सोमवार, 10 दिसंबर 2018

कुविचार

खाना खाते समय कभी-कभी ऐसा होता है कि अन्न का कोई दाना अन्न नली (food pipe) के स्थान में जाने के बजाय गलत नली में चला जाता है। उसका कारण खाते समय बात करना हो सकता है या फिर लेटकर भोजन खाना भी हो सकता है। उस समय खाँस-खाँसकर मनुष्य की बुरी हालत हो जाती है। जब तक वह दाना गलत उस नली से निकल नहीं जाता, तब तक मनुष्य चैन की साँस नहीं ले पाता। कभी-कभार उसकी हालत इतनी खराब हो जाती है कि उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ जाता है। तब जाकर उसकी तबियत में सुधार होता है।
           इसी प्रकार एक भी कुविचार जब मनुष्य के मन में आ जाता है, तो उसके मन में उसी प्रकार से उथल-पुथल मचने लगती है, जैसे शान्त जल में कंकड़ फैंकने से जल में तूफान आ जाता है। मनुष्य को प्रयास यही करना चाहिए कि कोई भी कुविचार उसके मन में प्रवेश करके उसे उद्वेलित न करने पाए। परन्तु ऐसा हो नहीं पाता। मनुष्य कुविचार के मन में आ जाने कारण ऊहापोह की स्थिति में आ जाता है। तब वह अच्छे और बुरे में अन्तर करना भूल जाता है। यह वह समय होता है, जब मनुष्य के मन पर कुविचार इतना हावी हो जाता है कि उसकी अच्छी नियत या उसके सद विचार पता नहीं कहाँ पीछे छूट जाते हैं।
           जो भी कोई उसे समझाने का प्रयास करता है, उसे वह मनुष्य दुश्मन की तरह दिखाई देता है। वह यही सोचता है कि वह तो इतना समझदार है और दूसरे उसे उपदेश देने से बाज नहीं आते। यह बात उसे हजम नहीं होती। इसलिए चाहे उसका कितना भी प्रिय व्यक्ति क्यों न हो, उससे किनारा करने में वह जरा भी देर नहीं करता। वह अपने मिथ्याभिमान के कारण अकड़ता रहता है और स्वयं को सबसे महान समझने की भूल करके जग में अपना उपहास करवाता है।
         उस स्थिति में मनुष्य परेशान रहने लगता है। बार-बार उसके विषय में सोचता रहता है। फिर वह पिष्टपेषण करने लगता है। तब उसे समझ में ही नहीं आता कि उस स्थिति से वह कैसे उभरे? इस समय उसे क्या उपाय करना चाहिए? उसे किससे और कैसे बात करनी चाहिए?
         इस उहापोह की स्थिति में मनुष्य को कुछ भी नहीं सूझता। यदि कुछ भी समझ में न आए, तब उसे किसी ऐसे विद्वान मनीषी के पास जाकर परामर्श करना चाहिए, जिस पर वह आँख बन्द करके विश्वास कर सकता है। ऐसा विश्वसनीय मनीषी उसकी समस्या को ध्यान से सुनकर, उससे बाहर निकलने का उपाय अवश्य बताएगा। उसका अनुसरण करके अपने मन में आए कुविचार से छुटकारा पाने में मनुष्य को निश्चित ही सफलता मिलेगी।
        इसके विपरीत यदि मनुष्य को किसी पर विश्वास नहीं है अथवा वह अपनी जगहँसाई से डरता है, तो उसे अपने महान ग्रन्थों का सहारा लेना चाहिए। उस सत्साहित्य का उसे अध्ययन करना चाहिए। वहाँ उसे अवश्य ही अपनी समस्या का कोई-न-कोई निदान मिल जाएगा। उसके अनुसार आचरण करके भी मनुष्य को लाभ होता है। तब वह अपने उस कुविचार से मुक्त होकर सकारात्मक विचार अपना सकता है और समाज में सिर ऊँचा करके चल सकता है।
         इनसे भी बढ़कर मनुष्य ईश्वर का स्मरण करते हुए, सब कुछ उस मालिक पर छोड़ सकता है। वही हर मुश्किल से बचने की शक्ति देता है व मार्ग सूझता है या फिर ऐसे लोगों को पेज भेजता है, जो उसे सत्य का मार्ग की ओर ले जाता है। वह मालिक हमारी बेहतरी हमसे अधिक जानता और समझता है। यदि मनुष्य दुनिया के लोगों से पूछेगा, तो वे उस मालिक से अधिक उसकी सहायता नहीं कर सकते। हो सकता है वे उसे कोई सकारात्मक हल न बता पाएँ। इस स्थिति में तो मनुष्य अपने नकारात्मक विचार के साथ सदा ही परेशान होता रहेगा।
          यदि मनुष्य अपने विचारों की शुचिता पर ध्यान नहीं देगा, तो संसार में उसका जन्म लेने का उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाएगा। फिर मनुष्य मनीषियों के द्वारा कही गई चौरासी लाख योनियों के फेर में फँसा रहेगा। उनसे बच सकने की उसकी सामर्थ्य नहीं है। इस तरह वह अपने जीवन के लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति से बहुत पीछे पिछड़ जाएगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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