गुरुवार, 21 मार्च 2019

सकारात्मकता उन्नतिकारक

इस संसार में भाँति-भाँति के लोग विद्यमान हैं। उन सबकी मनोवृत्ति भी अलग-अलग तरह की होती है। उनमें से कुछ सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग होते हैं, जो हर समय दूसरों का हित साधने के उपाय सोचते रहते हैं। ऐसे लोगों को हम परोपकारी जीव के नाम से अभिहित करते हैं। इन लोगों का समाज में सर्वत्र सम्मान होता है। लोग इन्हें सदा अपनी सिर-आँखों पर बिठाते हैं। सभी वर्ग के लोग उनका संसर्ग प्राप्त करने के लिए सदा लालायित रहते हैं। इन्हें समाज का पथप्रदर्शक भी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।
        इनके विपरीत बहुत से नकारात्मक विचारों वाले लोग होते हैं। उनका कार्य दूसरों को कष्ट पहुँचाना होता है। ये लोग दूसरों के जीवन में बहुत तरह की गन्दगी फैंकते हैं। दूसरों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उनके मार्ग में रोड़े अटकते हैं। इनका काम दूसरों की आलोचना करना, उनकी सफलता से ईर्ष्या के कारण व्यर्थ ही भला-बुरा कहना होता है। ये लोग आदर्शों के विरुद्ध चलकर आगे निकल जाना चाहते हैं। इनका वश चले तो ये दूसरे को अड़ंगी देकर गिरा दें और पीछे मुड़कर न देखें कि उसे चोट तो नहीं आई।
          ये दुष्ट लोग ऐसे ही होते हैं जो महापुरुषों पर कीचड़ उछलते हैं, उनकी आलोचना करते हैं,  उन्हें जहर देने का दुस्साहस करते हैं, सूली पर चढ़ाते हैं, उनकी हत्या जैसे दुष्कर्म करते हैं। इन दुर्जनों से डरकर महान लोग छिपकर नहीं बैठ जाते बल्कि अपने पूरे उत्साह के साथ समाज सुधार के कार्य करते रहते हैं। वे इन लोगों की गीदड़ भभकियों की बिल्कुल परवाह नहीं करते।
           इन स्वार्थी और दुष्ट लोगों के ऐसे व्यवहार से हतोत्साहित होकर, यूँ ही निराश और हताश होकर नहीं रहना है। बल्कि चतुराई और योजनाबद्ध तरीके से उनको मुँहतोड़ जवाब देना है। उनकी उस चाल से शिक्षा लेकर, उसे अपनी दाल बनाकर, अपने आदर्शों का त्याग किए बिना निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ाते जाना है। इस बात पर अटूट विश्वास रखना है कि सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों की ईश्वर सदा सहायता करता है। उन्हें जीवन में कभी निराश नहीं होना पड़ता।
         ईश्वर ने हर मनुष्य को बुद्धि रूपी सम्पत्ति, धैर्य रूपी शस्त्र, विश्वास रूपी सुरक्षा कवच और हँसी रूपी बढ़िया दवा उपहार स्वरूप प्रदान की है। जो इनको अपना लेता है, वह जीवन में कभी हार नहीं मानता। न ही उसे कभी पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत जो इन सब पर मन से विश्वास नहीं कर पाता, वह सदा डगमगाता रहता है।
           इस विषय को सार्थक करती एक कथा वाट्सएप पर पड़ी थी। उसे आपके साथ साझा कर रही हूँ। आशा है आपने भी पड़ी होगी। यह कथा सचमुच मनन करने पर विवश करती है।
           एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया। वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा। वह विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं? अन्ततः उसने निर्णय लिया कि उसका बैल काफी बूढा हो चुका है, अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने नहीं वाला। इसलिए उस बैल को कुएँ में ही दफना देना चाहिए।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और फिर मिलकर कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही बैल को समझ में आया कि यह क्या हो रहा है, वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़-चीख़कर रोने लगा। कुछ समय पश्चात अचानक वह शान्त हो गया।
          सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिलकर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस बैल पर अपने फावड़ों से मिट्टी गिराते, वैसे-ही-वैसे वह हिल-हिलकर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढ़ी ऊपर चढ़ आता। जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुँच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।  
           यह कथा हमें यही समझ रही है कि बुद्धि, साहस और विश्वास के बूते बैल कुँए से बाहर निकल सका और उसके प्राणों की रक्षा हो सकी। इसी प्रकार यदि मनुष्य इनका सहारा अपने जीवन में ले तो कोई कारण नहीं कि उसे असफलता का मुँह देखना पड़े। उसे उत्तरोत्तर उन्नति करने में कोई बाधा पछाड़ नहीं सकती।
चन्द्र प्रभा सूद
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