शनिवार, 8 अगस्त 2015

डर के आगे जीत

हम अपने आसपास देखते हैं कि हर मनुष्य को किसी-न-किसी कारण से डर लगता है। उसे डर क्यों लगता है? वह किससे डरता है? क्या वह छोटा बच्चा है जिसे डर लगता है? ये सभी प्रश्न बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं और विचारणीय भी।
       अब हम यह विचार करते हैं कि बड़े लोगों को डर क्यों लगता है? उसे डर तब लगता है जब वह अपनी घर-परिवार की और समाजिक जिम्मेदारियों से बचता है। घर के आवश्यक कार्यों अथवा दायित्वों को भी भूल जाता है। अपने कार्यक्षेत्र के दैनन्दिन कार्यों में असावधानी के कारण गलतियाँ कर बैठता है। इसलिए नौकरी खोने से डरता है। व्यापार में घाटा होने या उसके डूब जाने से डरता है। हड़ताल के कारण बेरोजगार होने से डर जाता है।
        वह हर उस इंसान से डरता है जिसके प्रति अपराध करता है। अपने घर-परिवार के सदस्यों, अपने बॉस, राज्य, न्यायालय, पुलिस, इन्कमटैक्स, एक्साइज आदि के फेर से डरता है। धर्म भीरू होने के कारण वह धार्मिक कार्यों का निष्पादन न कर पाने के कारण ईश्वर से डरता है।
          अपने अधिकारों के लिए हर कदम पर हंगामा करने वाला मनुष्य स्वयं अपने ही कर्त्तव्यों से मुँह मोड़ लेने में परहेज नहीं करता। अपने कार्यों में मनुष्य बहुत मजे से कोताही करता है फिर जब उसका परिणाम आने का समय  होता है तब वह आने वाली असफलता के कारण भयभीत होता है।
        कोई ऊँचाई से नीचे गिर जाने से डर से ऊँचाई वाले स्थानों या पर्वतों पर नहीं जाता है। कोई पानी में डूब जाने के डर से नदी-समुद्र में नहीं जाता। आग से जल जाने का भय उसे सताता है। प्राकृतिक कोप- बादल फटना, आँधी-तूफान, बाढ़, भूकम्प आदि से मनुष्य सदा ही डरता रहा है।
        इनके अतिरिक्त सड़क पर चलते गाड़ी की अथवा गाड़ी से दुर्घटना का डर उसे सताता है।
सोचने की बात यह है कि जब इतना बड़ा मनुष्य डरने लगे तब हमें क्या उपाय करना चाहिए? उसे यदि समझाएँगे तो काट खाने को दौड़ेगा। मजे की बात यह है कि वह अपनी गलतियों को जानता है पर फिर भी अनजान बने रहने का नाटक करता है।
         बच्चे जब किसी भी कारण से डरते हैं तो हम उन्हें निडर बनने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें  साहसी लोगों के किस्से  सुनाकर उत्साहित करते हैं। उन्हें आश्वस्त करते हैं कि हम उनके हाथ हैं इसलिए वे न डरें और बहादुर बनें।
        एक आयु प्राप्त मनुष्य तो कोई छोटा बच्चा नहीं है कि जब वह डर जाए तब उसे समझा-बुझा दिया जाए अथवा डाँट-डपट देने से उसके मन से डर निकल जाएगा। अब पुचकारने या दुलारने वाली उसकी आयु बीत चुकी है।
         मनुष्य अपने डर पर विजय कैसे पा सकता है? इसका सरल-सा उपाय है। मन से डर को निकाल भगाने के लिए किसी भी प्रकार के प्रलोभन से दूर रहे। अपने सभी दायित्वों का निर्वहण दक्षता से करे। अपने कार्यों में सदा पारदर्शिता यानि सच्चाई व ईमानदारी लाए। सकारात्मक दृष्टिकोण रखना आवश्यक है।
          इन सबसे बढ़कर ईश्वर की शरण में जाना चाहिए जिससे मनुष्य के पास किसी प्रकार का डर न आता है और न ही उसे सताता है। मनुष्य को मानसिक व आत्मिक बल उस मालिक की आराधना करने से ही मिलता है।
        कहते हैं- 'डर के आगे जीत है।' अत: डर को वश में करके मनुष्य को आगे बढ़ जाना चाहिए। इसी में समझदारी है।
चन्द्र प्रभा सूद
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