शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

बच्चों में झूठ की आदत

घर में माता-पिता तथा विद्यालय में अध्यापकगण बच्चों में झूठ बोलने की समस्या से परेशान हैं। सोचने वाली बात है कि ये नन्हे-मुन्ने इस आदत के अभ्यस्त कैसे हो जाते हैं? उन बेचारे नौनिहालों को तो यह भी नहीं पता होगा कि वे दिन-प्रतिदिन कितनी भयावह बिमारी का शिकार हो रहे हैं? हमें अब यह सोचना हमारा कर्त्तव्य है कि बच्चों में पाई जाने वाली इस असत्यवादिता पर लगाम कैसे लगाई जाए जिसके कारण वे मासूम हर स्थान पर डाँट-फटकार का सामना करने से बच जाएँ।
      यदि गहराई से सोचें तो इस समस्या की जड़ तक पहुँचने में हमें बिलकुल भी कठिनाई नहीं होगी क्योंकि इसका कारण हम सभी हैं। अब आप सब हैरान हो रहे हैं न मेरी सोच पर। वास्तव में हमें अपने गिरेबान में झाँकने की आवश्यकता है। छोटा बच्चा अपने आसपास के माहौल को बड़ी बारीकी से देखता है। उससे बहुत कुछ सीखता है।
       सबसे पहले अपने घर की बात करते हैं। बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता है। अपने घर में जैसा देखता है उसे ही ब्रह्म वाक्य मान लेता है। घर में उस झूठ का व्यवहार दिखाई देता है। इस वाक्य पर चौंकिए नहीं। प्राय: घर में हर छोटी-बड़ी बात को हम एक-दूसरे से छिपाने की कोशिश करते हैं। इस प्रयास में बारंबार झूठ बोलते हैं। किसी मित्र, पड़ौसी या संबंधी से हम नहीं मिलना चाहते तो कहला देते हैं घर नहीं हैं। घर में इस प्रकार झूठ का व्यवहार देखकर बच्चा उस व्यवहार को सत्य मानकर उसी राह पर चल पड़ता है। जाने-अनजाने हमें अपना असत्य व्यवहार अच्छा लगता है परंतु मासूम बच्चे जब वैसा असत्य व्यवहार करता है तो हम उस पर आगबबूला हो जाते हैं। उसे भला-बुरा कहते हैं, डाँटते-डपटते हैं और जीभर करके उसको कोसते हैं। वह मासूम बेचारा समझ ही पाता अपनी उस गलती को।
       इसी भाँति अपने आसपास हो रहे ऐसे कार्यकलाप उसके विचारों को और अधिक हवा देते हैं। धीरे-धीरे बच्चा झूठे आचरण का इतना आदि हो जाता है कि वह अपनी सुविधा के लिए विद्यालय में अपनों की बिमारी या मौत की झूठी खबर सुनाने में भी परहेज नहीं करता। नित नए बहाने बनाने में वह अपनी शान समझता है।
       विद्यालय में गृहकार्य करके न जाने, परीक्षा में कम अंक आने पर जब उसे माता-पिता के बुलाने पर टालमटोल करने के बहाने बनाता है। माता-पिता के जाली हस्ताक्षर करके वह विद्यालय में डाँट खाने से बचने की कामयाब-नाकामयाब कोशिश करता है। घर में अपनी असफलताओं की चर्चा न करके उन्हें छिपाता है।
          जब तक घर में उसकी असलियत पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकती है। तब बच्चे का सुधार नामुमकिन तो नहीं कठिन अवश्य हो जाता है। इस बात को अवश्य याद रखिए कि इस संसार में बच्चा जब जन्म लेता है तब वह मासूम होता है। इस दुनिया के छल प्रपंचो से अनजान होता है। उसे छल-कपट के संस्कार हमीं देते हैं।
        उन भोलेभाले बच्चों पर हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का अनावश्यक दबाव न डालें जिसके कारण भी हमसे छुपाने के चक्कर में भी वह असत्यवादिता को अपना सखा बना लें और दिन-प्रतिदिन हमसे दूर होते जाएँ।

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