गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

कर्म पीछा नहीं छोड़ते

हमारे किए गए कर्म कभी हमारा पीछा कभी नहीं छोड़ते। वे केवल परछाई की तरह ही साथ-साथ चलते रहते हैं। बस हमीं हैं जो जाने-अनजाने अपने ही कर्मों से सदा अनभिज्ञ रहते हैं। देर-सवेर हम सबको अपने शुभाशुभ कर्मों के फल से दो-चार होना पड़ता है। उनसे बचकर चाहे हम कहीं दूर देश चले जाएँ अथवा किसी भी सुरक्षित कहे जाने वाले स्थान पर जाकर छिप जाना चाहें, तो भी ऐसा नहीं हो सकता। जहाँ भी हम जाएँगे, हमारे कर्मफल का भोग हमारा साथी बनकर हमारे साथ-साथ चलता रहता है।
       इस विषय को स्पष्ट करती एक बोधकथा पर दृष्टि डालते हैं, जिसे कहीं पढ़ा था। उसमें लेखक का नाम नहीं लिखा हुआ था। कुछ संशोधन एवं परिवर्तन के साथ यहाँ लिख रही हूँ।
       किसी सेठ जी ने एक गलती के लिए अपने मैनेजर को इतना डाँटा कि मैनेजर को मन-ही-मन बहुत गुस्सा आया। सेठ जी को वह कोई जवाब नहीं दे सकता था। अब प्रश्न यह था कि वह अपनी भड़ास किस पर निकाले? अपना मन किस तरह हल्का करे?
         वह सीधा अपने कम्पनी के उस कर्मचारी के पास गया जो उसके अधीन कार्य करता था। उसने अपना सारा गुस्सा उस कर्मचारियों पर निकाल दिया।
        अब वही प्रश्न कि कर्मचारी किस पर अपना गुस्सा निकालें? ऑफिस से निकलते समय उस कर्मचारी ने अपनी कम्पनी के गेट पर ड्यूटी कर रहे वॉचमैन पर गुस्सा उतारा और फिर अपने घर चला गया।
       वॉचमैन को उस व्यक्ति पर बहुत गुस्सा आया था। पर वह किस पर अपना गुस्सा उतरे? जब वह अपने घर गया, तब बिना किसी कारण अपनी पत्नी को डाँटने लगा। उसकी पत्नी उठी और उसने अपने बच्चे की पीठ पर दो-तीन धौल जमा दिए। उसे डाँटते हुए उसने कहा, "तुम सारा दिन टी. वी. देखते रहते हो। कोई काम भी नहीं करते।"
       इस अनावश्यक डाँट-फटकार से परेशान होकर बच्चा घर से क्रोध में निकला और  सड़क पर सो रहे एक कुत्ते को पत्थर दे मारा। वह बेचारा कुत्ता हड़बड़ाकर भागा और सोचने लगा कि इसका मैंने क्या बिगाड़ा था? गुस्से में उस कुत्ते ने एक आदमी को काट खाया। कुत्ते ने जिस व्यक्ति को काटा, जानते हैं वह कौन था? यह वही सेठ था, जिसने अपने मैनेजर को डाँटा था। वह सेठ जब तक जीवित रहा, तब तक यही सोचता रहा कि उस कुत्ते ने आखिर उसे काटा क्यों?
        हमें अब इस प्रश्न पर विचार करना है कि आखिर यह बीज किसने बोया था?
         इस सारे विश्लेषण से यही समझ में आता है कि हमारे शुभ अथवा अशुभ कर्मों के फल कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ते। जाने-अनजाने कितने ही लोग हमारे व्यवहार से त्रस्त होते हैं, परेशान होते हैं। हम कितने ही लोगों का अहित कर देते हैं, जिसका हमें अनुमान भी नहीं होता। इसका कारण यही है कि हम सब अपनी ही धुन में मस्त रहते हैं। किसी दूसरे की खुशी और गमी की हमें बिल्कुल परवाह नहीं होती। किसके दिल को हम चोट पहुँचाते हैं, किसको हानि पहुँचाते हैं, हम लोग कभी इसका आकलन करना ही नहीं चाहते।
      ईश्वर सब कुछ देखता रहता है और निश्चित करता रहता है कि किस कर्म का हमें क्या फल मिलना चाहिए? और किस समय मिलना चाहिए? कई बार ऐसा लगता है कि किसी दूसरे की गलती का फल ही हमें मिल गया है। कभी हमें ऐसा भी लगता है कि दूसरे लोग बिना किसी कारण के ही हमें परेशान कर रहे हैं अथवा हमारा शोषण कर रहे हैं। उस समय हम लोग ईश्वर को दोष देने से नहीं चूकते। उसे अन्यायी, अहंकारी, कठोर आदि की न जाने क्या क्या उपाधियाँ दे देते हैं। वह मालिक है कि हमें कुछ भी नहीं कहता, बल्कि हमारी उस मूर्खता को नजरअंदाज कर देता है।
         उस न्यायकारी ईश्वर के यहाँ ऐसा अन्याय नहीं होता। कभी-न-कभी हमने उस व्यक्ति के साथ कुछ अनुचित किया होता है, तभी उसका वैसा कड़वा फल हमें मिला होता है। समय रहते अपने आने वाले कल के लिए आज से ही तैयारी आरम्भ कर देनी चाहिए। जितना हम दूसरों की भलाई के कार्य करते रहेंगे, उतना ही हम अपना ही भला करते रहेंगे।
चन्द्र प्रभा सूद
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