सोमवार, 21 जनवरी 2019

संगति का प्रभाव

मनुष्य के जीवन पर संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है। यह सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य को उसकी विचारधारा, उसकी मनोवृत्ति के अनुरूप साथी मिल जाते हैं। मनुष्य स्वयं कितना ही गुणी हो किन्तु दुर्जन के साथ मित्रता होने के कारण उसकी गणना दुष्ट लोगों में की जाती है। लोग शराबी के साथी को शराबी समझते हैं, जुआरी या सट्टेबाज के मित्र को जुआरी कहते हैं, चोर के दोस्त को चोर मानते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कुसंगति में रहने वाले अच्छे-भले मनुष्य को भी लोग सदा हिकारत की नजर से देखते हैं। कुसंगति में रहने वाला मनुष्य धीरे-धीरे उसी रंग में ढल जाता है और फिर समाज से कट जाता है।
        इसके विपरीत सज्जन लोगों के सम्पर्क में आए दुष्ट को भी लोग भला व्यक्ति मान लेते हैं। अच्छी बात यह होती है कि सुसंगति में रहने वाले मनुष्य के अन्तस् में विद्यमान बुराइयाँ धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं। इससे उसका हृदय शुद्ध और पवित्र होने लगता है। महर्षि वाल्मीकि, अंगुलिमाल डाकू और महाकवि कालिदास आदि महापुरुष सत्संगति के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
       जो मनुष्य जीवन में एक बार दुष्टों के जाल में फँस जाता है, उसका वहाँ से वापिस लौटना बहुत कठिन होता है। यदि वह वहाँ से निकलना चाहे भी तो वे दुष्ट अपने रहस्यों के सार्वजनिक होने के डर से उसे ऐसा नहीं करने नहीं देते। दुष्टों की संगति अच्छे-भले मनुष्य को हैवान या शैतान बना देती हैं। उसका जीवन बर्बाद कर देती हैं। जो व्यक्ति दुष्ट, अन्यायी, दुराचारी, व्यभिचारी होता है, वह किसी का हित नहीं साध सकता। उसे तो बस अपनी ही चिन्ता रहती है।
          एक बोधकथा वाट्सआप पर पढ़ी थी। उसे यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ संशोधन के साथ प्रस्तुत कर रही हूँ। किसी समय एक भंवरे की मित्रता गोबर में रहने वाले एक कीड़े से हो गई। एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा, "भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिए मेरे यहाँ भोजन के लिए आओ।"
          भंवरा भोजन खाने पहुँचा तो सोच में पड़ गया, "मैंने बुरे का संग किया इसलिए मुझे गोबर खाना पड़ रहा है।"
          फिर भंवरे ने कीड़े को अपने यहाँ आने का निमन्त्रण दिया, "कल तुम मेरे यहाँ भोजन के लिए आना।"
          अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा। भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल पर बिठा दिया। कीड़े ने फूल का रस पिया और उसकी सुगन्ध का आनन्द लिया। वह मित्र का धन्यवाद करने ही वाला था कि पास के मन्दिर का पुजारी आया और उस फूल को तोड़कर ले गया। उसने वह फूल भगवान के चरणों में चढ़ा दिया। कीड़े को भगवान के चरणों में बैठने का परम सौभाग्य मिला। सायंकाल पुजारी ने सारे फूलों को एकत्र करके गंगा जी में प्रवाहित कर दिया। कीड़ा अपने सौभाग्य पर इतरा रहा था। इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया और उसने पूछा, "मित्र! तुम्हारा क्या हाल है?"
           कीड़े ने कहा, "भाई, जन्म-जन्मान्तरों के पापों से मेरी मुक्ति हो गयी है। ये सब अच्छी संगत का ही फल है।"
        किसी कवि ने सच ही कहा है-
     संगत से गुण ऊपजे, संगत से गुण जाए।
     लोहा लगा  जहाज में , पानी में  उतराय।।
अर्थात् अच्छी संगति से मनुष्य के गुणों में वृद्धि होती है और कुसंगति में रहने से उसके सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। जैसे जहाज में लगा हुआ लोहा भी पानी में उतरकर सागर पार कर जाता है।
          कोई मनुष्य यह नहीं जानता कि जीवन के सफर में हम लोग एक-दूसरे से किस कारण से मिलते हैं? परिवारीजनों के अतिरिक्त हमारा किसी के साथ रक्त का सम्बन्ध नहीं होता। फिर भी ईश्वर की कृपा से हम अन्य लोगों के साथ मिलकर हम अनमोल रिश्तों में बंध जाते हैं। हमें ऐसे रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।
            मनुष्य को सदा सज्जनों की संगति में रहना चाहिए। ज्ञानियों, विद्वानों की संगति में रहने वाले मनुष्य को कभी पश्चाताप नहीं करना पड़ता। ईश्वर से प्रीत लगाने से आस्था जागृत होती है। ईश्वर सदा अच्छे और सच्चे लोगों को चाहता है, दुर्जनों को वह पसन्द नहीं करता। ऐसे सज्जन लोग ईश्वर के अनुग्रह से कभी परेशान नहीं होते। ईश्वर की कृपा उन पर अनवरत बरसती रहती है। 
चन्द्र प्रभा सूद
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