सोमवार, 24 अगस्त 2015

बगुला भक्त

बगुला भक्त उसे कहते हैं जो ईश्वर की भक्ति का ढोंग करता है। वह समझता है कि यदि वह ऐसा करेगा तो सारे संसार में उसकी वाहवाही होगी और ईश्वर भी उससे प्रसन्न हो जाएगा। शायद वह अपने प्रदर्शन के मद में इतना खो जाता है कि दुनिया को धोखा देते देते मालिक को भी धोखा देने से बाज नहीं आता। वह इस सारे ढोंग का इतना आदी हो जाता है कि यह सब उसके जीवन के  व्यवहार का मात्र एक हिस्सा बनकर रह जाता है।
        ऐसा ही कार्य बगुला भी करता है जब उसे अपने शिकार मछली को पकड़ना होता है। वह एक टाँग पर पानी में खड़ा हो जाता है मानो बहुत बड़ी साधना कर रहा हो। मछली उसके इस फरेब को सच मानकर निशंक होकर उसके पास चली जाती है। ज्योंहि उसका भोजन मछली उसके पास से गुजरती है तो वह झट से उसे दबोच कर खा लेता है।
         बगुला भक्तों का भी यही कार्य होता है। वे भी अपने क्षणिक लाभ के लिए दूसरे लोगों को अपने जाल में फंसाते रहते हैं। इन लोगों की ऐसी हरकतों के कारण सच्चे साधू-सन्तों पर से भी जन साधारण का विश्वास उठता जा रहा है। इन्हीं बगुला भक्तों के लिए कहा गया है-
            'भगत जगत को ठगत।'
ये ऐसे भक्त होते हैं जो भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसाकर ठगते हैं। उन्हें तरह-तरह के सब्जबाग दिखाते हैं। उनकी मेहनत की कमाई पर ऐश करते हैं।
          दूसरों को अपरिग्रह का पाठ पढ़ाते हैं पर स्वयं एक के बाद एक आश्रम बनाते जाते हैं। महंगी कारें खरीदना भी इनका शगल होता है। अपने लिए हर प्रकार की सुख-सुविधाओं को जुटाते हैं।
          साधना का प्रदर्शन करके लोगों को अपने वश में करने की ठग विद्या में ये निपुण होते हैं। तभी तो लोग इनके भ्रमजाल में फंसते है और इन्हें बहुत बड़ा गुरू मान लेते हैं जबकि ये गुरु नहीं गुरूघण्टाल होते हैं। वास्तविक सच्चे गुरुओं का पासंग भी नहीं होते। इनका भी अपना प्रचार तन्त्र होता है। अपने खरीदे हुए गुर्गों से अपनी वाहवाही कराते रहते हैं और लोगों को मूर्ख बनाते रहते हैं।
           सच्चे भक्तों को इस प्रकार के प्रपंचों को रचने की आवश्यकता ही नहीं होती। वे सच्चे, सरल, निस्वार्थ सेवी, जन-जन का कल्याण करने वाले होते हैं। इन साधु स्वभाव वाले सन्तों की उन दुर्जनों से किसी प्रकार से तुलना नहीं की जा सकती। ये सन्त समाज के लिए कलंक होते हैं।
         सच्चे भक्तों में धन्ना जाट थे जिन्होंने ने हठ ठान लिया था कि जब तक ठाकुर जी भोग नहीं लगाएँगे तब तक वे खाना नहीं खाएँगे और कहते हैं ठाकुर जी भक्त की जिद के सामने हार गए।
         रविदास जी थे जिन्हें गंगा स्नान के लिए साथियों ने कहा तो वे बोले - 'मन चंगा तो कठौती में गंगा।' यानि मन पवित्र हो तो उनके पानी का पात्र जिसका प्रयोग जूते गाँठते समय करते थे, वह पानी गंगाजल बन जाता है।
        भुल्लेशाह कहते हैं- 'रब दा की पाना ऐत्थों पुटना ओत्थे लाना।' यानि ईश्वर को पाना चाहते हो तो मन को संसार से विरक्त कर ईश्वर की ओर लगा दो। सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि ऐसे अनेक महान भक्त हैं जिन्होंने प्रभु के साथ सच्ची लौ लगाई दुनिया की परवाह नहीं की।
         सच्चे संत तो समाज के दिशादर्शक होते हैं। वे अपनी भक्ति की मस्ती में सदा डूबे रहते हैं। उन्हें धन-दौलत और भौतिक ऐश्वर्यों से कुछ लेना देना नहीं होता। इसलिए यह निर्णय सुधीजनों का है कि वे बगुला भक्त अथवा सच्चे भक्त (साधु) में से किसकी शरण में जाना चाहते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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