सोमवार, 18 मार्च 2019

विवाहेत्तर सम्बन्धों से विनाश

नवयुवक या नवयुवती जब अपने नए जीवन में प्रवेश करने लगते हैं तो वे दोनों अपने भावी जीवन को लेकर मन में अनेक स्वप्न संजोए रहते हैं। विवाह के उपरान्त वे उन स्वप्नों को साकार करने का प्रयास करते हैं। दुर्भग्यवश उस समय किसी एक पर मानो बिजली टूटकर गिर पड़ती है जब दोनों साथियों में से एक कहे, "उसने यह शादी घर वालों के दबाव में आकर की है। उसका तो पहले से किसी दूसरे के साथ सम्बन्ध है। वह इस रिश्ते को किसी भी सूरत में नहीं निभा सकता।"
           चाहे युवक हो या युवती, जिसके साथ भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटेगी उसके मन में कुछ प्रश्नों का उमड़ना स्वाभाविक होता है। मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? यदि कहीं और सम्बन्ध थे तो मेरी जिन्दगी बर्बाद क्यों की? यदि यही हिम्मत शादी से पहले दिखाई होती तो दो घर उजड़ने से बच जाते? किसी की भी जगहँसाई नहीं होती।
           पति अथवा पत्नी दोनों में से कोई भी स्वेच्छाचारी हो जाए तो परिवार टूटने की कगार पर पहुँच जाता है। ऐसे लोगों को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई भी इन लोगों से किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखना चाहता। इन परिवारों के बच्चों के मन में हीन भावना घर कर जाती है। वे किसी से नजरें नहीं मिला पाते और किसी के सामने जाने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि कोई उनके माता-पिता के बारे में पूछ लेगा तो वे क्या उत्तर देंगे? गलती कोई एक व्यक्ति करता है, परन्तु उसका खमियाजा पूरे परिवार को ही चुकाना पड़ता है।
         किसी कवि ने बहुत ही सच्चाई से इस दुष्कृत्य के विषय में लिखा है-
    कलत्रं  पृष्टतः कृत्वा  रमते  यः  परस्त्रिय:। 
   अधर्मश्चापदस्तस्य  सद्यः फलति  नित्यशः।।
अर्थात् अपनी पत्नी के पीठ पीछे (छिप कर) जो व्यक्ति दूसरों की स्त्रियों से अनैतिक प्रेमसम्बन्ध बनाते हैं, अपने  इस अधार्मिक कृत्य के फल स्वरूप वे शीघ्र ही सदा के लिए आपदाग्रस्त हो जाते हैं।
           कवि के इस कथन में सत्य निहित है। जो पुरुष विवाहोपरान्त अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाता है, उस घर को सुख-शान्ति सदा के लिए छोड़ देती है। वहाँ नित्य कलह-क्लेश, लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। परस्पर विश्वास की बलि चढ़ जाती है। ऐसे घर से लक्ष्मी भी किनारा करने में अपना भला समझती है। बच्चे ऐसे पिता का सम्मान नहीं करते। इस तरह वह घर आपत्तियों का अखाड़ा बन जाता है। हर कोई कमर कसकर जूझने के लिए तैयार रहता है।
           इसके विपरीत यदि घर की स्त्री विवाहेत्तर सम्बन्ध बना लेती है तो घर में कमोबेश ऊपर वर्णित स्थितियाँ बन जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी जीवनसाथी चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, अपने साथी की बेवफाई को सहन नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति बन जाने पर घृर में अबोलापन आ जाता है। वहाँ मरघट-सी शान्ति पसरने लगती है। इसका परिणाम अन्ततः विवाह विच्छेद ही होता है। वे दोनों तो अपने-अपने जीवन की राह में आगे बढ़ जाते हैं। परन्तु सबसे अधिक वे मासूम बच्चे पिस्ते हैं, जिनकी कोई गलती नहीं होती। वे समाज की नजर में बेचारे बन जाते हैं।
           मेरे विचार से अकेले पुरुष या अकेली स्त्री को इस विषय में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अपराध दोनों का ही बराबर होता है। यदि कोई पुरुष विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाता है, तो किसी स्त्री के साथ ही बनता हैं। इसी प्रकार यदि स्त्री अनैतिक सम्बन्ध बनाती है तो वह भी किसी पुरुष के साथ ही बनाती है। इस प्रकार दोनों में से किसी एक को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। इन सम्बन्धों के कारण दो हँसते-खेलते परिवार बर्बाद हो जाते हैं। इसलिए दोनों में से किसी के भी अपराध को कम करके नहीं आँका जा सकता और न ही क्षम्य नहीं कहा जा सकता। दोनों ही परिवारों को समाज में नजरें झुकानी पड़ती हैं, शर्मिंगगी का सामना करना पड़ता है।
           विवाह एक बहुत पवित्र संस्था है। इसका उद्देश्य समाज को उद्दण्डता, व्यभिचार आदि बुराइयों से बचाना है। इस सम्बन्ध की पवित्रता को बनाए रखने का दायित्व हर पुरुष और स्त्री को है। समाज के ढाँचे को सुचारू रूप से चलाने में सभी का सहयोग अपेक्षित है।
चन्द्र प्रभा सूद
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