बुधवार, 17 जून 2015

गॉड गिफ्टेड

संसार में कुछ लोगों को हम ईश्वर का उपहार (God gifted) कहते हैं। इसे दूसरे शब्दों में कह सकते हैं- 'पूत के पाँव पालने में।' यानि ऐसे लोग अपने बचपन से ही प्रतिभाशाली होते हैं जिनकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती है।
           बहुत बार हम सुनते हैं कि चौदह-पन्द्रह वर्ष की आयु में किसी बच्चे ने बीए पास कर लिया डॉक्टर बन गया या वकील बन गया या इंजीनियर बन गया। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चे अपनी अल्पायु में ही धर्मग्रन्थों के जानकार होते हैं। ये सब समाचार हम टीवी, सोशल मीडिया व समाचार पत्रों में पढ़ते व देखते रहते हैं। टीवी चैनलों पर ऐसे बच्चों को उत्साहित करने के लिए बुलाया जाता है व विद्वानों के समक्ष उनका ज्ञान परखा जाता है।
          यदि अपने आसपास नजर दौड़ाएँ तो हमें समझने में आसानी होगी। समान सुविधाओं वाले एक जैसे बच्चों का आई क्यू एक जैसा नहीं होता। एक ही कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों में से कोई योग्यता के साथ प्रथम आता है और कोई अनुतीर्ण हो जाता है। इससे भी बढ़कर एक ही माता-पिता के सभी बच्चों का मानसिक स्तर अलग-अलग होता है।
           यह सब अपने पूर्वजन्म कृत संस्कारों का फल होता है। जैसे पूर्वजन्मों में किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल हमें भोगना पड़ता है उसी प्रकार पूर्वजन्मों में अर्जित विद्याधन व्यर्थ नहीं जाता। वह हमें नए जन्म में यश देता है। एक जन्म में जो भी ज्ञानार्जन मनुष्य करता है वह पूर्वजन्मों के ज्ञान के साथ उसमें जुड़कर बढ़ जाता है। तभी हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सदा ज्ञानार्जन करने के लिए प्रेरित व उत्साहित किया। यह ऐसा धन है-
         न चौरहार्यं न भातृभाज्यम्।
अर्थात इस विद्याधन को न तो चोर चुरा सकते हैं और न ही भाइयों में इसका बटवारा किया जा सकता है।
        हम कह सकते हैं कि धन-सम्पत्ति आदि भौतिक पदार्थों का बटवारा कर तो हम कर सकते हैं, उनके लिए लड़-झगड़ सकते हैं, एक-दूसरे का सिर फोड़ सकते हैं, कोर्ट-कचहरी का दरवाजा खटखटा सकते हैं पर इस ज्ञान रूपी धन के बटवारे की नौबत ही नहीं आती।
        यह ज्ञान या विद्याधन हमारी पर्सनल प्रापर्टी है। इसमें किसी की दखलअंदाज़ी नहीं चल सकती। न ही कोई डरा-धमका कर इसे हमसे छीन सकता है। यह धन केवल मात्र हमारे अकेले का है। जन्म-जन्मान्तरों तक हमारे साथ-साथ जाता है। फिर भी बहुत से लोग क्षणिक स्वार्थों में रमकर इसके महत्त्व को नहीं समझते और ज्ञान से वंचित हो जाते हैं।
           निस्संदेह हम आयु के प्रभाव से भी  अनुभवजन्य ज्ञान प्राप्त करते हैं परन्तु वह हमें दुनियावी तौर पर प्रबुद्ध बनाता है।
           ज्ञान हमारे अंतस में विद्यमान तमस को दूर करता है और हमारे हृदय में प्रकाश फैलाता है। यही ज्ञान का प्रकाश मनुष्य को दूसरों से अलग करता है। इसे अर्जित करने के लिए साधना करनी पड़ती है। इसके लिए आयु की कोई सीमा नहीं है। मृत्यु पर्यन्त मनुष्य अपना समय पढ़ने में व्यतीत कर सकता है। अपना आराम व सुख छोड़ना पड़ता है तभी इस ज्ञान की लगन लगती है। यथासंभव अपनी ज्ञान पिपासा को शांत न होने दें तभी किसी जन्म में गॉड गिफ्टेड कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है।

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