सोमवार, 29 जून 2015

दुविधा की स्थिति

जीवन में बहुधा दुविधा के ऐसे पलों से हमें दो-चार होना पड़ता हैं तब लगता है कि हमारी सोचने-समझने की शक्ति साथ नहीं निभा रही। उस समय समझ में नहीं आता कि हम क्या करें और क्या न करें?
         प्रतिदिन के जीवन का एक उदाहरण लेते हैं। प्रायः हम सभी नौकरी, व्यापार, पढ़ाई आदि के लिए प्रतिदिन यात्रा करते हैं अथवा घर के आसपास बाजार आदि में खरीददारी के लिए जाते हैं या फिर किसी से मिलने जाते हैं। हमें स्थान-स्थान पर चौराहे दिखाई देते हैं। यदि हमें रास्ते की सही जानकारी होती है तो हम ठीक मार्ग का चुनाव करके अपने गन्तव्य तक पहुँच जाते हैं।
         इसके विपरीत यदि उचित मार्ग ज्ञात न हो तो हम वहाँ सड़क के किनारे खड़े नहीं रहते और न ही वापिस लौटकर आते हैं। उस समय उचित मार्गदर्शन के लिए उस स्थान विशेष की जानकारी वाले किसी सज्जन से परामर्श करके सही मार्ग को चुन कर, उस पर चलते हुए अपने गन्तव्य पर पहुँच जाते हैं।
        इस उदाहरण से यह समझ आता है कि यदि जीवन में कभी ऐसी स्थिति आती है जब हम सही या गलत को न समझ सकें तो सबसे पहले तो हमें दृढ़तापूर्वक मन को व्यवस्थित करके एकान्त में विचार करना चाहिए। गहन चिन्तन करते हुए समस्या के हर पहलू पर जब हम विचार करेंगे तब संभवतः उसका समाधान निकाल पाने में समर्थ हो सकते हैं। इस प्रकार विचार करने से यदि दुविधाजनक स्थिति से उभर सकें तो बहुत अच्छी बात है।
         यदि परिस्थितिवश किसी कारण से स्वयं से हल न ढूँढ पाएँ तब हमें किसी विवेकशील व्यक्ति के पास जाना चाहिए और अपनी दुविधा उसके समक्ष रखनी चाहिए। उनसे विचार-विमर्श करने पर अवश्य ही कोई सकारात्मक हल निकल आएगा। जिसके अनुसार व्यवहार करके हम अपनी दुविधा पूर्ण स्थिति से मुक्त हो सकते हैं।
          समझदार सज्जन व्यक्ति से अपनी किसी भी तरह की परेशानी को साझा करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। ऐसे व्यक्ति पर पूर्णरूप से भरोसा किया जा सकता है। ये लोग धीर-गम्भीर व शुभचिन्तक होते हैं। वे इधर की बात उधर नहीं करते। हर किसी के रहस्य को  हमेशा गोपनीय रखने की उनमें सामर्थ्य होती हैं। ऐसे गुणीजन न तो अहसान जताते हैं और न ही दुनिया में ढिंढोरा पीटते हैं। उन्हें तो किसी प्रकार के प्रतिफल की कामना नहीं होती। इसीलिए इन विश्वसनीय लोगों पर अपने हृदय की गहराइयों से भरोसा करना चाहिए।
          दुविधा होने पर स्वार्थी मित्रों व बन्धुओं के पास जाकर विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए। वे अपने स्वार्थ को सर्वोपरि मानते हैं। हो सकता है उनकी सलाह काम आ जाए पर बाद में उसका ढिंढोरा पीटकर दूसरे के सामने सदा ही अपना अहसान जताकर नाक में दम कर देते हैं। फिर वे सहायता करने का फल भी चाहेंगे और अपने जायज-नाजायज कार्यों की सफलता के लिए सहायता भी चाहेंगे। तब लगता है इनसे यदि परामर्श न लिया होता तो अच्छा था, कम-से-कम अपमानित होने से तो बच जाते।
         जब भी कभी दुविधा की स्थिति हो तो अपने विवेक पर भरोसा करना चाहिए या फिर किसी सज्जन विद्वान की शरण लेनी चाहिए स्वार्थी मित्र या बन्धु की नहीं। ऐसा करने से हम अपनी परेशानी से उभर सकते हैं तथा पूर्ववत् खुशहाल जिन्दगी जी सकते हैं।

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