शुक्रवार, 26 जून 2015

ईश्वर से क्या मांगें

हम उस ईश्वर से क्या मांगें जो बिना माँगे ही हमें हर प्रकार से मालामाल कर देता है। दिन हो या रात वह सदा हमारी ही चिन्ता में रहता है। हम उसकी इस दयालुता को समझ पाने में असमर्थ रहते हैं।
          हमारे ऋषि-मुनि हमें कहते हैं सबके मंगल की कामना की परमात्मा से करो-
      सर्वे भवन्तु सुखिन:
           सर्वे सन्तु निरामया:।
      सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
           मा कश्चित् दुखभाग्भवेत्॥
अर्थात सभी लोग सुखी रहें, सभी स्वस्थ रहें, सभी कल्याण को देखें और किसी के पास कोई कष्ट न आए।
        यदि ऐसी कामना सभी मनुष्य करने लगें तो स्वार्थ परमार्थ में बदल जाएगा। मैं, मेरा घर, मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरी गाड़ी, मेरा व्यापार आदि की संकुचित भावना से हम ऊपर उठकर व्यष्टि (सब) के बारे में सोचेंगे तो निश्चित ही ईश्वर प्रसन्न होता है। उसे स्वार्थी लोग पसंद नहीं है।
         वह सबके साथ एक जैसा व्यवहार करता है। इसलिए चाहता है कि उसकी बनाई इस सृष्टि के साथ हम भी वैसा ही व्यवहार करें। उसमें भेदभाव न करें।
         जो भी हमारे समाज सुधारक हुए हैं उन्होंने समाज की दिशा और दशा बदलने के लिए अपने दिन-रात का सुख-चैन गंवा कर कार्य किए। सदा यत्न करते रहे कि सभी के हित को साध सकें। वे बिना किसी भेदभाव के निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा में जुटे रहे।
         इसी प्रकार  परोपकारी लोग भी अपने घर-परिवार के साथ-साथ सबकी भलाई के कार्य करते हैं। तभी वे इस संसार में अग्रणी बन जाते हैं और युगों तक स्मरण किए जाते हैं।
        रंग-रूप, जाति-पाति, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि के बंधनों से परे रहते हैं। सभी इनकी नजर में बराबर रहते हैं। तभी ये लोग समाज में कल्याण के कार्य कर पाते हैं। और हम लोग उनके धैर्य की परीक्षाएँ लेते रहते हैं।
       कभी उन्हें विष देकर, कभी सूली पर लटका कर, कभी पत्थर मारकर या कभी उन्हें अपमानित करके सुकून महसूस करते हैं और उनके इस दुनिया से विदा लेने पर उनकी प्रशंसा में गीत गाते हैं।
          कबीर दास जी इसी तरह सबके मंगल की कामना करते हुए कहते हैं-
       कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर।
       न  काहू से  दोस्ती  और न  काहू से बैर॥
अर्थात इस संसार रूपी मंडी में कबीर दास जी सबका हित चाहते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उन्हें न किसी से शत्रुता है और न ही मित्रता। सभी उनके अपने हैं कोई पराया नहीं।
        इस प्रकार यदि हम सभी प्राणियों का हित साधने के लिए ईश्वर से याचना करेंगे तो हम भी उन सब में आ जाएँगे। तब हमें अपने स्वयं के लिए अलग से मांगने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। हमारे मन को असीम शांति का अनुभव होगा जिसके लिए हम साधु-संतो के पास, तीर्थ स्थानों पर और जंगलों में भटकते रहते हैं पर वह हमें कहीं नहीं मिलती।
         हमें ईश्वर से भौतिक सुख-समृद्धि न मांगकर धैर्य, जिजीविषा, सद् बुद्धि और परोपकार की शक्ति आदि मांगनी चाहिए। ऐसी विद्या मांगनी चाहिए जो हमें प्रभु तक हमें पहुँचा सके। इन सबके साथ ही हमें हर समय और हरपल उसकी उपासना करने की सामर्थ्य की याचना करनी चाहिए।

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