शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

ज्ञान का छींटा

ब़चपन में अपनी माता जी के मैं साथ कभी-कभी आर्य समाज चली जाती थी। वहाँ पर एक भजन गाया करते थे। वह मुझे पूरा याद नहीं पर दो-तीन लाइनें याद हैं-
        तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊँ मैं
        सुनता मेरी कौन है जिसे सुनाऊँ मैं
        जबसे याद भुलाई तेरी लाखों कष्ट उठाए हैं
        छींटा दे दो ज्ञान का होश में आऊँ मैं।
इसे सुनकर बाल सुलभ जिज्ञासा मन में उठती थी। उस समय हम बच्चों में उतनी समझ नहीं थी जितनी आज की पीढ़ी चुस्त है। तब मैं सोचा करती थी कि यह सुनता कौन है? अगर यह सुनता कोई इंसान है तो वह क्या सुनाना चाहता है? वह ऐसा क्यों कहता कि उसकी बात कोई नहीं सुनता? सब उसे नजर अंदाज क्यों करते हैं? ये प्रश्न निरंतर मन को उद्वेलित करते रहे।
       फिर जब कुछ बड़ी हुई तो अर्थ समझ आया कि सुनता कोई इंसान नहीं है बल्कि यह हम सब की पीड़ा है कि हमारी बात कोई नहीं सुनता हम किसे अपनी बात सुनाएँ। अब भी प्रश्न मुँह बाए खड़ा रहता कि माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-रिश्तेदार आदि सभी तो अपने हैं फिर वे हमारी बात क्यों नहीं सुनेंगे?
        उसके बाद जब गहरे उतरी तो समझ आया कि दुनियावी रिश्ते तो बस नाम के हैं। ये सभी पूर्वजन्म कृत हमारे अपने कर्मों के अनुसार हमारे साथ जुड़े हुए हैं। सभी माया में जकड़े हुए लाचार हैं जो चाहकर भी अपनों के लिए कुछ नहीं कर पाते। बस असहाय से उसके दुख-तकलीफों आदि में व्यथित होते रहते हैं।    
       हमारा असली रिश्ता तो उस परमात्मा के साथ है जिसके हम अंश हैं। वही हमारे लिए सब कुछ करता है। हमें सुख-समृद्धि देता है। हमारे कर्मों के हमें अनुसार जन्म भी देता है और हमारा पालन-पोषण करता है। वही हमारी बातों को सुनता है। हमारे सांसारिक रिश्ते-नाते मुँह मोड़ लेते हैं तो इंसान सबसे कटकर अलग-थलग हो जाता है। कोई भी उसका साथी नहीं रहता। उस स्थिति की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
          सोचिए यदि वह मालिक हमारी ओर से मुख मोड़ ले तो? नहीं, हम यह बात स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। उसे प्रसन्न करने के लिए, उसकी कृपा पाने के लिए हम तरह-तरह के यत्न करते हैं। उसे रिझाने की कोशिशों में लगे रहते हैं। उन प्रयासों की सफलता या असफलता निश्चित ही हमारी सच्चाई और ईमानदार कोशिशों पर निर्भर करती है।
         इन पंक्तियों में कहा है कि प्रभु को भुला देने पर लाखों कष्टों का सामना करना पड़ा है। जितना उससे दूर होते जाएँगे उतने ही हमारे दुखों में वृद्धि होती जाती है। हम अज्ञानी हैं इसलिए अपराध कर बैठते हैं। यहाँ उस परमपितासे प्रार्थना की है कि हमें ज्ञान का छींटा दे दो ताकि हम होश में आ जाएँ। जैसे बहोश व्यक्ति को पानी का छींटा देते हैं तो उसकी बेहोशी दूर हो जाती है और उसकी चेतना लौट आती है।
          उसी प्रकार हम अज्ञानियों को जब ईश्वर ज्ञान का छींटा देगा तो हमारा अज्ञान दूर हो जाएगा और हमारे अंतस में ज्ञान का प्रकाश हो जाएगा। तब हमें सही-गलत का भेद समझ में आ जाएगा। उस समय हम कुमार्ग का त्याग करके सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
          दूसरे शब्दों में कहें तो इस संसार की असारता को समझकर हम सारतत्त्व ईश्वर की ओर अपना ध्यान करेंगें। हम तो मनुष्य हैं न, घाटे का सौदा नहीं कर सकते। यहाँ पर भी अपना लाभ देखते हुए प्रभु की ओर सच्चे मन से उन्मुख होंगे। ऐसा करके ही अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने का मार्ग सहज हो जाएगा।

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