गुरुवार, 1 जनवरी 2015

चल रे बटोही

चलता चल रे बटोही अपने जीवन पथ पर आगे
देख न मुड़कर आगे पीछे क्यों हरदम बस भागे
खुद को यूँ न समझ अकेला तो सब अपने लागे
बीत गए हैं वर्षों सोते-सोते अब तक न तुम जागे

न कोई शिकवा न कोई शिकायत रह जाए आगे
सम्हालो इस जीवन में रिश्तों के उलझे टूटे धागे
बस थामो अपने जज़्बातों को उनके वेग न लागे
पीछे मुड़ देखने की आस यहाँ पर कभी न जागे

मेरे मानस में कभी नहीं कोई था यूँ सबसे आगे
सब अपने हैं इनको दुख देकर मत करना नागे
स्वार्थ ये का चश्मा उतरो फिर सब अपने लागे
सबको बना लो अपना तबही मन मेंममता जागे

चारों ओर उमड़ रहा प्यार का सागर तब आगे
सुनाई दे रहा शोर ठहाकों का सब बाहर भागो
ढूँढ़ो रहे हो भाई क्या सबमें बस अपनापा लागे
बहुत हो गया मान मनौव्वल अब सब जन जागे

हृदय कड़ा मत करो चीत्कार सुन लो बढ़ आगे
बाहर निकलो देखो जग में कौन कितने पग पागे
मनवा है बेचैन बहुत अब तन्हाई में मन नहीं लागे
थोड़ा-थोड़ा कदम बढ़ाने से तो प्रेम रसायन जागे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें