सोमवार, 28 जनवरी 2019

बच्चों की बस में सुरक्षा

हमारे देश मे सड़क दुर्घटनाएँ बहुत होती हैं। इन दुर्घटनाओं में अनेक लोगों की मौत हो जाती है, वे तो चले जाते हैं पर पीछे वालों को सदा के लिए दुख दे जाते हैं। कुछ लोग अपाहिज भी ही जाते हैं और फिर जीवनभर कष्ट भोगते हैं। अपने लाडलों को स्कूल बस में या वैन में स्कूल खुशी-खुशी भेजने वाले माता-पिता निश्चिन्त हो जाते हैं। परन्तु क्या वे वाकई निश्चिन्त हो सकते हैं?
         इस प्रश्न पर विचार करने पर उत्तर न में ही होगा। इसका कारण है बच्चों के प्रति उनका मोह। जब तक बच्चा सही-सलामत घर वापिस न आ जाए उनके मन में अपने बच्चों के सकुशल होने के विषय मे सन्देह बना रहता है। यह स्वाभाविक भी है। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। अपने बच्चों की चिन्ता करना उनका मौलिक अधिकार है। कोई चाहे कुछ भी कहे माता-पिता तो आखिर अपने बच्चे के लिए चिन्तित रहेंगे ही।
         स्कूल की बसों में आवश्यता से अधिक बच्चे भर दिए जाते हैं। बस में बैठने की जगह न होने के कारण बच्चे बाहर लटकते रहते हैं। बस जब गति से चलती है तब उन बच्चों के गिर जाने का खतरा बना रहता है। बच्चे तो आखिर बच्चे हैं, वे मानते भी तो नहीं हैं। इसी तरह स्कूल वैन में क्षमता से अधिक बच्चे भरे जाते हैं। माता-पिता देखकर भी आँख मूँद लेते हैं। बस हो अथवा वैन बच्चे टिककर बैठते नहीं हैं, वे शरारतें करते रह्ते हैं। इस कारण भी एक्सीडेंट हो जाते हैं।
         कुछ बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद मस्ती करते रहते हैं, बस में आकर नहीं बैठते। जब बस चलने लगती है तब उस चलती बस में चढ़ते हैं। इस कारण भी कई बार एक्सीडेंट हो जाते हैं। अभिभावकों और अध्यापकों का दायित्व बनता है कि वे ऐसे बच्चों को समझाएँ और यदि वे बच्चे न मानें तो उनके लिए कठोर कदम उठाएँ।
         कई बार स्कूल वाले जल्दीबाजी में या अनजाने में अनट्रेंड ड्राईवर रख लेते हैं। और इसी तरह अयोग्य लोग भी वैन चलाने लगते हैं। जब तक पर्याप्त अनुभव न ही तब तक बस या वैन नहीं चलानी चाहिए। यहाँ क्योंकि बच्चों के जीवन का प्रश्न होता है, इसलिए अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। कभी-कभी स्कूल बस अथवा वैन के ड्राइवर की अक्षमता व असावधानी के कारण एक्सीडेंट हो जाते हैं।
            सड़क पर बस या वैन में बच्चे अधिक होने पर भी जब ड्राईवर गाड़ी तेज चलाते हैं या ओवरटेक करने के चक्कर में भी कई बार एक्सीडेंट हो जाते हैं। कभी -कभी अधिक स्पीड होने पर गाड़ी सम्हाल न पाने से भी एक्सीडेंट हो जाते हैं। ड्राईवर शायद भूल जाते हैं कि वे छोटे बच्चों को लेकर जा रहे हैं।
          सरकार ने इस विषय में गाइड लाइन स्कूलों के लिए जारी की है। स्कूलों को बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करने चाहिए। स्कूलों को चाहिए कि वे ऐसे ड्राईवर रखें जिनका बस चलाने का अनुभव कम-से-कम पाँच वर्ष का हो। उनका हेवी व्हीकल चलाने का लाइसेंस बना हुआ हो। साथ ही उन का कोई चालान न कटा हो और उन्हें कभी जेल न हुई हो। स्कूल बस में गार्ड तैनात करने चाहिए जो बस में बच्चों पर ध्यान दें, उनकी बस में होने वाली परेशानियों को सुनें। यह भी सुनिश्चित करें कि बच्चा अपने ही स्टेण्ड पर उतर रहा है।
          प्राइवेट वैन के लिए भी सरकार ने कहा है कि वे अपनी वैन को रजिस्टर कराएँ। माता-पिता को चाहिए कि वे भी सुनिश्चित कर लें कि जिस वैन से वे अपने लाडलों को भेज रहे हैं उसके पास लाइसेंस तो है। इसके अतिरिक्त जितने बच्चों के बैठने का स्थान है, उसमें उतने ही बच्चे बैठे हों।
         इन छोटी-छोटी बातों का यदि स्कूल प्रशासन और अभिवावक ध्यान रखें तो होने वाले एक्सीडेंटस से बच जा सकता है। मासूम बच्चों के जीवनों को बचाया जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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