शनिवार, 29 दिसंबर 2018

अग्नि

अग्नि का गुण जलाना होता है। हम इसे छू नहीं सकते। हम जानते हैं कि इस पर हाथ रखेंगे तो वह जल जाएगा और फिर बहुत कष्ट देगा। उष्णता, तेज और प्रकाश इसके स्वाभाविक गुण होते हैं। अग्नि से हमारा जीवन चलता है। हम हर प्रकार के अन्न को इसी के माध्यम से पकाकर खाते हैं और स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लेकर अपने शरीर को पुष्ट करते हैं।
          यदि यह अग्नि न होती तो हम आज भी आदि मानव की तरह पेड़ों से तोड़कर सब कच्चा ही खाते। इसी अग्नि के कारण हम जीवन में सभी प्रकार की सुख और सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। हमारे घर और बाहर हर ओर रौशनी होती है।
         अग्नि तीन प्रकार की मानी जाती है- दावानल, बड़वानल और जठराग्नि।
दावानल जंगल में लगने वाली आग होती है जो जरा-सी हवा चलने पर विशाल जगलों को जलाकर राख कर देती है। उसमें बड़े-बड़े वृक्ष, पशु और पक्षी जलकर खाक हो जाते हैं। बड़वानल समुद्र में लगने वाली आग को कहते हैं। पानी की यही आग है जिससे हम बिजली बनाते हैं और जीवन का आनन्द लेते हैं।
        जठराग्नि मनुष्य के शरीर में होती है। यह भोजन को अच्छे से पचाने में सहायता करती है। शरीर की अग्नि जब सुचारू रूप से काम करती है तब मनुष्य के चेहरे पर तेज चमकता है उसकी रौनक ही अलग दिखाई देती है। युवावस्था में प्राय: लोगों के चेहरों पर हम देख सकते हैं। अपने जीवन को संयमित रखने वालों के चेहरों पर तेज हमेशा दिखाई देता है।
        यदि यह अग्नि शरीर में बढ़ जाए तो बहुत-सी परेशानियों को जन्म देती है। मनुष्य का चेहरा लाल हो जाता है। पसीना भी बहुत अधिक आने लगता है। एसिडिटी और रक्त संबंधी दोष शरीर में हो जाते हैं। शरीर में जलन होने लगती है। जरा-सी ठंड लग जाने पर खाँसी-जुकाम जैसी परेशानी हो जाती है।
          बारबार छींकते रहना पड़ता है। आवाज भारी हो जाती है और गला बैठने लगता है। यदि शरीर की अग्नि मन्द हो जाती है तो मनुष्य का चेहरा कान्तिहीन हो जाता है। उस समय उसे बहुत से रोग घेर लेते हैं। उसकी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है जिससे उसका भोजन पच नहीं पाता। पेट की बहुत-सी बिमारियों से मनुष्य घिर जाता है। पेट खराब हो जाने से खाने-पीने के परहेज करने पड़ते हैं।
        कभी घरों, बाजारों या फैक्टरियों आदि में आग लग जाए तो कितना नुकसान कर देगी पता नहीं। न जाने कितने ही लोगों की जान भी चली जाती है।
         यह अग्नि किसी को भी क्षमा नहीं करती जो इससे घिर जाता है वह फिर भस्म हो जाता है परन्तु जब यह बुझ जाती है तो चींटियाँ भी इस चलने लगती हैं। इसी प्रकार मनुष्य जब रोगों से घिर जाता है तो वह भी तेजहीन हो जाता है। उसका चेहरा पीला या सफेद पड़ जाता है। उस समय वह सामर्थ्यहीन होकर ईश्वर से अपनी मृत्यु की गुहार लगाता है।
          अग्नि के प्रभाव से विभिन्न पदार्थ रूप परिवर्तित करते हैं। अग्नि हमेशा ही शुद्ध होती है। इसमें कैसा भी कचरा डाल दो उसे भस्म कर देती है। इसी अग्नि में ही शव का दाह संस्कार भी करते हैं। किसी वस्तु अथवा विचार की शुद्धता की परीक्षा अग्नि में तपने के बाद ही होती है। यह रूक्ष होती है। अग्नि संयोग और वियोग दोनों का ही कारण भी होती है। कहने का तात्पर्य है कि स्त्री और पुरुष के प्रेम का आधार अग्नि तत्त्व होता है। इसके मन्द पड़ जाने पर अलगाव की स्थिति बन जाती है।
         अग्नि हर स्थान पर अपनी शुद्धता को दर्शाती है। इसके न होने पर इसके तेज, प्रकाश और ताप से ही इस सृष्टि का जीवन है। इसके न होने पर चारों ओर अंधकार तथा शीत का प्रकोप हो जाएगा जिसके कारण इस जीव जगत का अस्तित्व ही नहीं रहेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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