शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

प्राकृतिक सौंदर्य

रंग-बिरंगे सुन्दर
फूलों की मीलों फैली
यह मनमोहक-सी सुगन्ध
देती है खुशी पर जब हम इसे पाना चाहें

एक वृक्ष से उड़ते
दूसरे पर जाकर बैठते
पक्षियों का मधुर कलरव
कर्णप्रिय हो सकते हैं गर हम सुनना चाहें

नदियों और झरनों
का कलकल करता नाद
पुकार रहा है बार-बार वहाँ
हमको अपने पास पर हम जाना तो चाहें

ऊँचे घने इन पेड़ों से
छन-छनके आता प्रकाश
आँखमिचौली का खेल खेलता
आस में बैठा है पर हम खेलना तो चाहें

खट्टे-मीठे, सुनहरे
हरे-लाल, कच्चे-पके ये
भाँति-भाँति के रसीले फल
हमारे आगमन पर उत्सव मनाना चाहें

ये घने जंगलों की
खुशगवार मस्तियाँ
मुरझाना नहीं है चाहतीं
दिखाना चाहती हैं गर वहाँ जाना चाहें

वे कहना चाहते हैं
जंगली कहकर अब
न नकारो शहरों से दूर
आ जाओ सब गर प्रकृति का नेह चाहें।
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