बुधवार, 30 जनवरी 2019

जिन्दगी की बाजी

जीवन के मोर्चे पर डटी हुई पीढ़ी जब जिन्दगी की बाजी हारने लगती है तब उस समय उसे सहारा देने के लिए, उसके पीछे तैयार हुई एक नई पीढ़ी आकर खड़ी हो जाती है। जिस प्रकार युद्ध के मैदान में पहली पंक्ति के योद्धाओं के शहीद हो जाने पर, उसके पीछे वाली पंक्ति के जवान आकर कमान सम्हाल लेते हैं। दुश्मन के दाँत खट्टे करने में अपना पूरा जोर लगा देते हैं। अन्ततः विजय को प्राप्त कर ही लेते हैं।
        यदि मनुष्य के जीवन-क्रम पर दृष्टि डालें तो ईश्वर की रचना में हम कभी कोई कमी नहीं निकाल सकते। वह प्रभु जिस प्रकार स्वयं पूर्ण है, उसी प्रकार उसकी रचना यह संसार भी पूर्णता लिए हुए हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि एक नई पीढ़ी जन्म लेती है तो अशक्त होती हुई वृद्ध पीढ़ी इस संसार से विदा लेती है। इन दोनों के बीच की युवा पीढ़ी ही दोनों ही पीढ़ियों को सम्हालती है और सहारा देती है।
          आज के समय और परिस्थितियों के अनुसार युवक और युवती जब विवाह के बन्धन में बँधते हैं तो उस समय उनकी आयु लगभग पच्चीस और तीस वर्ष के बीच होती है। जब शिशु का जन्म होता है तब वे उसे कदम दर कदम चलना सिखाते हैं और उसे बोलना सिखाते हैं, स्वावलम्बी बनाते हैं। इसी क्रम में वह बच्चा एक-एक कक्षा करके स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूर्ण कर लेता है। इस तरह सफलता के सोपानों पर चढ़ते हुए वह समयानुसार नौकरी अथवा कोई व्यवसाय करता है। उसके पश्चात वह भी अपना जीवन साथी निश्चित करके अपनी गृहस्थी बसा लेता है। यानी उस समय उसकी आयु भी पच्चीस-तीस वर्ष की हो जाती है। इस समय उसके माता-पिता की आयु पचपन-साठ की हो जाती है। यानी वे रिटायरमेंट की आयु साठ वर्ष के करीब पहुँच जाते हैं। इस आयु के बाद धीरे-धीरे बिमारियों का उदय होने लगता है। यह क्रम इसी प्रकार अबाध गति से अनवरत चलता रहता है।
          यहाँ मैं कहना चाहती हूँ कि युवा पीढ़ी में जोश होता है, कुछ भी कर गुजरने का जज्बा होता है। यह पीढ़ी अपने माता-पिता के धीरे-धीरे गिरते स्वास्थ्य को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहती है। अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने और उनका उपचार करवाने के लिए सहजता और सरलता से भागदौड़ कर लेती है।
           बुजर्गों को अनावश्यक रूप से इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। बच्चे स्वयं ही उन्हें सम्हालकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। कहीं एक्सरे करवाना है तो कहीं टेस्ट करवाने हैं। कभी रिपोर्ट लेकर आनी है। इन सब चिन्ताओं से बुजुर्गो को मुक्त रहना पड़ता है। यदि अस्पताल में रहकर चिकित्सा करवानी पड़ जाए तो यह पीढ़ी उसके लिए भी कटिबद्ध रहती है। इस आयु का उत्साह और भागदौड़ करने की क्षमता या प्रकृति ही उनकी विशेष पूँजी होती है।
          मैं सभी सुधीजनों से आग्रह करना चाहूँगी कि आप अपने बच्चों पर विश्वास बनाकर रखिए। यदि आप ही उन पर अविश्वास करेंगे तो फिर किसे अपना कह सकेंगे? आज की युवा पीढ़ी बहुत समझदार व व्यवहार कुशल है। उसे भले और बुरे की पहचान करने की परख है। उसे धिक्कारने के स्थान पर उसके साथ सामञ्जस्य बनाने का प्रयास कीजिए। अपने बच्चों की बुराई कभी भी किसी के समक्ष नहीं कीजिए। दूसरे बच्चों को अपना कहना और अपनों को नकारना अच्छी बात नहीं है। सुख हो अथवा दुख, साथ तो अपने बच्चों ने ही निभाना है।
          जिस प्रकार बचपन में अपने बच्चों के सिर पर वरद हस्त रखते थे, वैसे ही अब भी रखिए। उनकी कमियों को अनदेखा करके उन पर प्यार और आशीर्वाद की बौछार कीजिए। बच्चों की मजबूरियों को कभी उनकी लापरवाही समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। उन्हें जीवन के हर कदम पर प्रोत्साहित कीजिए। फिर देखिए आपका घर निश्चित ही स्वर्ग बनेगा और आप सभी परिवारी जन उसमें सुख तथा चैन से रह सकेंगे।
          सृष्टि का यह क्रम इसी प्रकार चलता रहा है और चलता रहेगा। एक नई पीढ़ी आएगी और दूसरी पुरानी पीढ़ी को उसके लिए स्थान छोड़ना ही पड़ेगा। इस सत्य को जितना शीघ्र स्वीकार कर लिया जाए, उतना ही श्रेयस्कर है।
चन्द्र प्रभा सूद
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