रविवार, 2 अगस्त 2015

जीवन का वास्तविक आनन्द

जीवन का वास्तविक आनंद वही ले पाते हैं जो कठोर श्रम करते हैं आलस करने वाले या सुविधाभोगी नहीं। जिन्हें पकी-पकाई खीर मिल जाए वे खीर बनाने का रहस्य नहीं जान सकते। उसके लिए कितना श्रम करना पड़ता है, कितनी प्रकार की सामग्रियाँ जुटाई जाती हैं? उसको बनाने वाले की भावना या उसके प्यार के मूल्य को वे उतना नहीं जान सकते।
       ठंडी हवा का सुख उसी व्यक्ति को समझ में आ सकता है जो बाहर की गरमी में तपकर आया है, अपना पसीना बहाकर आया है या परिश्रम करके थका हुआ है। जो मनुष्य दिन भर कूलर या एसी में बैठा हुआ गरमी में खूब ठंडक का आनन्द ले रहा है वह हवा की शीतलता के वास्तविक सुख  का अहसास नहीं कर सकता।
       फूलों की खूशबू उसी व्यक्ति को मोहित करती है जो फूलों का आनंद लेना जानता है। सारा दिन इत्र, डियो आदि में नहाया रहने वाला प्राकृतिक सुगंध से दूर होता जाता है। उसे फूलों से सुगंध के स्थान पर दुर्गन्ध का आभास होता है।
        दिनभर शीतल पेय पीने वाले, फ्रिज और वाटर कूलर ठंडे जल पीने वाले वास्तव में जल की शीतलता के वास्तविक सुख से वंचित रहते हैं। गरमी में तपकर आए हुए व्यक्ति को मटके या नल का जल मिल जाए तो वह भी उसके लिए अमृत तुल्य होता है।
       माता-पिता के मेहनत से कमाए धन पर ऐश करने वाले पैसे की कीमत नहीं जानते। पर यदि दुर्भाग्य से उन्हें जब कभी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर पापड़ बेलते हुए बहुत कठिनाई से धन कमाना पड़ता है तब उन्हें उसकी कीमत पता चलती है।
       कहने का तात्पर्य यह है कि जब मनुष्य सुविधाभोगी हो जाता है तो वह वास्तविकता से बहुत दूर चला जाता हैं। जमीनी हकीकत से मुँह मोड़ लेता है।
       ईश्वर न करे यदि अस्वस्थ होने पर या दुर्भाग्यवश कभी किसी भी कारण से सुविधाओं से वंचित होना पड़े अथवा कभी जीवन की सच्चाइयों से दो-चार होना पड़े या उनका सामना करना पड़े तो हालात बड़े कठिन हो जाते हैं।
      इन्हीं स्थितियों से जीव जगत को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गीता में द्वन्द्व सहन करने का सदुपदेश दिया था। हमें सभी सुविधाओं को भोगते हुए विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए सन्नद्घ रहना चाहिए और प्रतिदिन ईश्वर द्वारा दी गई नेमतों के लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए।
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