शुक्रवार, 5 जून 2015

असत्य पर विजय

हम सब असत्य या झूठ के सहारे अपना सारा जीवन व्यतीत करते हैं। यह चौंकाने वाली बात नहीं है बल्कि इस विषय पर गंभीरता से विचार करना है। इसके पीछे के कारणों को ढूँढ कर उनको हमें ही दूर करना है।
       अपने घर-परिवार में माता-पिता बच्चों से झूठ बोलते हैं और बच्चे माता-पिता से। पति पत्नी से झूठ बोलता है और पत्नी पति से। मित्र अपने मित्र से झूठ बोलता रहता है। बच्चे अपने स्कूल में अध्यापकों से और घर में माता-पिता से झूठ बोलने में अपनी शान समझते हैं। बॉस या मालिक अपने अधीनस्थों से झूठ बोलते हैं और उसी तरह अधीनस्थ कर्मचारी भी अपने मालिक से। प्रायः धर्मगुरु अपने अनुयायियों से झूठ कहते हैं। व्यापारी, राजनेता आदि सभी इस असत्य के व्यापार में संलग्न हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि असत्य के व्यवहार में योग्यता प्राप्त करना चाहते हैं।
          सभी जानते हैं कि असत्य बोलना अविश्वास का मूल है। इससे मन अपवित्र होता है। स्वयं को ईश्वर का सच्चा भक्त कहने वाले को तो कदापि असत्य भाषण नहीं करना चाहिए।
         इस असत्य के व्यवहार के विषय में गहराई से सोचने की आवश्यकता है। हम सब लोग सोचकर बहुत ही प्रसन्न होते हैं कि फलाँ व्यक्ति को हमने मूर्ख या उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया। परन्तु वास्तव में उसकी हानि होती है या नहीं पर हमारे चारित्रिक पतन की शुरुआत अवश्य हो जाती है। असत्य भाषण से मनुष्य के कल्याण इस प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे आँधी आने से बड़े-बड़े वृक्ष नष्ट हो जाते हैं। योगशास्त्र का कहना है-
असत्यवचनात् वैरविषादाप्रत्ययावय:।
प्रादु:षन्ति न के दोषा: कुपथ्याद् व्याधयो यथा॥
अर्थात कुपथ्य सेवन से व्याधियाँ या रोग उत्पन्न होते हैं। असत्य बोलने से वैर-विषाद और अविश्वास आदि कौन से दोष हैं जो उत्पन्न नहीं होते अर्थात सभी दोष मनुष्य में आ जाते हैं।
      'सत्यमेव जयते नानृतम्' कहकर हमारे ऋषियों ने हमें समझाया है कि अन्तत: सत्य की ही विजय होती है झूठ की नहीं। सत्य को चाहे सात परदों में छुपा लो फिर भी वह कस्तूरी की तरह अपनी सुगन्ध बिखेरता हुआ मुस्कुराता हुआ हमारे समक्ष प्रकट हो जाता है। इसके विपरीत हींग को कितना ही मुल्लमा चढ़ा कर रख लें वह अपनी दुर्गन्ध छोड़ ही देता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि उसी प्रकार चाशनी में डूबा हुआ असत्य भी प्रकट हो ही जाता है।
          सत्य खरे सोने की तरह होता है जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती। असत्य को हम चाहे कितना भी गोल्ड प्लेटेड कर लें समय आने पर अपनी चमक खो देता है। तब फिर हम नकली वस्तुओं के पीछे क्यों भागें? खरा सोना ही खरीद कर अपनी पूँजी को बढ़ाने का यत्न करें।
        असत्यवादी की जब पोल खुलती है तब उसके सामने मृत्यु के समान कष्टदायी स्थितयाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यह सबसे बड़ा अधर्म है जो जगत के पिता परमेश्वर को बिल्कुल पसंद नहीं है। वृहन्नारद पुराण का मत है-
      असत्यनिरतश्चैव ब्रह्म हा परिकीर्तित:।
अर्थात असत्य में लगा हुआ व्यक्ति ब्रह्म का हत्यारा कहलाता है।
        वाल्मीकि रामायण में कहा गया है-
'असत्य भाषी व्यक्ति से लोग उसी प्रकार डरते हैं जैसे साँप से।'
         अपनी सुविधा या आदत के कारण चाहे बच्चा हो या कोई बड़ा व्यक्ति किसी के भी झूठ की सराहना नहीं की जा सकती। यह भी एक ऐसा रोग है जिससे छुटकारा पाना कठिन होता है। जिसने इस शत्रु को अपने वश में कर लिया वह संयमी महान बन जाता है।

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