मंगलवार, 28 जुलाई 2015

इंसान गलतियों का पुतला

इंसान गलतियों का पुतला है। वह बार-बार गलती करता है और उसका परिणाम आने पर पश्चाताप करता है। समय बीतने पर वह फिर पहले जैसा बन जाता है। यदि वह गलती न करे तो भगवान के समान ही हो जाएगा। जाने-अनजाने मनुष्य बहुत-से अपराध करता रहता है जिनका दण्ड उसे भोगना पड़ता है।
         कभी-कभी किसी मनुष्य का एक दोष भी उस पर भारी पड़ जाता है। परन्तु प्रायः एक दोष उसके गुणों के समूह में उसी प्रकार छिप जाता है जैसे चन्द्रमा पर लगे हुए एक दाग को लोग अनदेखा कर देते हैं। निम्न श्लोकांश में यही भाव है-
          'एको हि दोषो गुणसन्निपाते
          निमज्जति इन्दो किरणेष्विवांक:।'
चन्द्रमा के शीलतता, प्रकाश आदि गुणों के साथ-साथ उसकी सुन्दरता भी महत्त्वपूर्ण है। उसका सौंदर्य तो अनेक कवियों और लेखकों के लिए सदियों से प्ररेणा का स्त्रोत रहा है। वह बच्चों का प्यारा चंदा मामा है। माँ बच्चे को सुलाने व बहलाने के लिए भी चंदा का सहारा लेती है। कितने ही गीत व बच्चों की कविताएँ उसे लक्ष्य करके लिखी गई हैं। ऐसे चंदा में जो एक दाग है उसे लोग नजरअंदाज कर देते हैं। इसने तो वैज्ञानिकों को भी अपनी ओर बहुत ही आकर्षित किया है वे भी इसकी खोज करने के लिए बार-बार उपग्रह भेजते हैं।
          इसी प्रकार जिन लोगों में गुणों की अधिकता होती है उनके एकाध दोष को भी चन्द्रमा के एक दोष की तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। केवल उनके गुणों को ही महत्त्व दिया जाता है दोषो को नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि जो व्यक्ति गुणों की खान हैं उनका एक दोष कष्ट का कारण नहीं बनता।
         गुणीजनों के गुण परखे जाते हैं। यदि वे कसौटी पर खरे उतरते हैं तो फिर लोग उन्हें अपने सिर आँखों पर बिठाते हैं। उनके उन्हीं गुणों को अपनाने के लिए लोग सदैव आतुर रहते हैं।
         अपने घर-परिवार, मित्रों-बन्धुओं व देश-समाज के सभी दायित्वों को वे पूर्ण करते हैं। कुछ दायित्वों को निभाने में हमारा स्वार्थ जुड़ा होता है। परन्तु महान लोगों के सभी कार्य निस्वार्थ होते हैं वे देश, धर्म व समाज के हितों को सर्वोपरि रखते हैं। प्राणीमात्र का हित साधने के लिए वे आतुर रहते हैं। परोपकारी, जनकल्याण की भावना रखने वाले सहृदय लोग वास्तव में महान लोगों की श्रेणी में आते हैं। इसी भाव के कारण ही वे सबके प्रिय बन जाते हैं। जन मानस उनका अनुकरण करता है। वे सभी के बन्धु बन जाते हैं।
         बच्चा माता-पिता के पास बेझिझक होकर अपनी समस्या रखता है।उसे पता होता है कि उसकी समस्या का निदान वे बिना उसका उपहास किए कर देंगे। उसी प्रकार लोग उन्हें अपना शुभचिन्तक मानते हुए निसंकोच अपनी समस्याओं को उनके मार्गदर्शन में सुलझाते हैं। वे जानते हैं कि उनकी समस्याओं को किसी के सामने प्रकट नहीं किया जाएगा और न ही उनका मजाक नहीं बनाया जाएगा।
         मनुष्य को सदा उसके गुणों के कारण ही पहचाना जाना जाता है। उसके सद् गुण उसे महान बनाते हैं। ऐसे लोगों को यत्न पूर्वक खोजना चाहिए और उनकी संगति करनी चाहिए। बड़े भाग्य से ऐसे गुणीजनों के संसर्ग का अवसर हाथ आता है। इनके संपर्क में आने पर मनुष्य बिना किसी के कहे अपनी कमियों को दूर करने का यत्न करता है। उन्हीं की तरह बनने में अपना सौभाग्य समझता है।
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