बुधवार, 13 मार्च 2019

ईश्वर को समझना कठिन

परमपिता परमात्मा को कोई नहीं समझ सकता। कब किस समय क्या घट जाए कोई नहीं जान पाता। मनीषी इसीलिए कहते हैं-   
        'ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया'
यानी मनुष्य के जीवन में कब परिवर्तन आ जाता है? कब मनुष्य राजा बन जाता और कब रंक बन जाता है? प्रभु की रजा क्या है, कोई इस विषय में नहीं समझ सका?
          ईश्वर हमें वही देता है, जिसमें हमारी भलाई छुपी होता है। हम अज्ञ लोग उसे जान, समझ ही नहीं पाते। इसीलिए सारा समय रोते-कलपते रहते हैं। उसे कोसते रहते हैं। वह है जो निर्लिप्त रहकर, इन सबको अनदेखा करके हमारा हित साधता रहता है।
          एक बोधकथा जिसे आपमें से कई लोगों ने पढ़ा होगा, उसकी चर्चा यहाँ करना चाहती हूँ। एक बार नारद जी ने भगवान से प्रश्न किया, "प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं?"
          भगवान बोले, "नारद जी, मेरी कृपा को समझ पाना बहुत कठिन कार्य है।"
           इतना कहकर भगवान नारद जी के साथ साधु भेष में धरती पर पधारे और एक सेठ के घर भिक्षा के लिए दरवाजा खटखटाने लगे। सेठ ने देखा दो साधु खड़े हैं।
         भगवान बोले, "भैया, बड़े जोरों की भूख लगी है। थोड़ा-सा खाना मिल जाएगा क्या?"
         सेठ बिगड़कर बोला, "तुम दोनों को मेहनत करके खाने में शर्म आती है क्या? जाओ किसी होटल से खाना माँगो।"
         नारद जी बोले, "देखा प्रभु, यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है। इसको अभी अभिशाप दीजिए।"
         नारद जी की बात सुनते ही भगवान ने उस सेठ को अधिक धन-सम्पत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया।
         इसके बाद भगवान नारद जी को लेकर एक बुढ़िया की छोटी-सी झोपड़ी में गए, उसमें गाय के अलावा और कुछ भी नहीं था। जैसे ही भगवान ने भिक्षा के लिए आवाज लगायी, बुढ़िया बड़ी खुशी से बाहर आयी। दोनों को आसन देकर बिठाया और उनके पीने के लिए दूध लेकर आयीं और बोली, "प्रभु, मेरे पास और कुछ नहीं है, आप दोनों इसे ही स्वीकार कीजिए।"
            भगवान ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया। तब नारद जी ने भगवान से कहा, "प्रभु, आपके भक्तों की इस संसार में देखो कैसी दुर्दशा है, मुझसे तो देखी नहीं जाती। यह बेचारी बुढ़िया आपका भजन करती है और अतिथि सत्कार भी करती है। आप इसको कोई अच्छा-सा आशीर्वाद दीजिए।"
           भगवान ने थोड़ा सोचकर उसकी गाय को मरने का अभिशाप दे डाला। यह सुनकर नारद जी बिगड़ गए और कहा, "प्रभु, यह आपने क्या कह दिया?"
          भगवान बोले, "यह बुढ़िया मेरा बहुत भजन करती है। कुछ दिनों में इसकी मृत्यु हो जाएगी और मरते समय इसे गाय की चिन्ता सताएगी। मेरे मरने के बाद मेरी गाय को कोई कसाई ले जाकर काट न दे, मेरे मरने के बाद इसको कौन देखेगा? तब इस मैया को मरते समय मेरा स्मरण न होकर बस गाय की चिन्ता रहेगी। तब वह मेरे धाम में न जाकर गाय की योनि में चली जाएगी।"
           उधर सेठ को धन बढ़ाने वाला वरदान इसलिए दिया ताकि अन्तकाल में वह धन तथा तिजोरी का ध्यान करेगा। फिर वह तिजोरी के नीचे साँप बनकर रहेगा।
          इस रहस्य को और अधिक स्पष्ट करते हुए प्रभु बोले, "प्रकृति का नियम है जिस चीज से मनुष्य को अति लगाव रहता है, यह जीव मरने के बाद वहीं जन्म लेता है और फिर बहुत दुख भोगता है।"
          हम देखते हैं कि जिस व्यक्ति का अन्तिम समय समीप होता है, उसके बन्धुजन उसे दुनिया से ध्यान हटाकर प्रभु का नाम स्मरण करने के लिए कहते हैं। ताकि उसकी वृत्ति प्रभु में लगी रहे और वह शुद्ध-पवित्र बनी रहे। सांसारिक वस्तुओं से उसकी वृत्ति हटे और उसे सद्गति प्राप्त हो। इसी प्रकार कुछ लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार गीता या रामायण का पाठ करते हैं, ओम या गायत्री का जाप करते हैं।
         यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ कि जो व्यक्ति जीवनभर प्रभु का स्मरण करता है, अन्तिम समय में उसका ध्यान ईश्वर की ओर सरलता से लगता है। इसके विपरीत जो लोग सही समय की प्रतीक्षा करते रहते हैं, वे अपने जीवनकाल में कभी ईश्वर का ध्यान नहीं कर पाते। अन्तकाल में तो यह उनके लिए असम्भव कार्य हो जाता है। समय रहते अपने कर्मों की शुचिता के प्रति सावधान रहना चाहिए। अपना लोक-परलोक सुधारने के लिए प्रभु का नित्य स्मरण करते रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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