बुधवार, 3 जून 2015

गोपनीयता बरतना

अपने बड़बोलेपन के कारण हमेशा हर बात का ढिंढोरा पीटते रहना उचित नहीं होता बल्कि कुछ रहस्यों को गोपनीय रखना भी आवश्यक होता है। ईश्वर ने हम मनुष्यों को बुद्धि का वरदान इसीलिए दिया है कि हम सदा सोच-समझकर विचार करें और बोलें। अपने रहस्यों को उद्घाटित करना समझदारी का काम नहीं बल्कि सरासर मूर्खता है।
          नीतिशास्त्र का कथन है कि निम्न बातों की चर्चा     कभी किसी के सामने नहीं करनी चाहिए-
        आयुर्वित्तं   गृहछिद्रं   मन्त्रौषधसमागमा:।
        दानमानावमानाश्च न व गोप्या मनीषिभि:॥
अर्थात आयु, वित्त, गृहछिद्र, मन्त्र, औषध, समागम, दान, मान और अपमान ये नौ बुद्धिमानों के द्वारा गोपनीय हैं।
         हमारे पास कितना धन(वित्त) है इसके विषय में नहीं बताना चाहिए। इसके कारण व्यक्ति मुसीबत में फंस सकता है। मौका ताड़कर कोई चौरी-डकैती अथवा अपहरण आदि कर सकता है। तब अनावश्यक ही परिश्रम से कमाया धन बरबाद हो जाता है। अपने घर के भेद भी नहीं बताने चाहिए और न ही घर के लोगों  की कमियाँ। दूसरे उन कमियों को हमारे ही विरुद्ध हथियार बनाकर हमें परास्त करने के अवसर तलाशते हैं।
          मन्त्र एवं औषधि के विषय में चर्चा करना उचित नहीं। यहाँ मन्त्र से आशय शायद तथाकथित गुरुमन्त्र होगा। वैसे तो मन्त्र हम सबके समक्ष हैं उनके अंदर छिपे रहस्यों को हम साधना करके जान सकते हैं। आयु एवं समागम की चर्चा भी उचित नहीं। सज्जनों की तो आयु नहीं ज्ञान परखा जाता है उनकी आयु कोई मायने नहीं रखती।
         सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपने  कितना दिया इसे रहस्य रखना। यदि दान देने के बाद ढिंढोरा पीटा जाए तो उस दान का कोई औचित्य नहीं रहता। इसलिए दान हमेशा गुप्त करना चाहिए। कहते हैं एक हाथ से दान दो तो दूसरे हाथ को पता न चले।
        अपने सम्मान का गुणगान करते रहने पर लोग इसे आत्मप्रशंसा अथवा मिथ्या प्रलाप मानते हैं और घमंडी के अलंकरण से सुशोभित कर देते हैं। इसलिए सदा अपने यशोगान से बचना चाहिए और दूसरों की बात को सुनने की आदत डालनी चाहिए।
           ऐसे ही अपने हुए अपमान को भी किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। लोग सामने तो सहानुभूति जताएँगे पर पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएँगे लोगों को तो अपने दिल बहलाने के लिए अथवा मनोरंजन करने के लिए ऐसे किस्से कहानियों की तलाश रहती है। फिर उसी बात को नमक-मिर्च लगाकर चटखारे लेकर औरों को सुनाते हैं।
        गणेश पुराण भी कहता है कि सम्मान, अपमान व दान का विज्ञापन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार आचार्य चाणक्य बता रहे हैं कि धन का नाश, मन का दुख, घर के लोगों के कुकर्म, वंचना तथा अपमान व्यक्ति को प्रकट नही करने चाहिए।
          वे लोग मूर्ख होते हैं जो सबके सामने अपने रहस्यों को  प्रकट कर देते हैं। ऐसे लोगों को कुछ पता ही नहीं चलता। जिस रहस्य को सबसे छिपाना चाहिए उसे गाते फिरते हैं और जो बातें सबको बता देनी चाहिए उन्हें छिपाते रहते हैं।
         हमें बहुत ही चतुराई से सबके साथ व्यवहार करना चाहिए। अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बजाय समझदारी से काम लेना चाहिए। यथासंभव अपने रहस्यों को गोपनीय रखना चाहिए ताकि उनका लाभ हम से पहले कोई और न ले जाए। फिर हमें हैरान होकर दूसरों का मुँह न ताकना पड़े।

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