शनिवार, 4 जुलाई 2015

हीरे की पहचान

हीरे की पहचान जौहरी को ही होती है। वह उसे देखते ही उसके रंग-रूप और कैरेट आदि के अनुसार बिना समय गंवाए उसका मूल्य बता देता है। हम जैसे अनाड़ी कितनी भी देर तक उसे हाथ में पकड़े उल्ट-पुलट कर निहारते रहें फिर भी उसके मूल्य का अंदाजा तक नहीं लगा सकते। हीरा स्वयं यह नहीं कहता कि देखो मैं बहुत मूल्यवान हूँ, मुझे खरीद लो या अपने पास संभालकर रख लो।
         इसी प्रकार इस संसार में हीरे जैसे जो लोग विद्यमान हैं वे भी अपना ढिंढोरा नहीं पीटते और न ही वे स्वयं होकर कहते हैं कि हम विद्वान हैं। आओ हमें पहचान कर हमारी कद्र करो। उन विद्वानों की विद्वता, उनकी सधी हुई वाणी और उनका सभी जीवों के प्रति व्यवहार आदि सद् गुण ही उनकी पहचान होते हैं। वे कहीं भी छिपकर रहें पर फूल की तरह उनकी सुगन्ध चारों ओर फैल जाती है।
           मीलों दूर कूड़े के ढेर की बदबू तेज हवा के चलने पर अपना प्रभाव दिखा देती है। वह पीछा नहीं छोड़ती बल्कि परेशान कर देती है। ऐसे ही हींग को कितनी परतों में छिपाकर रख लो उसकी हीक तो आ ही जाती है। यानि कि सुगन्ध और दुर्गन्ध दोनों ही अपना प्रभाव छोड़ती हैं।
        इसी प्रकार दुर्जन(दुष्ट) की कुख्याति भी देश-देशान्तर में फैलती है। कानून व पुलिस उनके पीछे रहते हैं। उनका दिन-रात का चैन खो जाता है। अपने को बचाने के लिए वे इधर-उधर भटकते रहते हैं और अपने रहने के ठिकाने बदलते रहते हैं। अब सोचिए कि ऐसे अकूत धन का क्या लाभ जो देश व समाज का शत्रु ही बना दे। न चाहते हुए अपना घर-परिवार और बन्धु-बान्धव छुड़वा दे।
        हीरे जैसे विद्वानों की विद्वत्ता देखी जाती है और उनका ज्ञान परखा जाता है, उनकी आयु नहीं देखी जाती। इसी बात इस श्लोकांश में कहा कहा गया है-
           धर्मवृद्धेषु वय: न समीक्ष्यते।
       शरीर में आठ स्थानों से टेढ़े ज्ञानी बालक अष्टावक्र ने उस समय के विद्वानों में अपनी  योग्यता का लोहा मनवा लिया था। हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, सिर्फ खोजने की आवश्यकता है।
         अलौकिक गुणों से युक्त ये महानुभाव सभी के सच्चे हितैषी होते हैं। घर-परिवार, देश, धर्म और समाज की भलाई के लिए हर समय तत्पर रहते हैं। जो कोई इनके पास जाकर इनसे सहायता की अपेक्षा करता है उसे कभी भी निराश नहीं करते। इनका साथ सोने में सुहागे की तरह होता है। ये लोग सत्वगुण वाले सदाचारी होते हैं। जो स्वयं सन्मार्ग पर चलते हैं और समाज को उचित मार्गदर्शन देते हैं। अपना उद्धार करने के लिए इन महानुभावों की संगति यत्न पूर्वक करनी चाहिए।
        इनकी संगति से मन में पड़ी ग्रन्थियाँ स्वतः खुलने लगती हैं और मन में आए हुए सभी दुर्विचार खुद ही किनारा करते जाते हैं। एक दिन ऐसा आएगा जब हम राग-द्वेष, छुआछात, जाति-पाति व अमीरी-गरीबी आदि के भेद से स्वयं को ऊपर पाएँगे। सभी जीव हमारे लिए भी एक समान हो जाएँगे।
           अपने आसपास हमेशा ही ऐसे हीरों की तलाश करते रहिए और यथासंभव उनसे जुड़ने का यत्न कीजिए। इस प्रकार लोक और परलोक दोनों सुधर जाएँगे और ईश्वर प्रदत्त मानव जीवन पाने का उद्देश्य भी पूर्ण हो जाएगा।

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