते हैं, जिसे क्षितिज कहते हैं। यह वास्तविकता है या हमारी आँखों का भ्रम है, इस पर विचार करना बहुत आवश्यक है।
         जब हम नजर उठाकर ऊपर आकाश की ओर देखते हैं तो हमें वह दूर-दूर तक दिखाई देता है। उसी तरह जब हम धरती की ओर देखते हैं तो हमें उसका ओरछोर भी नहीं समझ आता। खुले प्रदेश में जाकर जब हम बहुत दूर तक देखते हैं तो हमें ऐसा लगता है मानो धरती व आकाश परस्पर मिलने लगे हैं। वास्तव में ऐसा नहीं होता, वे दोनों कभी भी नहीं मिलते। यह केवल एक आभासी रेखा है अर्थात् हमारी अपनी ही नजरों का धोखा होता है।
         जिस प्रकार धरती और आकाश नहीं मिल सकते उसी तरह अमीरी और गरीबी की खाई को पाटना बहुत कठिन कार्य है। आज इक्कीसवीं सदी के भारत में इन दोनों वर्गो का अन्तर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। अमीर लोग अधिक-अधिक अमीर बनते जा रहे हैं और गरीब नित्य ही अधिक गरीब होते जा रहे हैं।
          हम यहाँ किन्हीं आँकड़ों की बात नहीं करेंगे। फिर भी इतना अवश्य कहूँगी कि देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का प्रतिशत बहुत अधिक है।  शायद वह पचास प्रतिशत से भी अधिक है। इस लेख के माध्यम से केवल इतना ही यहाँ कहना चाहती हूँ कि हमें इन गरीबों के प्रति सदा सहिष्णुता का व्यवहार करना चाहिए। ये भी उस ईश्वर की सन्तान हैं जिसने अमीरों को और हम सभी मनुष्यों को बनाया है। इस भौतिक संसार में माता-पिता के लिए सभी बच्चे एक जैसे होते हैं चाहे वे गोरे या काले हों, स्वस्थ या रोगी हों, मोटे या पतले हों।
          जिस जगत माता ने इस ब्रह्माण्ड के समस्त जीवों को उत्पन्न किया है वह तो अपने किसी भी जीव के साथ भेदभाव नहीं करती। वह अपने सभी बच्चों को उनके कर्मों के अनुसार यथासमय सब कुछ बिनमाँगे देती रहती है। इसलिए उसे बिल्कुल सहन नहीं होता कि हम मनुष्य-मनुष्य में भेद करके उसकी सत्ता को चुनौती दें। उसके बच्चों से नफरत करें अथवा उन्हें धिक्कार कर परे हटा दें।
         ऐसी धन-सम्पत्ति जो न तो इहलोक और न ही परलोक में उनका साथ निभाती है, उसे प्राप्त करके पाकर मनुष्य  घमण्डी हो जाते हैं। वे अपने बराबर किसी को नहीं समझते। वे सोचते हैं कि उन्होंने धन क्या कमा लिया, उन्हें लाइसेंस मिल गया है कि वे किसी के भी साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं। तभी वे किसी ऐसे इन्सान को इन्सान नहीं समझते।
         गरीब आदमी पर तो वे अविश्वास करते हैं। उन्हें चोर-उचक्का समझते हैं। उनको छोटा आदमी कहकर सदा उनका तिरस्कार करते हैं। पर सच्चाई तो यह है कि उनका एक कदम भी इनके बिना नहीं चल सकता। वे बेशक उनकी वफादारी पर सन्देह करते हैं।
         ईश्वर ने उन पर इतनी कृपा की है और उन्हें सुख के भरपूर साधन दिए हैं तो भी वे इतना नहीं करते कि इन लोगों की यथासंभव सहायता करें। वे यदि चैरिटी करते हैं तो उसका उद्देश्य केवल दूसरों की वाहवाही पाना होता है। उन्हें यह बात सदा ही स्मरण रखनी चाहिए कि इन लोगों की दुआओं से ईश्वर उन्हें और अधिक सुख व समृद्धि देगा।
           धरती और गगन की तरह ही अमीर और गरीब में दूरी नहीं बनानी चाहिए। इन दोनों को सदा सद्भावना के धागे से जुड़कर रहना चाहिए। पूरे समाज के हित के लिए इन पिछड़े लोगों का उत्थान आवश्यक है। इस दिशा की ओर पहला कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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