शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

किशोरावस्था में नशे की लत

किशोरावस्था में नशे की लत यदि किसी को लग जाए तो युवावस्था तक पहुँते-पहुँते वह किशोर बहुत-सी बिमारियों का शिकार बन जाता है। जानते समझते हुए भी जब एक किशोर इनका सेवन करने में आनन्द लेने लगता है तब वह शायद अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों को 'देख लेंगे' कहते हुए एक दुस्साहिक कार्य को अंजाम दे रहा होता है।
          किशोरावस्था की जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह है कि बच्चे युवावस्था और बचपन के बीच की आयु में होते हैं। वे स्वयं को बड़ा कहलवाना चाहते हैं परन्तु उनका मानसिक स्तर बड़ों की तरह नहीं होता। अपने जीवन की इस अवस्था में वे पूरी स्वतन्त्रता चाहते हैं परन्तु उसे सम्हाल नहीं पाते।
         इसी टकराहट में मस्ती-मस्ती में वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। वे दोस्तों के कहने पर सिगरेट, शराब और नशीली दवाइयों के चक्कर में पड़ जाते हैं। यदि वे इन पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहते तो दोस्त उन्हें एक बार चखने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें इसका आनन्द उठाने के लिए उकसाते हैं। एक बार चखने के बाद जब उन्हें लगता है कि वे सातवें आसमान में उड़ रहे हैं। तब उस तथाकथित आनन्द का वे बारबार मजा लेना चाहते हैं।
        धीरे-धीरे ये किशोर इन सबके ऐसे आदी हो जाते हैं कि इनके बिना तो उनका जीवन कष्टदायक हो जाता है। उस समय उनका शरीर लुँजपुँज होने लगता है। बेचैनी बढ़ने लगती है और वे काँपने लगते हैं। जब तक उन्हें नशे की इच्छित डोज न मिले वे अपने स्वाभाविक रूप में नहीं आ पाते। उन्हें नियमित रूप से इसकी आवश्यकता रहती है।
         आजकल पब संस्कृति का चलन भी बढ़ता जा रहा है। उसमें जाना इन लोगों का सहज ही शगल बन जाता है। इसी प्रकार रेव पार्टियों में भी इनका दोस्तों के साथ आना-जाना होने लग जाता है। इन सबकी चर्चा समाचार पत्रों व टीवी पर दिखाई जाती रहती है।
          इन किशोरों का कुसंगति में पड़ जाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इनकी देख-रेख करने वाला प्राय: घर में कोई नहीं होता। घर में यदि नौकर हो तो वह बच्चों से कुछ कह नहीं सकता।
       माता-पिता दोनों ही अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। भौतिक जगत की अपनी सारी समस्याओं को सुलझाने में वे इतना अधिक खो जाते हैं कि भूल जाते हैं कि घर पर उनके वे बच्चे उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं जिन्हें उनकी जरूरत है। जिनके लिए वे दिन और रात कोल्हू के बैल की तरह जुटे रहकर कार्य कर रहे हैं।
          बच्चे सवेरे से शाम तक खाली रहते हैं। न कोई उन्हें टोकने वाला होता है और न कोई पूछने वाला कि वे अब तक कहाँ थे। कुछ बच्चे इस सबसे उकता जाते हैं और अपने माता-पिता को परेशान करने के लिए भी इस गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं जहाँ से वापसी की संभावनाएँ बहुत कम होती हैं।
         जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है तब माता-पिता के जागने का लाभ नहीं होता। उस समय डाक्टरों के चक्कर लगाते हुए वे अपना धन और समय दोनों को ही बरबाद करते हैं। उस समय उन किशोरों को कोसने अथवा अपने भाग्य को दोष देने का फायदा नहीं होता। समय रहते यदि किशोरों की सुध ले ली जाती तो ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
        कई सामाजिक व सरकारी संस्थाएँ इन लोगों के पुनर्वास के लिए प्रयत्नशील हैं। परन्तु उनके प्रयासों का सुखद परिणाम तभी सामने आ सकता है जब ये किशोर स्वयं अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाकर अपने आप को सुधारना चाहें।
चन्द्र प्रभा सूद
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