बुधवार, 1 जुलाई 2015

अनतरात्मा की आवाज

सभी मनुष्यों के मन से एक ध्वनि(आवाज़) आती है जिसे अन्तरात्मा  या आत्मा की आवाज़ कहते हैं। इसके बारे में हम सब ने सुना है। सोचने की बात यह है कि आखिर आत्मा की आवाज़ है क्या? इस विषय में कहा जा सकता है कि यह ऐसी आवाज़ है जो हमें चेतावनी देती है, जगाती है और प्रोत्साहित करती है। इसे केवल हम ही सुन सकते हैं। हमारे पास बैठा हमारा कोई प्रिय या मित्र तक भी नहीं सुन सकता।
        यह आवाज़ कहीं बाहर से नहीं आती बल्कि हमारे अंत:करण से आती है। जैसे हम अपनों से बात करके उसे गुप्त रखते हैं ताकि उसकी सिक्रेसी बनी रहे उसी तरह हमारे अंतस् से आने आवाज़ भी गुप्त रहे इसीलिए यह अन्य किसी को सुनाई नहीं देती। ऐसा ईश्वर ने विधान बनाया है। वह स्वयं प्रत्यक्ष होकर हमें कुछ नहीं कहता पर इस आवाज़ के माध्यम से सजग करता रहता है।
         यह आवाज़ हमें कब जगाती है? यह विचारणीय है। जब भी हम कोई शुभ कार्य (घर-परिवार, समाज आदि के नियमानुसार कार्य) करते हैं तब हमारे मन में उत्साह होता है, खुशी होती है। इसका अर्थ है कि हमारा किया जाने वाला कार्य करणीय है अर्थात् करने योग्य है। यही वे कार्य हैं जो हमें मानसिक शान्ति व चैन की जिन्दगी प्रदान करते हैं। हमें उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाते जाते हैं।
        इसके विपरीत जिन कार्यों को करते समय हमारे मन में उत्साह नहीं होता, वह बैचेन हो जाता है या परेशान होता है तो वे निश्चित ही अकरणीय (न करने योग्य) कार्य होते हैं। घर-परिवार, समाज आदि के नियमों के विरूद्ध किया जाने वाला कार्य है। इसका यही अर्थ होता है कि हमें वह कार्य किसी भी शर्त पर नहीं करना चाहिए। इन कार्यों को करने से मन व्यग्र रहता है, दिन-रात का चैन छिन जाता है। ऐसे कार्यों को करने में असफलता हाथ लगती है।
       मन में होने वाली उथल-पुथल को गहराई से समझने पर स्वयं हम ज्ञात कर सकते हैं कि हमें कौन-से कार्य करने चाहिए और किन्हें छोड़ना चाहिए। यह आवाज़ सदा हमें पतन के रास्ते पर जाने से रोकती है। ईश्वर कभी नहीं चाहता कि हम कुमार्गगामी बनें और घर-परिवार, देश-समाज, पुलिस-कानून आदि से डर-डरकर जीवन व्यतीत करें। उसकी यही इच्छा होती है कि हम सन्मार्ग पर चलकर उसके पास जाने का मार्ग प्रशस्त करें।
         यदि बार-बार हम इस आवाज़ को अपने अहंकार के कारण अनसुना करते हैं तो एक समय ऐसा आ जाता है जब उसे सुन ही नहीं पाते। वह चेतावनी देता रहता है और कोई मौका नहीं छोड़ता पर बस हम ही उससे अनजान बने रह जाते हैं। इसी अज्ञानता के चलते दुखों के सागर में डूबते-उतरते रहते हैं। तब विचार करने लगते हैं कि हमने ऐसा क्या अपराध किया जिस कारण  परेशानियाँ हमारा पीछा नहीं छोड़ रही हैं।
       यदि हम अपनी आत्मा की आवाज़ सुनेंगे और उसे ईश्वर की आज्ञा मानकर कार्य करेंगे तब हम वास्तव में सफलता की सीढ़ियाँ चढेंगे और हमारा मन प्रफुल्लित रहेगा, उत्साहित रहेगा। अपनी व अपनों के जीवन में सुख-शांति बनी रहे इसके लिए अन्तरात्मा की आवाज़ को अनसुना न करते हुए आगे बढ़ते रहें। ईश्वर हम सबका मार्ग प्रशस्त करे।

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