मंगलवार, 25 अगस्त 2015

हंसी-मजाक

हंसी-मजाक परेशानियों भरे माहौल से छुटकारा पाने का बहुत अच्छा साधन होता है। दूसरों को प्रसन्न रखना बहुत अच्छी आदत है। इससे वातावरण खुशगवार हो जाता है। कोई मनुष्य कितनी भी परेशानी में क्यों न हो वह मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता। हंसते-खेलते रहने से जीवन जीना आसान हो जाता है।
        मुँह बिसूरकर रहने वालों से लोग बोर हो जाते हैं। सारा समय गिले-शिकवे करने या अपना दुखड़ा रोते रहने वालों से सभी किनारा करना चाहते हैं। वे अपनी मनहूस-सी बनाई सूरत से किसी को भी आकर्षित नहीं करते। उनके पास यदि कुछ समय तक बैठा जाए तो इंसान उकताने लगता है। सामने उनका दुख सुन करके सहानुभूति जताने वाले पीठ पीछे उन्हीं का मजाक उड़ाते हैं और नमक-मिर्च लगाकर चटकारे लेते हैं।
         किसी दूसरे का मजाक एक सीमा तक करना चाहिए। वह सीमा क्या है? उसका निर्धारण कौन करेगा? इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढना बहुत आवश्यक है। मजाक की सीमा हमें स्वयं ही तय करनी है। मजाक उस सीमा तक करना चाहिए जब तक उसे दूसरा उसे बर्दाश्त कर सके। उसके बाद उसका मजाक नहीं बनाना चाहिए। इससे अनावश्यक ही बदमजगी बढ़ती है और वातावरण बोझिल हो जाता है।
          वैसे तो मजाक करने के लिए विषयों की कोई कमी नहीं हैं। ऐसा आवश्यक नहीं कि पास बैठे हुए किसी व्यक्ति विशेष का मजाक बनाया जाए। कुछ लोग दूसरों की शारीरिक अपंगता का मजाक बनाते हुए उन्हें उनकी उस कमजोरी के नाम से यानि अंधा (नेत्रविहीन), काना (एक आँख न होना), लंगड़ा ( टाँग न होना), गधा ( मूर्ख), उल्लू (मूर्ख) आदि पुकारते हैं। यह बहुत ही गलत व अमानवीय व्यवहार कहलाता है। किसी की कमजोरी पर हंसना ईश्वर का अपमान करना होता है क्योंकि उनको भी हमारी ही तरह ईश्वर ने बनाया है।
        स्वयं का मजाक करना सबसे अच्छा होता है। दूसरों का मजाक बनाने वाले अपना मजाक बनते देख प्रायः बौखला जाते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई भी उनका मजाक बनाए। ऐसा दोहरा मापदण्ड तो नहीं चल सकता। अपने लिए अलग नियम व दूसरों के लिए अलग नियम इसे समाज तो नहीं मानेगा। सीधी-सी बात है कि यदि आपको मजाक सहना पसंद नहीं तो करिए भी मत। यदि मजाक करेंगे तो मजाक का निशाना बनने की हिम्मत भी रखिए। उस समय खुन्दक खाने या चिढ़ जाने का क्या लाभ होगा?
          यदि आपको मजाक बनना अच्छा नहीं लगता तो दूसरे की टाँग मत खींचिए। नहीं तो फिर याद रखिए कि जैसै को तैसा (tit for tat) तो हो ही जाता है। कभी-कभी सेर को सवा सेर भी टकरा ही जाता है। तब बगलें झाँकने से अच्छा है पहले से ही सम्भल जाना चाहिए।
          जैसे हर बात की अति बुरी होती है वैसे ही मजाक की अति भी अच्छी नहीं मानी जाती। जो हमेशा मजाक करते रहते हैं उन्हें लोग टोक देते हैं कि भाई कभी तो सीरियस हो जाया करो। लोग उनको मसखरा  समझते हैं और पीठ पीछे उनकी हंसी उड़ाते हैं।
         हंसी-मजाक केवल मनोरंजन की सीमा तक ही उचित होता है। इसके पश्चात वातावरण को अशांत व बोझिल ही बना देता है। समझदार लोगों को चाहिए कि वे अप्रिय स्थितियाँ न आने दें और यदि किसी असावधानी वश ऐसा हो जाए तो उन कारणों को दूर करने का उपाय कर लेना  चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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