शुक्रवार, 12 जून 2015

अच्छा स्वास्थ्य

अच्छा स्वास्थ्य हर मनुष्य चाहता है। यह ईश्वर का वरदान है। इस शरीर का नीरोग रहना बहुत आवश्यक है। हमें महाकवि कालिदास ने समझाते हुए कहा है-
         'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्'
अर्थात धर्म का पालन करने के लिए साधन शरीर है। हम अपने धर्म या कर्त्तव्यों का पालन स्वस्थ रहकर कर सकते हैं। यदि मनुष्य अस्वस्थ हो जाए तो उसे हर कार्य के लिए दूसरों का मुँह देखना पड़ता है। जब मनुष्य दूसरों के अधीन हो जाएगा तो अपने दायित्वों का निर्वहण नहीं कर सकेगा। यह पीड़ा उसे और अधिक रोगी बनाती है।
          हम सभी लोग भली-भाँति अपने घर-परिवार के दायित्वों को पूरा करने के लिए अथक परिश्रम करते हैं। दिन-रात एक कर देते हैं। उसके लिए जो साधन रूपी ईश्वर ने हमें दिया है उसकी हम परवाह नहीं करते। आप शायद कहेंगे मैं गलत कह रही हूँ। हम तो बढ़िया खाना खाते हैं, अच्छे मंहगे मौसमी फल खाते हैं और मेवे भी खाते हैं। जब अस्वस्थ होते हैं तो डाक्टर के पास जाकर इलाज भी करवाते हैं।
         फिर भी मैं यही कहूँगी कि हम अपना ध्यान नहीं रखते। एक नजर जरा अपनी दिनचर्या पर डालिए। हम प्रातःकाल उठने के पश्चात और रात सोने तक अपने घर और दफ्तर के कार्यों को निपटाने की धुन में लगे रहते हैं। न हमें खाने की चिन्ता रहती है और न ही समय की। ऐसे में हम समय-असमय खाना खाते हैं और कभी-कभी कार्य की अधिकता होने पर खाना भी नहीं खाते। दिनभर चाय-कॉफी पीकर गुजार देते हैं। रात को देर तक जाग-जाग कर काम करते हैं जिससे पूरी नींद भी नहीं ले पाते।
          हम समय पर खाना नहीं खाते और अगर खाते हैं तो उल्टा-सीधा खाना जल्दी में ठूस कर भागने की करते हैं। न अपनी पूरी नींद सो पाते हैं तो फिर बताइए इस बेचारे स्वास्थ्य का क्या होगा?
        हमारी इस प्रकार की अव्यवस्थित दैनिकचर्या से  शरीर का चक्र डांवाडोल होने लगता है। शरीर में गैस बनने लगती है, इससे उल्टी भी हो सकती है, दिन-प्रतिदिन शरीर कमजोर होने लगता है व हम थके हुए रहते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य कई रोग शरीर में घर बनाने लगते हैं। कभी-कभी काम के इस प्रेशर से ब्लडप्रेशर की समस्या हो जाती है। सबसे बढ़कर दिल का दौरा तक पड़ जाता है। फिर कवायद शुरू हो जाती है डाक्टरों के पास जाने की। उधर काम का प्रेशर और इधर डाक्टरों का चक्कर। इन दोनों के बीच में मनुष्य पिसता रहता है। 
          एक मोटर का रखरखाव यदि ठीक से न किया जाए या बिना आराम दिए उसकी क्षमता से अधिक काम उससे लिया जाए तो वह भी बिगड़ जाती है। वह ठीक से काम करती रहे इसके लिए उसमें ग्रीस आदि डाली जाती है और कुछ समय चलाने के बाद उसे आराम भी दिया जाता है ताकि वह लम्बे समय तक चलती रहे।
          गृहिणियाँ तो लापरवाही के मामले में बहुत आगे हैं। वे अपने पति व बच्चों के आगे सोच नहीं पातीं। प्रायः महिलाएँ अपने हिस्सा भी उन्हें दे देती हैं। चौबीसों घंटे घर-बाहर के कार्यों को समेटते हुए उन्हें अपने बारे में सोचने का समय नहीं मिलता। इससे भी अधिक जब तक बिस्तर पर पड़ जाने की नौबत न आ जाए तब तक वे अपनी बिमारियों को अनदेखा करती रहती हैं। जब वे बिस्तर पकड़ लेती हैं तब पता चलता है कि उनकी हालत कैसी है?
          बच्चे जो हर घर की शोभा हैं उनका खानपान सबसे अधिक कष्टदायी है। वे मोबाइल व कंप्यूटर आदि से खेलने के कारण शारीरिक खेलों से दूर होते जा रहे हैं। आज जंकफूड और शीतल पेयों के कारण बच्चे अल्पायु में ही मोटापा, शूगर, बीपी, आँख के रोग आदि बिमारियों का शिकार हो रहे हैं। उन्हें बचाने की बहुत आवश्यकता है।
           पुरुष हो या स्त्री दोनों का स्वस्थ रहना परिवार के लिए आवश्यक होता है। एक भी रोगी हो जाए तो घर अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसलिए घर के हर सदस्य का आहार-विहार संतुलित होना चाहिए ताकि स्वस्थ रहकर वह सभी कार्यो को संपादित किया जा सके।

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