गुरुवार, 25 जून 2015

मेरे मन कुछ और है

मेरे मन कुछ और है मालिक के कुछ और। हम सबके जीवन में प्रायः ऐसा ही होता है। हम कल्पना कुछ करते हैं और विपरीत परिणाम आने पर हक्के-बक्के रह जाते हैं। न चाहते हुए भी हमें अपरिहार्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
          हम तो सदा ही ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं पर वह मालिक जानता है कि हम मुँह के बल गिर जाएँगे या हमारे पंख जल जाएँगे। इसीलिए वह हमारी रक्षा करने के लिए हमें झटका दे देता है। उसकी महिमा को हम अज्ञानी नहीं समझ पाते। हम बस मात्र अपने स्वार्थो की पूर्ति करना चाहते हैं। तभी तो हम हमेशा उसकी महानता को अनदेखा करके उसे पानी पी-पीकर कोसते हैं और अपना शत्रु तक मान बैठते हैं। जबकि वह परमपिता तो खुले मन से बाहें पसार कर कदम-कदम पर हमारी रक्षा ही करता है।
         वह हमें दुनिया में भेजने के पश्चात हमारी सारी आवश्यकताओं को हमारे कहे बिना कहे ही पूर्ण कर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि वह इतने एहसान हम पर करता है पर हमें जताता भी नहीं है। इसके विपरीत यदि किसी मनुष्य पर हम राई जितना उपकार करते हैं तो उसे पहाड़ जितना बढ़ा-चढ़ाकर हर जगह गाते फिरते हैं। हम उस व्यक्ति से यही आशा करते हैं कि जीवन भर वह हमारे अहसान के बोझ के नीचे दबा रहे और हमारे सामने अपनी नजर नीची रखे। वह मालिक जीवन पर्यन्त पहाड़ जितने उपकार हम पर करता रहता है परन्तु कभी उनका अहसास तक नहीं कराता।
          हम हर समय झोली पसारे उससे धन-दौलत, अच्छा स्वास्थ्य, आज्ञाकारी संतान, सुख-समृद्धि, अच्छी नौकरी या खूब चलता व्यापार, उच्च शिक्षा, बढ़िया-सी गाड़ी, बड़ा-सा बंगला, नौकर-चाकर आदि न जाने क्या-क्या माँगते रहते हैं। फिर भी उसी का तिरस्कार करते हैं, उसकी कद्र नहीं करते। कभी सोचिए कि हम कितना गलत सोचते हैं और इसका प्रायश्चित कीजिए।
       दुनिया में रहते हुए कभी कोई पारिवारिक जन, मित्र, संबंधी, पड़ोसी या कोई अन्य व्यक्ति हमारी सहायता करता है तो पचासों बार हम उसका धन्यवाद करते हैं और उसकी प्रशस्ति में  गाते नहीं थकते। परन्तु उस प्रभु का जो झोलियाँ भरकर, बिन माँगे ही नेमते देता रहता है, उसका न तो हम कभी धन्यवाद करते हैं और न ही कभी उसकी स्तुति करते हैं। यहाँ हम अनायास कंजूस हो जाते हैं।
           हमें यह अहसास ही नहीं होता कि हमें उस मालिक का सच्चे मन से गुनगान करना चाहिए। कहते हैं कि यदि सुख में हम परमपिता को याद करें तो दुख हमारे पास नहीं आएँगे। कहने का तात्पर्य यह है कि हम बिना दिखावे के अपने हृदय की गहराइयों से मालिक का स्मरण करेंगें तो दुख या शूल भी हमारे लिए फूल की भाँति बन जाएँगे। हमें उनसे कष्ट नहीं होगा बल्कि वे हमारे मार्गदर्शक बनकर हमें उन्नति के पथ पर ले चलेंगे।
          वह एक दाता सब जीवों को उनकी योग्यता व पूर्वजन्मों के कृत कर्मों के अनुसार समय-समय पर देता रहता है। हम सब कुछ शीघ्र प्राप्त कर लें इस कारण उतावले रहते हैं। हम भूल जाते हैं कि समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता। भाग्योदय का समय जब आ जाएगा तब हम यदि मिट्टी को भी हाथ लगाएँगे तो वह भी सोना बन जाएगी। अतः समय की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कीजिए और अपने परमपिता परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखिए वह कभी हमें निराश नहीं करेगा। हमारे कर्मानुसार उसके घर में देर हो सकती है पर अंधेर नहीं हो सकती। देर-सवेर वह हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है।
        अपने अंतस की गहराइयों से अपनी त्रुटियों की क्षमायाचना करते हुए उसके समक्ष विनत हो जाइए। वही भव सागर से पार लगाएगा और माता के समान अपनी गोद में स्थान देगा।

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