रविवार, 30 अगस्त 2015

पीर पराई जानते

पीर पराई  जानते तो न हसते मुक्त हंसी
दूसरों को दुख देकर न करते अट्टहास

अपना गम तुमको इतना बड़ा लगता है
कभी  दूसरों के गम  पर जरा सोच लो

सबसे अलग मत रहो तुम इस जहान में
रहने दो मत कुरेदा करो दूसरों के जख्म

गम हरे हो जाएँगे उस गरीब  लाचार के
अपनी खुशहाली का मत करो अभिमान

ऊपर जो बैठा है उसको भी तू न भाएगा
नजर जो टेढ़ी हो गई फिर न बच पाएगा

तब न छुप सकेगा इधर-उधर भरमाएगा
यहाँ-वहाँ फिरता हुए न ठिकाना मिलेगा

दूसरों के घावों पर लगाता  चल मलहम
दूसरों आह पर मत बनाना आशियाना

राख के ढेर में अगर यह  बदल जाएगा
कोई नहीं सुनेगा तब तेरी चिल्ल पौं को

जानलेवा बन न पाएँ अब तेरी घबराहटें
संभल जा और समय के फेर को समझ

अटल नियम ये इस संसार का ले मान
सबको खुशियाँ बाँटेगा तभी तो पाएगा

कुछ नहीं बिगड़ता बिखरे बेरों का मान
बन सकेगा प्यारा सबका ही दिल जीत।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter- http://t.co/86wT8BHeJP

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