गुरुवार, 11 जून 2015

समलैंगिक विवाह

समलैंगिकों के विवाह की चर्चा कुछ दिनों पूर्व सोशलमीडिया, टी वी व समाचारपत्रों में हुई। डॉ ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने आग्रह किया कि इस विषय पर लिखूँ। इस विषय पर मेरे विचार प्रस्तुत हैं।
          शास्त्रों के अनुसार शादी एक नवयुवक एवं एक नवययुवती में होती है। ऐसा ही हमारे शास्त्रों में विधान है। कभी-कभी बेमेल विवाह भी होते हैं जहाँ पति और पत्नी की आयु में अन्तर होता है। इसके अतिरिक्त बाल विवाह और विधवा विवाह भी होते हैं। यानि हर स्थिति में दो अलग-अलग लिंग के लोगों में ही वैवाहिक संबंध मान्य होता है। भारत में ही नहीं पूरे विश्व में ऐसे ही संबंध होते हैं। मनुष्यों में ही नहीं पूरी सृष्टि का भी यही नियम है।
          आजकल एक ही लिंग के दो लोग विवाह के संबंध में बंधना चाहते हैं। सीधा-सा अर्थ है कि युवक युवक से और युवती युवती से विवाह करके एक साथ रहना चाहते हैं। इस विवाह को समलैंगिक विवाह कहते हैं।
         पूरे विश्व में इस समस्या पर आज गंभीरता से विचार किया जा रहा है। यूके देश में समलैंगिक लोगों की शादी को कानूनी मान्यता है। पर भारत सहित विश्व के कई देशों में ऐसी शादियाँ प्रतिबंधित हैं। अभी कुछ दिन पूर्व आयर लैंड जनमत से समलैंगिकों के विवाह की अनुमति देने वाला पहला देश बन गया है।
         समलैंगिक विवाह के इच्छुक हरीश की माँ ने उसकी शादी के लिए किसी दूल्हे (लड़के ) के लिए मुम्बई के एक समाचार पत्र में 19 मई को विज्ञापन दिया। 20 मई 2015 सायं 6.15 आजतक न्यूज चैनल पर उन दोनों माँ-बेटे से बातचीत की गई। 28 मई के हिन्दी हिन्दुतान में समाचार प्रकाशित किया कि इस शादी के विज्ञापन पर हरीश की माँ को 150 से अधिक जवाब मिले जिनमें कुछ लोगों ने नफरत दिखाई और कुछ ने प्रोत्साहित किया। कुछ लोगों ने अभद्र भाषा में मेल करके शादी जैसी संस्था को खत्म करने के लिए उसकी माँ पर आरोप लगाया।
        20 मई के टाइम्स आफ इन्डिया पत्र ने समाचार प्रकाशित किया था कि बंगलौर की दो लड़कियाँ हैदराबाद में मिलीं और कुछ समय एक साथ रहीं और यू एस ए में शादी करने के लिए गई थीं। कुछ वर्ष पूर्व भी दो लड़कियों ने ऐसा ही प्रयत्न किया था। टी वी ने उनसे इन्टरव्यूह भी लिया था। पर कुछ समय बाद ही उनका ब्रेकअप  हो गया। जो पहले कसमें खाती थीं वे इसलिए अलग हो गई थीं कि वे अब उनमें से एक दूसरे की ओर आकृष्ट हो गई थी।
          वास्तविकता यही है कि इन संबंधों में भी कुछ दिन बाद आकर्षण कम होने लगता है और वे एक-दूसरे को छोड़कर किसी अन्य की ओर आकर्षित हो जाते हैं। यहाँ सामाजिक बंधन तो है नहीं कि सात जन्मों का बंधन है। कभी घर-परिवार तो कभी समाज का भय या फिर बच्चों का ध्यान रिश्तों की टूटन को बचा लेता हैं। इस अप्रकृतिक संबंध में ऐसा कोई बंधन नहीं होता पर एक-दूसरे से ईर्ष्या, घृणा आदि भाव शीघ्र पनपते हैं। यहाँ भी मरने-मारने वाली स्थिति हो जाती है।
            कहने का तात्पर्य है कि प्राकृतिक यौन संबंधों को छोड़कर अप्राकृतिक संबंध  किसी भी तरह समाज में मान्य नहीं होते। समाज ऐसे पुरुषों और महिलाओं के प्रति उदासीन रहता है। कुछ समय पूर्व तक ये लोग स्वयं के विषय में किसी से चर्चा भी नहीं करते थे और समाज भी इनको हेय दृष्टि से देखता था। इसमें कोई दोराय नहीं कि ईश्वर ने इन लोगों को ऐसा ही बनाया है। इनसे घृणा करना उचित नहीं हैं। ये समाज का अभिन्न अंग हैं। इनके साथ सदा ही सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यद्यपि भारतीय संस्कृति ऐसे अप्राकृतिक संबंधों को कभी मान्यता नहीं देती।

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