शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

सुख की नींद

दिनभर की भागदौड़ और हाड़तोड़ मेहनत करने के पश्चात हर मनुष्य चाहता है कि वह रात को सुख की नींद सो जाए। बाधारहित गहरी नींद सोने से उसकी सारी थकान दूर हो जाए और वह आने वाले नए दिन में तरोताजा होकर अपने कार्यों का निष्पादन कर सके। रात को यदि नींद पूरी हो जाती है, तो दिनभर स्फूर्ति रहती है। मनुष्य को आलस्य परेशान नहीं करता। ऐसे कर्मचारी को उसका बॉस बहुत पसन्द करता है। अपने कार्य को भली-भाँति करने वाले को तरक्की मिलती है और वह अपने मालिक की गुड़ बुक्स में आ जाता है।
         इसके विपरीत यदि मनुष्य रात को करवटें बदलता रहता रहता है यानी उसे ठीक से नींद नहीं आती, तो सारा दिन उसे आलस्य आता रहता है। वह उनींदा-सा रहता है। इस कारण वह अपना काम ठीक से नहीं कर पाता। तब उसे घर-बाहर सर्वत्र आलोचना सहन करनी पड़ती है। बार-बार उसके काम में गलती हो जाती है। कोई भी मालिक अपने कर्मचारी की गलती को सहन नहीं कर सकता। इससे कम्पनी का माहौल बिगड़ता है। ऐसे व्यक्ति को नोटिस दिया जाता है। यदि फिर भी उसे समझ न आए, तो उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ जाता है।
          अच्छी नींद न आने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण हमारी आधुनिक जीवन-शैली है। आज हर शादी-ब्याह में बारात आधी रात तक आने लगी है। पार्टी देर रात तक चलती है। उसके चलते देर से घर आना होता है। बड़े शहरों में दूरी अधिक होने से यातायात में समय अधिक लगता है। देर से सोने के कारण मनुष्य की नींद में बाधा आना आवश्यक है। ऑफिस में प्रात: जल्दी जाकर देर रात लौटने से सोने का समय कम मिलता है। शरीर यदि रोगी हो जाय, तब भी नींद बाधित होती है। अनावश्यक सोचना भी नींद का शत्रु बन जाता है। किसी भी कारण से की जाने वाली चिन्ता नींद को पास फटकने नहीं देती। दिन में अधिक सोना रात की नींद का दुश्मन होता है।
        'विदुरनीति:' में महात्मा विदुर ने इस विषय में बताया है-
      दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।
     यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्॥
अर्थात् दिन में मनुष्य को वे कार्य करने चाहिए जिससे रात को सुख से नींद आ सके। जब तक मनुष्य जीवित हैं, तब तक उसे ऐसे कार्य करने चाहिए, जिससे मरने के पश्चात भी वह सुख से रह सके।
        इस श्लोक के माध्यम से महात्मा विदुर मनुष्य को समझाते हुए कहते हैं कि उसे दिन में वे कार्य करने चाहिए, जिससे रात को अच्छी नींद आ सके। मनुष्य यदि ईमानदारी और अपनी सच्चाई से अपने कार्य करेगा, तो उसे किसी से डरने की आवश्यकता नहीं होती। वही व्यक्ति डरेगा जो समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहेगा अथवा पापकर्म करेगा।
यानी चोरी-डकैती, रिश्वतखोरी, हेराफेरी, टैक्सचोरी,  दूसरों को धोखा देना, उनसे ठगी करना आदि दुष्कर्म करेगा। तब वह सदा अपनी पोल खुल जाने और न्याय-व्यवस्था के चक्कर में फँस जाने से घबराता है। वह उनसे बचने के उपाय तलाशता हुआ अपने दिन-रात का चैन गँवा बैठता है। ऐसे में तो उसकी नींद पर असर पड़ेगा ही क्योंकि अनुचित तरीके से कमाए हुए धन को सम्हालकर रखना बहुत कठिन होता है।
         जो व्यक्ति अपने समाज से डरता हुआ कोई अनैतिक कार्य नहीं करता, वह रात को चैन की नींद सोता है। किसी दूसरे का मन, वचन और कर्म से भी अहित न करने वाले को रात में अच्छी नींद आती है। परहित के कार्यों को करने वालों को सुकून रहता है, उनके मन में सन्तुष्टि का भाव रहता है। अपनी दिनचर्या ऐसी होनी जिससे सभी कार्य समयानुसार हो सकें। मनुष्य का आहार-व्यवहार सन्तुलित होना चाहिए। इससे उसका जीवन सही ढर्रे पर चलता रहता है।
          इसी श्लोक में विदुर जी ने कहा है कि मनुष्य को अपने जीवनकाल में ऐसे कर्म कर लेने चाहिए, जिससे इस संसार से विदा होते समय उसके मन पर कोई बोझ न रहे। वह बहुत शान्त मन होकर चिरनिद्रा ले सके। उसके आने वाले जन्मों में भी उसे चैन की नींद आ सके। ऐसी सुकून वाली चिरनिद्रा प्राप्त करने के लिए उसे अपने कर्मों के प्रति सावधान रहना होता है। ईश्वर की उपासना करते रहना चाहिए, तभी मनुष्य जीवन के अन्त में हँसते हुए चिरनिद्रा प्राप्त कर सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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