बुधवार, 7 जनवरी 2015

रहस्य उद्घाटित न करें

अपने रहस्यों को कभी दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से स्वयं की हानि होती है। दूसरे को उन्नति करते देखकर बहुत कम लोग हैं जो प्रसन्न होते हैं। आजकल प्रायः लोग एक-दूसरे की टाँग खींचने में ही व्यस्त रहते हैं। अपनी हानि भले ही हो जाए पर दूसरा आगे न बढ़े यह प्रवृत्ति पनपती जा रही है। इस स्वार्थ वृत्ति के कारण हम पिछड़ रहे हैं।
         जी-तोड़ परिश्रम करके मनुष्य योजना बनाता है। उस योजना का वह यदि बिना हल्ला किए या शोर मचाए क्रियान्वयन करे तो उसमें सफलता प्राप्त कर सकता है। परन्तु यदि कार्य रूप में परिणत करने से पूर्व उस योजना को सार्वजनिक कर दिया जाए तो हो सकता है कि मामूली-सा परिवर्तन करके कोई अन्य उस योजना का लाभ उठा ले। जिसने श्रम करके योजना बनायी है- वह ठगा हुआ महसूस करे और देखता ही रह जाए। ऐसा भी हो सकता है कि लाभ लेने के स्थान पर उसे हानि ही उठानी पड़ जाए। उस समय सिर धुनकर रोने का कोई लाभ नहीं होता। तब फिर वही स्थिति हो जाएगी-
'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।'
         अत: समझदारी इसी में है कि अपना कार्य चुपचाप करो। कार्य सफलता पूर्वक जब पूर्ण हो जाएगा तो बिन कहे सबको पता चल जाएगा कि अमुक व्यक्ति ने ऐसा कार्य किया है।
       अपने देश में ही देखें यदि पोखरण में परमाणु विस्फोट से पहले चर्चा हो जाती तो शायद विश्व के दबाव में आकर हमें यह कार्यक्रम रद्द करना पड़ जाता और आज तक भी हम परमाणु सम्पन्न राष्ट्र न बन पाते।
        इसी प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा की योजनाएँ यदि किसी भी तरह से शत्रु देश के हाथ लग जाएँ तो देश में असुरक्षा का वातावरण बन जाएगा। शत्रु देश उन सभी योजनाओं के सफल होने से पूर्व हमला करके देश को हर प्रकार से कमजोर बना सकता है।
      उस पर अपना आधिपत्य भी जमाकर उस देश को अपने अधीन कर सकता है।
       इसी प्रकार आतंकवादी संगठन जन- साधारण के जान-माल की परवाह किए बिना गुपचुप होकर बड़े खुफिया तरीके से अपनी कुयोजनाओं को अंजाम देते हैं और उसमें सफल भी हो जाते हैं। अगर उनके रहस्य सी बी आई को, रॉ को या सरकार को पहले पता चल जाए तो उनके षडयंत्र का पर्दाफाश हो जाता है और उन आतताइयों को मुँह की खानी पड़ती है।
        इसी प्रकार अपने मन के रहस्यों को भी किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यदि अपने दुख किसी को विश्वस्त मानकर बताएँगे तो सामने तो आपके दुख में दुखी होने का ढोंग करेगा। पीठ पीछे सबके सामने उपहास करेगा। लोगों को चर्चा करने का एक अवसर मिल जाएगा।
        अपनी खुशी यदि बाँटना चाहेंगे तो लोग तब भी मजाक बनाएँगे और पीठ पीछे कहने से नहीं चूकेंगे कि जरा-सी सफलता क्या मिली इसके पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे। बहुत घमंडी हो रहा है।
         अपनी योजनाओं को बनाने में सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है। इसी प्रकार अपने मन के भावों को यथासंभव प्रकट न किया जाए यही सभी के लिए हितकारी है। अपने-आप को संतुलित रखें और दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करते हुए आगे बढ़ते जाएँ।

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