सोमवार, 11 मार्च 2019

मन कोरी स्लेट की तरह

मानव जब इस संसार में जन्म लेता है, तब उसका मन एक कोरी स्लेट की भाँति होता है। यानी ईश्वर मनुष्य को कोरी स्लेट की तरह इस संसार में भेजता है। इसमें वह अपनी इच्छा से जो कुछ भी लिखता है या जो भी रंग उसमें भरता है, उसी को ही दूसरा व्यक्ति पढ़ता है, देखता है और समझने का प्रयास करता है। फिर उसी के अनुसार ही उस व्यक्ति विशेष के बारे में समाज अपनी अवधारणा बना लेता है। अंग्रेजी भाषा में कहते हैं-
           First impression is the
                   last impression.
अर्थात मनुष्य जब किसी को पहली बार मिलता है तो उस व्यक्ति के विषय में बनी उसकी धारणा अन्त तक बनी रहती है। मनुष्य को अपने विषय में दूसरों की राय बदलने में वर्षों लग जाते हैं। यदि उसे लगता है कि लोग उसे गलत समझ रहे हैं, वह तो वैसा बिल्कुल नहीं है। तब लोगों के मनों में घर कर गए उसके प्रति भावों को बदलने में उसे बहुत से पापड़ बेलने पड़ते हैं। लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
          इसलिए मनुष्य को सदा ही बहुत अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। मनुष्य के मन के भाव जैसे होते हैं, वह उसी के अनुसार उस पर लिखता है। अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह दूसरों के मन में अपने प्रति कैसी भावना बनने देना चाहता है? एक बार किसी व्यक्ति के प्रति जनसाधारण जो अवधारणा बना लेता है तो उसी के अनुसार उससे व्यवहार करता है।
          यहाँ मैं उन महापुरुषों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहती हूँ, जिनके हृदयों में युगों पूर्व आमूल-चूल परिवर्तन हो गया था। फिर भी युगों से उनके पूर्व व्यवहार को समाज भूल नहीं पाया। वह उनके दोनों रूपों को एक साथ ही स्मरण करता है। यद्यपि इतिहास इन महानुभावों से भरा हुआ है, फिर भी कुछ नाम हैं- महर्षि वाल्मीकि, अंगुलिमाल डाकू, महाकवि कालिदास आदि।
          यहाँ हम छोटे बच्चे का उदाहरण लेते हैं। वह जब लिखना सीखता है, तब बार-बार लिखता है और बार-बार मिटाता है। जब उसे यह विश्वास हो जाता है कि उसका लिखा हुआ शुद्ध है तो वह सबको दिखाने का प्रयास करता है। उसका उद्देश्य यही होता है कि सभी लोग उसका सही लिखा हुआ पढ़ें और उसे शाबाशी दें। उस प्रशंसा को पाकर वह फूल नहीं समाता। यदि कोई उसकी निन्दा कर दे अथवा उसे झिड़क दे तो वह उदास हो जाता है, रोने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक अबोध बालक भी अपनी छवि बिगड़ने नहीं देना चाहता।
           एक मंझा हुआ चित्रकार जब एक नए केनवास को लेकर आता है, तब वह कोरा होता है। वह चित्रकार उस पर अपनी समझ-बूझ से विविध रंगों का प्रयोग करके उस पर एक सुन्दर चित्र बनाता है। देखने वालों की नजर उससे हटती नहीं है। लोग उस चित्र व चित्रकार की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते। दूसरीं ओर किसी अज्ञ को वही सारा सामान दे दिया जाए तो वह सब बर्बाद कर देगा। चित्र बनाना तो दूर की बात है, वह सबके तिरस्कार का पात्र बन जाएगा।
           मनीषी जन अपने सद्व्यवहार, सच्चाई, ईमानदारी, सहृदयता, परोपकार, सरलता, सहजता आदि विविध सुन्दर रंगों से अपने मन की स्लेट को या केनवास को इतना सुन्दर बना लेते हैं कि कोई एक बार भी उनसे मिलने के लिए आए तो पुनः पुनः उनके पास आने के लिए तड़पता रहता है। वह उनसे विलग होकर रहने के बारे में सोच ही नहीं पाता।
         इनके विपरीत दुष्ट प्रकृति के अहंकारी लोग अपने दुर्व्यवहार, निर्ममता, दूसरों का गला काटना, भ्रष्टाचार आदि अवगुणों आदि विविध दुष्कृत्यों के कारण अपनी कोरी स्लेट को इतना बदरंग बना देते हैं, जिस पर कुछ भी पढ़ सकना असम्भव हो जाता है। उनके मन में किस समय क्या भाव आता है, कोई नहीं समझ सकता। इनके पास जाकर किसी का मन प्रसन्न नहीं होता। उनके पास कुछ पल बैठना भी दूभर हो जाता है।
           ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को समान रूप से सब कुछ देकर भेजता है। अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह अपनी छवि समाज में किस प्रकार प्रस्तुत करता है। यह उसके कौशल पर निर्भर करता है कि वह अपनी मन की कोरी स्लेट का सदुपयोग किस प्रकार करता है?
चन्द्र प्रभा सूद
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