शुक्रवार, 19 जून 2015

बच्चे को योग्य बनाएँ

Spare the rod and spoil the child- सयाने ऐसा कहा करते थे। माना कि आज युग बदल रहा है और विद्यालय व घर में  अध्यापकों व माता-पिता को बच्चों पर हाथ न उठाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि बच्चों पर अंकुश न लगाया जाए।
          यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे संस्कारी व योग्य बनें तो उन्हें अनुशासन में रखना बहुत आवश्यक है। विदेशों का अंधानुकरण करके हम अपने बच्चों के जीवन से खिलवाड़ नहीं कर सकते। हम टीवी की खबरों में देखते हैं और समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं कि विदेशों में छोटे-छोटे बच्चे पिस्तौल लेकर स्कूल जाते हैं। जरा-सी बात होने पर अपने साथियों पर गोलियाँ चलाकर उनकी जान ले लेते हैं।
         अब आप सुधीजन विचार करें कि हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को ऐसे ही असहिष्णु व उद्दण्ड बनाना चाहते हैं? यदि आप ऐसा चाहते हैं तो फिर कोई समस्या नहीं। इसके विपरीत यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आपकी अवहेलना न करें और संस्कारी बनें तो बच्चों की ओर ध्यान देना आवश्यक है।
          बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। आप बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं वह वैसा बन जाएगा। यहाँ पर मैं एक कुम्हार का उदाहरण देना चाहती हूँ। कुम्हार मिट्टी को मनचाहा आकार देकर इच्छित वस्तुएँ बनाता है। उसी प्रकार मासूम और कोमल बच्चों को हम कोई भी आकार दे सकते हैं। उनमें आप ही की छवि दिखाई देगी।
         बच्चा घर के बाहर या किसी मित्र-संबंधी के यहाँ जाकर या स्कूल-कालेज में उद्दण्डता करेगा तो लोग माता-पिता को ही दोष देते हैं कि बच्चों को उन्होंने तमीज नहीं सिखाई। तब उन्हें शर्मिन्दगी का समना करना पड़ता है। उस समय अपनी झेंप मिटाने के लिए वे तर्क देते हैं कि क्या करें बच्चे थोड़ा शरारती हैं। पर ऐसा कहकर वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते।
           जो बच्चे हर स्थान पर ही अनुशासित रहते हैं उन्हें बारबार सबसे प्रशंसा मिलती है। ऐसे बच्चों के माता-पिता का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है।
           बच्चे पर आप चाहे हाथ न उठाएँ परन्तु उसे आपकी तरेरी हुई नजर का डर अवश्य होना चाहिए। बच्चों के सामने अपने धन का प्रदर्शन व  रौब न दिखाएँ और न ही बच्चों को इसकी अनुमति दें। साथ ही स्वयं झूठ बोलने से परहेज करें व बच्चों को भी सच बोलने के लिए प्रेरित करें। जब आपका बच्चा गलत कार्य करे तो उसके मन में आपका डर होना चाहिए पर सम्मान के साथ। वह किसी भी स्थिति में कभी भी आपका तिरस्कार न करे। उसे अपने माता-पिता की आँख की शर्म बनी रहनी चाहिए।।
        बचपन से ही अपने बच्चे की हर जायज-नाजायज माँग को पूरा करके उसे जिद्दी न बनाएँ। उसे 'न सुनने' की आदत डालिए। उसे हर अच्छाई-बुराई से अवगत कराएँ। जब भी वह कुछ गलती करे तो उसे उसकी गलती को माफ न करें। उसे अपनी गलती का अहसास कराने के लिए हर पहलू के विषय में समझाइए। बच्चे बहुत समझदार हैं वे अपना भला और बुरा बेहतर समझते हैं।
           धीरे-धीरे उसे अपने भले-बुरे की पहचान हो जाएगी और वह एक जिम्मेदार बच्चा बन जाएगा। यह आदर्श स्थिति है कि आपका बच्चा सभ्य एवं योग्य बनकर चारों ओर अपना यश फैलाए। वह तो हर स्थान पर प्रशंसा का अधिकारी बनेगा ही और आपको उसे ऐसा  बनाने का श्रेय भी मिलेगा।
          ऐसा करके सजग व जिम्मेदार माता-पिता होने का दायित्व निभाते हुए बच्चों के उज्ज्वल भविष्य बनाइए और देश व समाज को योग्य विरासत सौंपिए।

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