शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

बच्चे महान समालोचक

बच्चे महान समालोचक होते हैं। वे हर चीज का मुआयना (observe) बड़ी  बारीकी से करते हैं। बड़ों की कोई भी गलती उनकी नजर से बच नहीं सकती। इसका कारण उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति होती है।
          वे हर जगह, हर बात पर सदा ही क्या, क्यों, किसलिए, कब आदि को ढूँढते रहते हैं। इन्हीं सारे प्रश्नों के उत्तर वे खोजते रहते हैं। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए वे बारबार सबसे प्रश्न पूछते हैं और अपनी शंकाओं का समाधान करते रहते हैं।
कभी-कभी हम उनके इन प्रश्नों से झुँझला जाते हैं और डांटकर उन्हें चुप करा देते हैं। पर बालमन को इस डांट-फटकार से कोई लेना देना नहीं होता। अगले ही पल वह किसी नए प्रश्न को लेकर सवालिया निगाहों से देखते हुए पूछते हैं।
          उन्हें हम स्वयं गलत आदतें सिखाते है। हम उनके सामने झूठ बोलकर कहीं भी जाते हैं पर उन्हें सच बोलने का पाठ पढ़ाते हैं। घर में नापसंद मेहमानों के आने पर हम उनका सत्कार भार समझकर करते हैं और उनकी पीठ पीछे उन्हें भला-बुरा कहते हैं। परन्तु अपने प्रियजनों के आने पर प्रसन्नता से आवभगत करते हैं। बच्चों के सामने बैठ कर अपने कार्यक्षेत्र की, आस-पड़ोस की, मित्रों की संबंधियों अच्छी-बुरी सभी बातें चटखारे लेकर और शेखी बघारते हुए उनके सामने सुनाते हैं। अपने चेहरों पर लगाए मुखौटों के कारण हम समय-समय पर अलग-अलग तरह से व्यवहार करने का प्रयत्न करते हैं।
          इन सबके अतिरिक्त किसी के दुख-सुख में मन माने तो हम शामिल हो जाते हैं अन्यथा बहानों की बड़ी लम्बी लिस्ट हमारे पास तैयार रहती है।
           घर-परिवार में हम आपस में कैसा व्यवहार करते हैं? बड़े-बजुर्गों के प्रति हमारा रवैया सहानुभूति पूर्ण है या नहीं? छोटों व बराबर वालों के साथ हमारा बर्ताव कैसा है?
आस-पड़ोस से सहृदयतापूर्वक पेश आते हैं या नहीं ये बातें भी बच्चों के कोमल मन की स्लेट पर लिखी जाती हैं जो समय के साथ -साथ और गहरी होती जाती हैं।
           बालमन पर पड़े इन संस्कारों के विषय में वह हैरान होकर सोचता रहता है। उसकी यही सोच उसका मार्गदर्शन करती है। अपने आसपास घटित घटनाओं से वह नोट्स बनाता रहता है और जब मौका होता है तो सबके सामने बिना झिझक कह भी देता है कि फलाँ समय पर आपने ऐसा कहा था या किया था। उस समय घर के बड़ों को शर्मिंदा होना पड़ता है। उस समय वे बगलें झाँकते हुए उस मासूम को डाँटकर अपने दिल की भड़ास निकाल लेते हैं। वे यह भी नहीं सोचते कि बच्चे के कोमल हृदय पर इस व्यवहार का अच्छा असर नहीं होगा।
          यदि बच्चों से अच्छा व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं तो पहले स्वयं के अंतस में झाँककर देखिए। आत्मपरीक्षण करने पर समझ आ जाएगा कि बच्चे के इस मुँहफट रवैये के पीछे स्वयं से ही चूक हो गई है। बच्चा जिद्दी व अड़ियल होकर बिना कारण बार-बार माता-पिता का सिर क्यों नीचा कराता है? उसे उनकी अवमानना करके खुशी क्यों मिलती है?
          बच्चों को हम जैसा बनाना चाहते हैं वे वैसे ही बन जाते हैं। स्वयं पर थोड़ा-सा ध्यान देने व संयम रखने से हम बच्चों के व्यवहार को अनुशासित कर सकते हैं। उन्हें एक सभ्य व सुशिक्षित नागरिक बनाने के अपने दायित्व का निर्वहण कर सकते हैं।
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