सोमवार, 27 जुलाई 2015

डॉ अबुल कलाम के देहावसान पर

हमारे भारत के ग्याहरवें राष्ट्रपति डा. अबुल कलाम के देहावसान पर विशेष-
जीवन उसी का सफल है जिसके इस संसार से विदा लेने पर दुनिया को दुख हो। इस मरणधर्मा संसार से हर व्यक्ति को विदा लेनी पड़ती है अर्थात उसका अंत निश्चित है। इसीलिए इस पृथ्वी को मृत्युलोक कहते हैं। इस मृत्युलोक में जो जन्म लेता है चाहे वह मनुष्य है, पशु-पक्षी है, पेड़-पौधे हैं यानि की सम्पूर्ण चराचर जगत अपना-अपना समय पूरा करके इस संसार से विदा ले लेता है। अपना समय से तात्पर्य यह है कि अपने कर्मों के अनुसार ईश्वर जो आयु निर्धारित करके धरा पर भेजता है वही उसका अपना समय कहलाता है।
         इस असार संसार से विदा लेने का कोई-न-कोई बहाना बन जाता है। उसे हम बीमारी, दुर्घटना, हार्टफेल आदि कुछ भी नाम दे सकते हैं। इनके अतिरिक्त कभी-कभी प्राकृतिक आपदाएँ तूफान, बाढ़, भूकम्प आदि भी जीव की मृत्यु के कारण बन जाते हैं। इस संसार में जन्म लेने के पश्चात से ही जीव धीरे-धीरे पल-पल करके मृत्यु की ओर बढ़ता रहता है। फिर भी इस सत्य से वह अंजान बना रहना चाहता है।
       ईश्वर से सदा डरते हुए समाज के हितार्थ कार्यों को करता हुआ मनुष्य खुशी-खुशी इस दुनिया से विदा ले। उसके मन में किसी प्रकार का कोई मलाल शेष न रहे। उसे यह संतोष रहे कि वह इस संसार में आने के अपने उद्देश्य को भूला नहीं अपितु अपने अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की ओर निरन्तर कदम बढ़ता जा रहा है।
           हम इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि हमारा यह शरीर नश्वर है। इस असार संसार में जो जीव जन्म लेता है उसे अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मिला हुआ समय पूर्ण करके इस दुनिया से विदा लेनी पड़ती है। इसमें जीव की इच्छा या प्रसन्नता कोई मायने नहीं रखती।
       हम इस बात को भी भूल नहीं सकते कि हमारा यह शरीर तो एक रथ के समान है जो इस शरीर में विद्यमान आत्मा को एक साधन के रूप में मिला है। इसमें बैठे यात्री आत्मा को वह इस सृष्टि की यात्रा करवाता है। अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर प्रदत्त आयु पूर्ण करने के उपरान्त ही यह शरीर रूपी रथ आत्मा को उसके लक्ष्य मोक्ष तक ले जाता है। यदि इस रथ में पर्याप्त ईंधन न डाला जाए, इसका रख-रखाव सुचारू रूप से न किया जाए तो रथ अपनी गति से नहीं चल सकता।
         मनुष्य खाली हाथ इस संसार में आता है और खाली हाथ ही यहाँ से विदा लेता है। जन्म और मृत्यु के बीच का उसका समय ऐसा होता है जिसमें वह और और पाने के लिए भटकता रहता है। आयु पर्यन्त वह कोल्हू के बैल की तरह ही खटता रहता है। यह दिन-रात का भटकाव उसका सुख-चैन सब छीन लेता है। वह बिना समय व्यर्थ गंवाए संसार में सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है।
       वह इस दुनिया के सारे भौतिक सुख अपनी झोली में डाल लेने के लिए आतुर रहता है। पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही उसे सब मिलता है। मनुष्य इस सत्य को भूल जाना चाहता है या नजरअंदाज करना चाहता है कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।
         वह प्रभु मनुष्य को सोचने पर विवश कर देता है कि वह इस संसार में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही उसे यहाँ से जाना है। इस संसार से अपने साथ केवल अपने अच्छे व बुरे कर्मों का लेखा-जोखा लेकर जाता है जो जन्म-जन्मान्तर तक उसके साथी बनते हैं। आने वाले जन्मों की सुख-समृद्धि या बदहाली का कारण बनते हैं।
         समय रहते यदि मनुष्य जाग जाए तो अपने लिए मुसीबतों के पहाड़ खड़े करने के स्थान पर वह अपने लिए सुख-शांति का पुरस्कार प्राप्त कर सकता है।
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