गुरुवार, 31 जनवरी 2019

जन्म के साथ मृत्यु

सामने इशारे से
मौत मुझे बुला रही है
मानो मेरी खास सहेली हो
नाटक कर रही हूँ उसे न पहचानने के लिए।

अपनी बाँहें पसार
भागकर आना चाहती है
मुझे गलबहियाँ डालने वह
जैसे बिछुड़ गई थी मुझसे जन्मों के लिए।

मैं अनजान बनी
उसे अनदेखा कर रही हूँ
वह तो जैसे हठ ठाने बैठी है
मुझे अपनी बाहों का हार पहनाने के लिए।

उस परम सखी से
नजरें नहीं मिला सकती
तो भला कैसे जा सकती हूँ
उसके साथ मैं अनन्त की नवयात्रा के लिए।

अभी निपटाने हैं
मुझे असार संसार के
बहुत से अनसुलझे कार्य
सजाने हैं मुझे पंख अपने अरमानों के लिए।

इस पगले मन के
अरमान चहक रहे हैं
उन्मुक्त नील गगन में
एक लम्बी-सी सुखभरी उड़ान भरने के लिए।

मुझे कुछ कहना है
फिर सुनना भी तो है
अब और भी बुन लेने हैं
नित नए सपने अपनों की खुशियों के लिए।

आखिर कब तक
बहला-फुसला सकूँगी
नए-नए बहाने गढ़ करके
अपनी सखी को मैं साथ ले जाने के लिए।

मैंने इरादा किया
उसकी आँखों में आँखें
डालकर उससे पूछ ही लिया
कब तक करोगी प्रतीक्षा मुझे पाने के लिए।

मुस्कुराकर बोली
वह गहरे देखते हुए
वर्षों बीत गए अरी सखी
सामने थी तेरे, तूने देखा नहीं संसार के लिए।

तेरे जन्म के साथ
मैं धरा पर आई थी
सोचती थी अपना रिश्ता
सदा उदाहरण बना रहेगा दुनिया के लिए।

संसार में तुम
ऐसी खो गई कि
पलटकर भी नहीं देखा
मैं खड़ी हुई थी तुम्हारी एक नजर के लिए।

बाहों में बाहें थामें
चलते हैं जहाँ से दूर
जहाँ कोई न हम दोनों को
अलग कर सके फिर कभी एक पल के लिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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