सोमवार, 19 जनवरी 2015

पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास

जिस रिश्ते में सबसे ज्यादा विश्वास होना चाहिए उसी में सबसे ज्यादा बेवफाई होती है समझ नहीं आता। यह बात किरण खेर ने जिन्दगी चैनल पर आ रहे 'कितनी गिरह अब बाकी हैं' के एपीसोड की समरी बताते हुए कही।
       इस वाक्य ने अंतस को झकझोर कर रख दिया। विचार मंथन चलता रहा। उसको आपके साथ साझा करना चाहती हूँ।
         सारे भौतिक संबंधों में पति-पत्नी का रिश्ता बहुत करीबी होता है। जिसे दूसरे शब्दों में हम दो जिस्म और जान मानते हैं। एक जान होने का अर्थ है सब कुछ एक। फिर यहाँ अलगाव वाली बात की तो गुँजाइश ही नहीं बचती। समझ नहीं आता कि 'तेरा और मेरा' का यह भाव इन दोनों के बीच में कहाँ से अपनी नाक घुसा लेता है। बड़ी हैरानी होती है जब आसपास के माहौल में पति और पत्नी को आपस में जाने-अनजाने लड़ते-झगड़ते देखती हूँ।
     पति आगे बढ़े, तरक्क़ी करे तो पत्नी फूली नहीं समाती। खुद ही उसे समाज में हीरो बना देती है।
         दूसरी ओर पत्नी आगे बढ़े, पति से अधिक तरक्की करे तो पति के अहम को ठेस लग जाती है और वह घायल होने लगता है। उसका पुरुषत्व या उसका अहम शायद ऐसे काँच का बना हुआ है जो जरा हल्की-सी चोट लगने से टूटकर किरच-किरच हो  जाता है।
       आज भी पुरुष प्रायः बच्चों की जिम्मेदारी लेने, घरेलू कामकाज में पत्नी
( कामकाजी ) का हाथ बटाना अपनी शान के खिलाफ समझता है।
        प्राय: पुरुषों का तकिया कलाम है कि वे तो पत्नी से बड़ा डरते हैं या घर जाते ही उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है आदि-आदि। उसे न जाने किन-किन नामों से उसे संबोधित कर अपने अहम की तुष्टि करते हैं। दिखावा या छलावा करना उनकी फितरत में शामिल है। मौके-बेमौके सबके सामने पत्नी को अपमानित करने से भी नहीं चूकते।
       पुरुषवादी सोच उस पर हमेशा हावी रही। कहने को तो स्त्री को वह लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा-काली रूप में भगवती मानता है। पर क्या अपनी पत्नी को जीवन में वाकई वह मुकाम दे पाता है? शायद नहीं। खुद को देवता कहलवाना चाहता है पर पत्नी को देवी बनाकर नहीं रखना चाहता। जब तक पति के हाथ की कठपुतली बनकर रहे तो वह सती-सावित्री व पूज्या कहलाती है परंतु यदि पत्नी अपनी इच्छा से कोई भी कार्य करना चाहे तो न जाने किन-किन विशेषणों से उसे नवाजता है।
       दोनों में परस्पर विश्वास व सामंजस्य की कमी दिखाई देती है। अपनी-अपनी बचत व अपने-अपने बैंक खातों को छुपाकर रखते हैं कि दूसरे को कहीं भनक न लग जाए। अपने फोन, फेसबुक अकाउंट या वाटस अप जैसी सोशल साइट्स को ऐसे छुपाते फिरते हैं जैसे कोई खजाना छिपा रहे हों। अरे भाई अगर एक-दूसरे से दुराव-छिपाव की नौबत आ रही है तो क्यों गलत काम करते हो जिसका अंत भला नहीं हो सकता।
        दोनों में परस्पर विश्वास बहुत आवश्यक है। जहाँ अविश्वास होता है या एक-दूसरे विश्वासघात किया जाता है वहाँ तलाक हो जाते हैं। कभी-कभी अपने दूसरे पार्टनर को मार दिया जाता है या मरवा दिया जाता है।
       स्त्री के चरित्र को अबूझ पहेली कहकर अपमानित करते हैं पर वे स्वयं कितने षड्यंत्र करते हैं इसको मानने को भी तैयार नहीं होते। हर आज्ञा का पालन होते देखने का आदि पति किसी भी कदम पर अपनी अवहेलना सहन नहीं कर सकता।
         जीवन का कुछ पता नहीं कौन पहले जाएगा और कौन बाद में। इसलिए जितने पल जिन्दगी के ईश्वर ने दिए हँस-खेलकर बिता लो ताकि बाद में पश्चाताप न करना पड़े। आपसी सामंजस्य से पति-पत्नी रहें तो घर स्वर्ग बन जाता है अन्यथा नरक। उचित यही है कि हम अपने जीवन को संगीत की भाँति गुनगुनाते हुए व्यतीत करें।

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