बुधवार, 19 दिसंबर 2018

शब्द साथ नहीं देते

बहुधा ऐसा होता है कि मनुष्य बहुत कुछ कहना चाहता है परन्तु उसके अपने शब्द ही उसका साथ नहीं देते। वह अपने भावों को शब्दों में ढाल नहीं पाता। इसलिए मूक रहकर एकटक ताकता रह जाता है या फिर पैर के नाखूनों से धरती खोदने लगता है। यदाकदा वह नजरें भी चुराने लगता है। उस समय उसका मौन अथवा उसके अश्रु उसकी भाषा बन जाते हैं।
           मनुष्य जब बहुत भावुक होता है तब वह बोल नहीं पाता, सहज होने पर ही अपनी बात बता सकता है। इसी प्रकार अत्यधिक कष्ट के समय भी मनुष्य के बोल उसका साथ छोड़ देते हैं। अधिक खुशी के आवेग में, भय या विस्मय, पश्चाताप आदि के समय भी उसकी आवाज नहीं निकल पाती। उसके चेहरे के भावों से उसके हृदय को पढ़ा जा सकता है। इसीलिए मनीषी कहते हैं कि मनुष्य का चेहरा ही उसका आईना कहलाता है, जो उसके सभी प्रकार के मनोगत भावों को बिना कहे प्रकट कर देता है।
           इन सबके अतिरिक्त कई बार दूसरों के प्रति सम्मान भाव के कारण भी मनुष्य चाहते हुए भी प्रतिकार स्वरूप नहीं बोल पाता कि उसे अमुक बात पसन्द नहीं आई। चुप की भी अपनी एक आवाज होती है जो बिना कुछ बोले दूसरे के हृदय को चीर कर रख देती है। मनुष्य के हावभाव से उसका हर्षोल्लास झलकता है जो हर किसी को दिखाई देता है।
           ऐसा भी कहा जाता है कि घमण्डी के पैर जमीन पर नहीं पड़ते। उसके बिना कुछ कहे ही उसके व्यवहार से ही सब ज्ञात हो जाता है। मौन रहते हुए मनुष्य की सफलता-असफलता उसके बारे में बहुत कुछ कह देती हैं।
            पैसे के लिए प्रसिद्ध है कि वह बोलता है। पर पैसा तो निर्जीव है, वह बोल नहीं सकता। इसका यही अर्थ है कि जब किसी भी स्त्रोत से पैसा मनुष्य के पास अधिकता से आता है तब उसकी सद्य: खरीदी जाने वाली सुविधाएँ उसके पास पैसा होने के रहस्य की पोल खोल देती हैं। यहाँ पर भी वाणी के व्यवहार की आवश्यकता नहीं होती।
           बिना शब्दों का उच्चारण किए भी मनुष्य अपने भावों को व्यक्त करने में समर्थ हो सकता है। यहाँ मैं याद दिलाना चाहती हूँ कि सौभाग्य से मनुष्य जन्म पाकर भी जब दुर्भाग्यवश मनुष्य को ईश्वर की ओर से वाणी का उपहार नहीं मिलता तब वह गूँगा कहलाता है। वह अपने विचारों को बोलकर प्रकट नहीं कर सकता परन्तु उसके व्यवहार अथवा चेहरे के भावों से ही घर-परिवार के लोग अथवा बन्धु-बान्धव उसके सारे भावों को सहजता से समझ लेते हैं।
          हम अपने घर में मूक पालतू पशुओं को रखते हैं। वे तो हमारी तरह बोल नहीं सकते पर अपने स्पर्श से, अपने हावभाव से मौन रहते हुए अपने प्यार, क्रोध या जिद आदि के भावों को बखूबी समझा देते हैं। इसी प्रकार अपनी भूख-प्यास आदि दैनिक आवश्यकताओं के बारे में भी अच्छी तरह अवगत करवा देते हैं।
         इन्सान जितने भी घण्टे-घड़ियाल बजा ले पर ईश्वर उसे नहीं मिलता। वह तो उसके शुद्ध और पवित्र मन-मन्दिर में ही मिलता है। मनीषी कहते हैं कि ईश्वर भाव में रहता है। कहते हैं जिस प्रकार गूँगा व्यक्ति गुड़ के स्वाद का बखान नहीं कर सकता वैसे ही हम उस प्रभु का वर्णन नहीं कर सकते। उसका चित्रण करते समय हमारी वाणी 'नैति नैति' कहती है। अर्थात् ईश्वर यह भी नहीं है, वह भी नहीं है।
           चारों ओर पसरा सन्नाटा मनुष्य की कहानी बिन कहे सुना देता है। किसी सज्जन के प्रति किए गए अभद्र व्यवहार की क्षमा न माँगने पर भी उसके अविरल बहते आँसू उसकी क्षमायाचना का कारण बन जाते हैं।
           मौन रहते हुए भी माता-पिता बच्चों को बहुत-सा व्यावहारिक ज्ञान दे देते हैं। इसलिए यह आवश्यक नहीं कि सारा समय हो-हल्ला करके ही अपनी बात रखी जाए या सान्त्वना दी जाए। मौन रहकर समझाई गई बात भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती। उसकी मारक शक्ति अधिक होती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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