रविवार, 24 मार्च 2019

विचार-बिन्दु

बाल सुलभ चेष्टाओं को निहारते हुए हर व्यक्ति का मन बहुत प्रमुदित होता है। बच्चे जाने-अनजाने ऐसे करतब कर जाते हैं, जिन्हें किसी भी तरह क्षमा नहीं किया जा सकता। वे जो भी देखते हैं, उसी का अनुभव कर लेना चाहते हैं। यद्यपि उन्हें समझ में नहीं आता कि उनका वह कृत्य उचित था अथवा अनुचित। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि उन्हें हर अनुभव लेने दिया जाए। हम सब जानते हैं कि आग में हाथ डालने से वह जल जाएगा। बच्चा कितनी भी जिद्द क्यों न करे, उसे आग में हाथ डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
        अच्छे लोगों की परीक्षा कभी नहीं लेनी चाहिए क्योंकि वे पारे की तरह पारदर्शी होते हैं। जब कोई उन पर चोट करता है तो वे टूटते नहीं हैं, लेकिन फिसल कर चुपचाप उसकी जिन्दगी से निकल जाते हैं। ऐसे हितसाधकों को खो देने से मनुष्य की बहुत हानि होती है। निन्दा से घबराकर मनुष्य को कभी अपने लक्ष्य का त्याग नहीं करना चाहिए। लोगों का काम तो कुछ-कुछ कहते रहने का होता है। जब मनुष्य अपने लक्ष्य को पा लेता है, उस समय उसकी निन्दा करने वालों की राय उस व्यक्ति विशेष के बारे में बदल जाती है। इसलिए अपने निर्धारित लक्ष्य पर बिना पीछे मुड़े हुए चलते  रहना चाहिए।
       कड़वा बोलने और सम्बन्ध तोड़ने में केवल एक पल लगता है, जबकि उन्हें बनाने और मनाने में पूरा जीवन लग जाता है। जहाँ तक हो सके अपने व्यवहार को सन्तुलित बनाए रखना चाहिए। दूसरों की गलतियों पर उन्हें क्षमा कर देना चाहिए। जो लोग दूसरों से प्रेम करते हैं वे सदा उन्हें माफ कर देते हैं। यह सत्य है कि प्रेम सदा क्षमा करना या क्षमा याचना करना पसन्द करता है। इसके विपरीत अहंकारी लोग सदा दूसरों को भला-बुरा कहते हैं और वे चाहते हैं कि लोग बात-बात पर उससे क्षमा याचना करें। इससे उन्हें मानसिक सन्तुष्टि मिलती है कि उन्होंने सामने वाले को घुटने टेकने पर विवश कर दिया है।
        जो व्यक्ति किसी निस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई के कार्यों में लगा रहता है। वही दूसरे के चेहरे पर हँसी और उसके जीवन में ख़ुशी लाने की क्षमता रखता है। ईश्वर ऐसे व्यक्ति के चेहरे से कभी हँसी और उसके जीवन से खुशियाँ कभी कम नहीं होने देता। प्रकृति का नियम है कि इस हाथ दो और उस हाथ लो। मनुष्य दुनिया को जो बाँटता है, ईश्वर उसे कई गुणा करके लौटा देता है। कमी है तो हमारी सोच की है, जो मैं, मेरे बच्चे, मेरा परिवार से आगे बढ़ने नहीं देती। अपने हृदय को विशाल बनाकर देखिए बहुत-सी भुजाएँ साथ देने के लिए तैयार हो जाएँगी।     
          एक नन्हें से बीज के कारण एक महान वृक्ष की उत्पत्ति होती है, अपने उद्गम स्थल से मीलों लम्बी यात्रा करके नदी सागर में लीन होकर अपनी यात्रा पूर्ण करती है। मनुष्य की यात्रा परमात्मा को यानी मोक्ष को पाने पर होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो कुछ भी संसार में हो रहा है या घट रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है। उससे हम इन्कार नहीं कर सकते। हम सभी लोग तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिए अपने मन में कभी भी कर्त्तापन का भ्रम नहीं पालना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की उन्नति नहीं अवनति होती है। उसके आगे  बढ़ने के रास्ते बन्द हो जाते हैं।
           जब तक हमारी जिन्दगी की गाड़ी पटरी पर चलती रहती है, तब तक सोचते हैं कि हम एक कुशल चालक हैं। लेकिन जब यही गाड़ी किसी कारण से पटरी से उतर जाती है, तब यह कड़वा सच सामने आता है कि हमारी जिन्दगी की गाड़ी तो कोई और ही चला रहा है। हम तो बस निमित्त मात्र थे। वह चालक है परमपिता परमात्मा। वह हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार हमारी जीवन की गाड़ी को चलता रहता है। इसलिए उस मालिक को कभी नहीं भूलना चाहिए। जो लोग अपनी जीवन की गाड़ी उस मालिक के सुपुर्द कर देते हैं, वे सदा सुखी रहते हैं। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने घमण्ड में चूर रहते हैं और जो मालिक को चुनौती देने की गुस्ताखी करते हैं, वे अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं।
         यदि अपने जीवन में सुख-चैन का साम्राज्य मनुष्य चाहता है तो उसे अपने स्वार्थ से परे हटकर दूसरों के लिए भी सोचना चाहिए। तभी वह अपने साथ अनेक लोगों को जोड़ सकता है। ये मनुष्य के वे सच्चे साथी होते हैं जो सदा उसके हित के लिए सोचते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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